🕉️📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा-12*📕🐚
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💢💢 *उमा शिव विवाह महत्व-०१* 💢💢
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*शिव-पार्वती विवाह का बड़ा ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व है । दोनों विदा होकर कैलास आ गये । समय पाकर षडानन का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध किया ।*
गोस्वामी तुलसीदासजी इस प्रसंग की फलश्रुति बताते हुए कहते हैं –
*यह उमा संभु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहिं। कल्याण काज बिबाह मंगल सर्वदा सुख पावहीं।।*
*चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु। बरनै तुलसीदास किमि अति मतिमंद गवाँरु।।*
अर्थात् शिव-पार्वती के विवाह की इस कथा को जो स्त्री-पुरुष कहेंगे और गायेंगे, वे कल्याण के कार्यों और विवाहादि मंगलों में सदा सुख पावेंगे।
गिरिजापति महादेव जी का चरित्र समुद्र के समान अपार है, उसका पार वेद भी नहीं पाते। तब अत्यंत मंदबुद्धि और गँवार तुलसीदास उसका वर्णन कैसे कर सकता है।
*शक्ति और शक्तिमान की सर्वात्मसत्ता का संबंध अभिन्न है ।उपर्युक्त कथा में श्रीपार्वती को हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है । वैदिक कोश में ‘निघंटु’ के अनुसार मैना,मेनका शब्दों का अर्थ ‘वाणी’और ‘गिरि’, पर्वत आदि शब्दों का अर्थ मेघ होता है ।अमर सिंह ने -‘अपर्णा पार्वती दुर्गा मृडानी चण्डिकाम्बिका’ में सबको एक सा ही कहा है।वे जगन्माता हैं। वे जगत का पालन करती हैं ,इस काम में मेघ भी उनका सहायक हुआ। हिमालय का एक अर्थ मेघ भी है ।यास्क ने निरुक्त के छठे अध्याय के अंत में हिम का अर्थ जल लिया है -‘हिमेन उदकेन'(नि•अ•6)।*
ऋग्वेद का कथन है-‘गौरीर्मिमाय सलिलानि तक्षती
*माता से संतति का आविर्भाव होता है । मेनका(मैना)-वेदवाणी ने उनका ज्ञान लोगों को कराया ।वेदों ने हमें सिखाया है कि परमात्मा अपने को स्त्री और पुरुष -दो रूपों में रखते हैं,जिससे प्राणियों को ईश्वर के मातृत्व -पितृत्व दोनों का सुख प्राप्त हो।’त्र्यम्बकं यजामहे’ (यजुर्वेद)।इसका अर्थ है कि हम दुर्गा सहित महादेव की पूजा करते हैं ।*
भारतीय सनातन परंपरा में शिव विवाह शक्ति और शक्तिमान का सम्यक सम्मिलन है ।शक्ति और शक्तिमान का यह मिलन मूलतः अभिन्न है ।
परंतु लीला हेतु *शिव-पार्वती, सीता-राम, कृष्ण-रुक्मिणी आदि के विवाह संस्कार शास्त्रों में वर्णित हैं ।*
शिव-पार्वती के इस *अभिन्न सम्मिलन को ही अर्द्धनारीश्वर कहा गया है । यानी ऐसा शरीर जिसमें आधा भाग स्त्री का हो और आधा ही पुरुष का।*
ध्यान दीजिये👀👁️
*अब यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी सत्य साबित किया गया है। चिकित्सा विज्ञान इसे हर्मीफ्रोडाइट कहते हैं ।*
“शैव सिद्धांत के अनुसार *शिव की दो शक्तियाँ हैं -समवायनी और परिग्रहरूपा।समवायनी शक्ति चिद्रूपा, निर्विकारा और परिणामिनी है ।इसे शक्ति तत्त्व के नाम से कहते हैं ।वह शक्ति परम शिव में नित्य समभाव से रहती है। अतः शिव-शक्ति का संबंध तादात्म्य-संबंध है ।वही शक्ति शिव की स्वरूपा शक्ति है । इससे भिन्न जो परिग्रह शक्ति है वह अचेतन और परिणामिनी है ।वह परिग्रह शक्ति शुद्ध और अशुद्ध-भेद से दो प्रकार की है।शुद्ध शक्ति का नाम महामाया और अशुद्ध शक्ति का नाम माया है । महामाया सात्विक जगत का उपादान कारण है और माया प्राकृत जगत का उपादान कारण है।”*
दर्शन सिद्धांत के अनुसार *शिव के बिना शक्ति असित (काली) और शक्ति के बिना शिव शव हो जाते हैं ।काली की प्रतिमा का प्रतीकार्थ यही है।जब शिव शक्ति के बिना शव हो गए तो शक्ति आश्चर्य मुद्रा में जिह्वा बाहर कर शिव रहित काले वर्ण की (असित) काली हो गई।*
यह लोक के लिए मानो प्रतीकात्मक बोध कथा है कि *जीवन के सर्वविध कल्याण के लिए शिव और शक्ति का सम्यक मिलन अनिवार्य है अन्यथा सृष्टि असंतुलित हो जाती है ।*
आज के युग में नर-नारी का संघर्ष,असमानता आदि की व्यथा कथा इसी मूल दर्शन पर आधारित है । *हमें समझना होगा कि दोनों का सम्यक सहयोग दर्शन ही सृष्टि को सत्यं-शिवं-सुंदरम् का स्वरूप प्रदान कर सकता है ।*
💐🙏🏻💐 प्रसङ्ग जारी⏭️
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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