*कामिका एकादशी व्रत* (१६-०७-२०२०) पर विशेष
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*एकादशी उत्पत्ति कथा प्रसंग*
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*एकादशी एक ऐसा नाम जो वैष्णव समाज के लिए सुपरिचित है।*
यह एक ऐसा त्योहार है जिसके फल का विवरण कुछ इस तरह से मिलता है -
*काशी सेवै अब्द शत, अचवै वारि केदार। उभय सहस गो दान दे, तीरथ अटै अपार।।*
*होम यज्ञ करि शत सहस्र, विप्र जिमावै कोय। एकादशी ब्रत के रहे, सम नहिं ताके होय।।*
एकादशी व्रत के फल पर इतना ही नही कहा गया, यह भी कहा गया है -
*जो ब्रत सहित विधान, रहै राखि विश्वास उर। आवा अन्त विमान, वसै विष्णु पुर जाइ सो।।*
इसके अलावे भी इस व्रत पर बाते कही गयी हैं। यह व्रत एक वर्ष मे चौबीस बार किया जाता है,अर्थात प्रत्येक महीने के दोनो पक्षों में और सब का अपना अपना माहात्म्य है।
*एेसे महत्वपूर्ण व्रत की अर्थात एकादशी की उत्पत्ति कथा हम सभी को जाननी चाहिए*
तो आए पढते हैं एकादशी उत्पति वर्णन----
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सतयुग मे शंखासुर का पुत्र *मुर* अपने पिता के वध होने पर वन मे तपस्या करके ब्रह्मा जी से वर प्राप्त किया कि सुरलोक,विष्णु लोक,मुनिलोक,जितनी सृष्टि रची गयी है, उससे अजयेता हासिल हो।
*इस वर के प्रभाव से अपनी भुजाओं द्वारा सब राजाओ को जीत करके मानवो पर विजय हासिल करने के बाद इंद्र पर भी विजय प्राप्त कर वह 'मुर" अत्याचार करने लगा और उन सभी विजित प्रदेश पर अपना शासन जमाया| इससे घबराकर देवताओ सहित इंद्र महादेव के पास गए जहॉ महादेव ने श्वेत लोक मे विष्णु जी के पास जाने को कहा। जहॉ पहुच कर देवताओ ने श्रीविष्णु की स्तुति की और अपने कष्ट को बतलाया। तब विष्णु ने मुर से युद्ध करना स्वीकार किया, सभी देव इन्द्र सहित युद्ध के लिए भगवान के साथ निकल पडे, यह सुनकर वह राक्षश मुर भी अपनी सेना के साथ सन्मुख आ गया। दोनो दल के बीच युद्ध शुरु हो गया, युद्ध मे मुर भारी पड़ने लगा, यह देख इन्द्र भाग चलें। अब मुर श्री विष्णु भगवान के साथ युद्ध करने लगा, जो सहस्र वर्ष चला जिससे कोई परिणाम नही निकला, तब श्रीविष्णु जी युद्ध छोड़कर भाग खडे हूए और बद्रीवन मे सिह नामक गुफा मे जाकर छिप गए जिसका विस्तार योजन भर था और प्रवेश द्वार एक ही था। श्रीविष्णु जी को प्रवेश करते देख कर मुर भी सेना सहित उसमे घुस गया। यह देखकर भगवान माया वश निद्रावश होकर सो गए |तब भगवान के वक्ष से एक कन्या उत्पन्न हुयी। जिसमे अपार बल और तेज था,चार भुजाओं से युक्त दिव्य शरीर सुन्दर वस्त्र धारी देवी को देखकर राक्षसो ने इन्ही से युद्ध करना चालू कर दिया | देखते देखते वहॉ चारो ओर अग्नि प्रकट हुयी। बाहर निकलने का मार्ग अवरोध हो गया और सभी राक्षस मुर सहित उसमे जल कर मर गए | गुफा के बाहर इन्द्र आदि देव खडे थे, उन सबको गुफा से बहुत अधिक सुगंध निकली,जिसे शुभ संकेत समझ कर वे सभी खुश होकर गुफा मे प्रवेश किए और देवी को देखकर स्तुति करना चालू किए। स्तुति समाप्त होने पर भगवान जाग पड़े और उस देवी से यू कहा - आपने देवताओं का कल्याण किया है जो इच्छा हो मांग लीजिए, पर उस देवी ने कुछ भी मांगने से इंकार कर दिया और बोलीं कि आपकी जो इच्छा हो वह दे दीजिए। तब श्री विष्णु जी ने इस देवी को एकादशी नाम दिया और अपने लोक मे वास करने का अधिकार दिया साथ साथ नवों निधि तथा सिद्धि देने वाली,सर्वमनोकामना पूर्ण करने वाली और भय हरने वाली बताते हूए कहा कि जो भक्त आपका व्रत करेगा उन्हे कभी कष्ट नही होगा।*
ऐसा कह कर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए।
*तो यही है एकादशी उत्पति की कथा*
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*_ॐ सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितंच सत्ये ।_*
*_सत्यस्य सत्यामृत सत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः ॥⛳_*
*सत्यनारायण भगवान की जय⛳*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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