Wednesday, July 15, 2020

सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा-11


🕉 📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा-11*📕🐚
💢💢 *उमा प्रसङ्ग -03* 💢💢 विश्राम भाग
➖➖➖➖➖➖
 🗣
     मुनि नारदजी ने गिरिजा के गुणों का वर्णन करते हुए उनके होने वाले पति के बारे में जो कुछ कहा उससे उनके माता पिता बड़े दुःखी हुए, परंतु *“उमा हरषानी”* । क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि वे शिव के लिए ही आयीं हैं ।
*देवर्षि के वचन असत्य नहीं हो सकते,यह विचारकर पार्वतीजी ने उन वचनों को हृदय में धारण कर लिया ।* गोस्वामी जी लिखते हैं –
उपजेउ सिव पद कमल सनेहू।
*नारदजी के वचन को हृदय में धारण करने के कारण शिव पद कमल में अनुराग हुआ ।* नारदजी ने स्पष्ट कहा था - *“अस स्वामी एहि कहँ मिलहि”।* गुरु और संत की वाणी में श्रद्धा होने से प्रभु पद प्रीति सहज रूप में उत्पन्न होती है । पुनः पूर्वजन्म की वह प्रार्थना भी सार्थक हो रहीहै-
*जनम जनम सिव पद अनुरागा।*
नारदजी के जाने पर मैना जी बहुत दुःखित हुईं और कहा कि पुत्री का विवाह वहाँ कीजिए जहाँ सारी अनुकूलताएँ हों।
*गोस्वामी जी जो चौपाई यहाँ देते हैं वह आज के संदर्भ में और प्रासंगिक है।* यथा-
*जौं घर बरु कुलु होइ अनूपा। करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा।*
अर्थात् जो हमारी कन्या के अनुकूल घर मतलब आर्थिक संपन्नता ,वर के स्वभाव और सामर्थ्य तथा कुल मतलब वंश का शील,सदाचार आदि उत्तम हो तो विवाह कीजिए । *इन तीनों के अनुकूल होने पर भी “सुता अनुरुपा”बहुत मह्त्त्वपूर्ण है, जिसे आज के इस भौतिक युग में अवश्य विचार किया जाना चाहिए ।*
माता पिता को दुःखी देखकर पार्वती जी ने उन्हें बहुविध समझाया ।अंततः वेदशिरा ऋषि ने आकर सबको समझाकर प्रबोधित किया । 
गोस्वामीजी लिखते हैं –
*उर धरि उमा प्रानपति चरना।जाइ बिपिन लागीं तपु करना।।*
*अति सुकुमार न  तनु तप जोगु। पति पद सुमिरि तजेउ सब भोगू।।*
*नित नव चरन उपज अनुरागा। बिसरी देह तपहिं मनु लागा।।*
यहाँ गोस्वामी जी ने *तप के आरंभ में ही तीन बार भगवान शिव के पद का उल्लेख करते हुए उनमें पार्वती जी के अतिशय प्रेम का वर्णन किया है।* 
यथा- *“प्रानपति चरना”, “पति पद”और”नित नव चरन उपज अनुरागा”।*
मानस-पीयूषकार कहते हैं कि चरण हृदय में रखने का भाव यह है कि *गुरुजनों के चरणों की पूजा होती है ।दास्य भाव में चरणों से ही देवता के रूप का वर्णन हुआ करता है । चरणों की आरती चार बार होती है और अंगों की एक-एक होती है , क्योंकि चरण के अधिकारी सब हैं ।*
*अपराध क्षमा करने के लिए चरण ही पकड़े जाते हैं ।सती तन में जो अपराध हुआ था, वह यहीं क्षमा कराएँगे।*
*यहाँ पार्वतीजी तप के आरंभ में शिव-पद अनुराग की बात इसलिए करती हैं कि जहाँ चरण होता है वहीं शरीर होता है। पति-पद-ध्यान ही यहाँ मुख्य तप है ।आहार- नियंत्रण और आहार-त्याग ध्यान की दृढ़ता के लिए है। दास्य भाव में चरणों की उपासना ही मुख्य है ।*
एक संत कहते हैं कि *चरण का अर्थ आचरण भी होता है। अर्थात् पति को जो आचरण (अर्थात् तप)अत्यंत प्रिय था उसे स्वयं करने लगीं।*
इस क्रम में भगवान् शिव भगवान श्रीराम को हृदय में धारण कर पृथ्वी पर विचरने लगे।वे उन्हीं के गुणों का वर्णन करते हुए मुनियों को ज्ञान का उपदेश करते रहे । *इस प्रकार बहुत दिन बीतने पर श्रीराम के चरणों में नित नई प्रीति हो रही है-*
एहि बिधि गयउ काल बहु बीती ।
नित नै होइ राम पद प्रीति ।।
*उधर उमा को पति-पद में “नित नव चरन उपज अनुरागा।” की स्थिति है । इस प्रकार दोनों में चरणों के प्रति अनुराग उत्पन्न हो रहा है।*
आगे के प्रसंग में 
*जब सप्तर्षि पार्वतीजी के पास आकर भगवान शिव की निन्दा और भगवान् विष्णु की प्रशंसा करते हैं तो पार्वती जी किसी भी स्थिति में नारद के उपदेश को त्यागने से इंकार करती हैं।* तब शिव के प्रति अनन्य निष्ठा को देखते हुए सप्तर्षि ने कहा –
*तुम माया भगवान् शिव सकल जगत पितु मातु ।*
*नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु।।*
यहाँ सप्तर्षियों का मन वचन और कर्म तीनों से भवानी के चरणों में अनुराग दिखाया है।
*“पुनि पुनि हरषत” से मन,”तुम माया भगवान” से वचन और “नाइ चरन सिर” से कर्म का अनुराग कहा ।*
शिव पुराण में भी प्रणाम और जय जयकार का वर्णन है ।
*आगे के प्रसंग में हिमाचल ने  शिव की स्वीकृति के बाद लग्न पत्रिका सप्तर्षियों को दे दी और चरण पकड़कर उनकी विनती की* –
पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही।
गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही।।
इसी प्रकार बारात के लिए आदेश देने पर शिव के गणों ने उनके चरणों में शीश नवाया-
*प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए।*
उन गुणों का वर्णन करते हुए गोस्वामी जी कहते हैं –
*बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।*
शिव जी कि विचित्र वेष से घबड़ाए पति-पत्नी को जब नारद ने पार्वती के पूर्व जन्म के रहस्य को उद्घाटित किया तो दोनों ने आनंदमग्न होकर पार्वती के चरणों की बार बार वंदना की-
*तब मयना हिमवंतु अनंदे।पुनि पुनि पारबती पद बंदे।।* 
यहाँ पार्वती के ऐश्वर्य जानकर भगवती भाव में मैना और हिमाचल ने आनंद भाव से चरण-वंदना की।
*मंडप पर भगवती पार्वती की शोभा वेद,शेषजी और सरस्वती जी भी नहीं कर पाते।वहाँ पार्वती जी संकोच के मारे पति(शिवजी) के चरण कमलों को देख नहीं सकतीं-* अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकर तहाँ ।।
*यहाँ संकोच सहज और स्वाभाविक है ।*
बहुत प्रकार का दहेज देकर फिर हाथ जोड़कर हिमाचल ने और मैना ने शिवजी के चरण कमलों में प्रणाम किया –
1- *संकर चरन पंकज गहि रह्यो।।*
2- *पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो।।* 
आगे भी अपनी बेटी के बारे में विनती कर मैना भगवान् शिव के चरणों में शीश नवाकर घर गयीं-
*गवनी भवन चरन सिरु नाई।।*
घर जाकर बेटी को उपदेश दिया –
*करेहु सदा संकर पद पूजा ।नारिधरमु पति देउ न दूजा।।*
विदाई के समय तो यह स्थिति आयी कि परम प्रेम के कारण माता मैना पार्वती के चरणों को पकड़ कर गिर पड़ती हैं –
*पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना।*
        💐🙏🏻💐
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
*जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें*⛳🙏🏻
 
*_ॐ सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितंच सत्ये ।_*
*_सत्यस्य सत्यामृत सत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः ॥⛳_*

*सत्यनारायण भगवान की जय⛳*
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

No comments:

Post a Comment

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...