🔅🔅🔅🔅ঔ *श्रीराम* ঔ🔅🔅🔅🔅
❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂
ஜ۩۞۩ஜ *श्रीरामकथा अमृत सुधा* ஜ۩۞۩ஜ
*सावन विशेष- भाग-19*
❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂
🕉️📕 *शिव प्रसङ्ग --०५*📖🕉️
❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂❂
✍🏻
आदरणीय चिन्तनशील बन्धु जन,
༂ *जय जय सियाराम* ༂
✍🏻
*पूर्व सती चरित में जितने मोह,भ्रम,संदेहादि थे,वे सब उसी जन्म में भस्मीभूत हो गए।*
गोस्वामीजी संशय को सर्प की संज्ञा देते हैं-
*संशय सर्प ग्रसन उरगादः।*
यह ऐसा महाकाल है जिसके डसने पर जीवन भस्मीभूत हो जाता है । सती जी मूलतः उसी संशय सर्प के दंशन से भस्मीभूत हो गईं और इसी संशय छिद्र के कारण भगवान् शिव के साथ अगस्त्य ऋषि से सुनी हुई पूरी कथा रिसकर विनष्ट हो गई ।
संत कहते हैं कि *दक्ष पुत्री होने के कारण यह सब घटित हुआ । दक्ष में बौद्धिक चातुर्य है और वही चतुराई सती को शिव से विलग करने का कारण बनी ।*
🗣 ध्यान रखें कि
*व्यक्ति में संस्कार तीन प्रकार से आते हैं-माता -पिता के रज-वीर्य से,पूर्व जन्म के कृत कर्म से तथा वाल्यावस्था के परिवेश से ।*
*अन्तिम दोनों तो सत्संगति और साधना से सुधर जाते हैं लेकिन माता पिता से आए तत्त्व तो शरीर के मिटने पर ही समाप्त होते हैं ।वैज्ञानिक मानते हैं कि वंशानुगत बीमारी असाध्य है ।*
💐
*दक्ष पुत्री सती भी यज्ञानल में भस्मीभूत होकर पार्वती हुई और फिर भगवान् शिव और भगवान् राम के चरणों में अनन्य अनुराग हुआ और रामकथा श्रवण की प्रीति हुई-*
भगवान् शिव कहते हैं –
*तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी।कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी ।*
दक्ष पुत्री सती तो अपने पितृ संस्कार से इस प्रकार ग्रस्त हैं कि भगवान् शिव के वचन भी अप्रभावी हो गए।
*आज के परिवेश में तो यह और महत्त्वपूर्ण हो गया है । हमारे यहाँ तो गर्भाधान से लेकर अनेक संतति संस्कारों के वर्णन है ।सचमुच यह एक योग क्रिया है, भोगक्रिया नहीं।*
पार्वती जी ने राम कथा संबंधित 14 प्रश्न किए- *निर्गुण-सगुण संबंधी, राम अवतार, बाल चरित, सीताराम विवाह, राज-परित्याग, वनवास, रावण-वध, रामराज्य प्रसंग ये आठ प्रसंग मानो मूल प्रश्न हैं,*
*जिनके उत्तर भगवान् शिव ने दिये।*
और छः प्रश्न हैं-
*साकेत गमन, भगवत्तत्त्व, भक्ति, ज्ञान, विज्ञान और वैराग्य।*
इस पर मतवैभिन्य है ।
*कुछ संत कहते हैं कि भगवान् अपने निज स्वरूप में अयोध्या में ही रह गए। कुछ कहते हैं कि अँवराई वाला प्रसंग ही नारद जी के साथ साकेतधाम गमन का वर्णन है, आदि आदि ।*
गोस्वामी जी ने बड़ी कलात्मकता से इस प्रसंग को वर्णित किया है । *भगवान् शिव के पूछने पर पार्वती जी ने उत्तरकांड में कहा*-
प्रथम जो मैं पूछा सोइ कहहू। *से अपनी बात कह दी और फिर आगे भुशुंडि चरित आरंभ हुआ ।*
भगवान् शिव पार्वतीजी के श्रद्धा से पूछे गए प्रश्नों से बड़े प्रसन्न हुए और उनके हृदय में रामचरित का प्रकटीकरण हुआ- *“हर हियँ रामचरित सब आए”।* तत्पश्चात्-श्रीरघुनाथ रूप उर आवा। *यहाँ गोस्वामी जी एक महत्त्वपूर्ण बात की ओर संकेत करते हैं पहले उनका चरित आता है तब उस चरित के कारण उत्पन्न प्रेम से रूप का प्रकटीकरण होता है ।*
*भगवान् शिव के हृदय में चरित के बाद रूप का आना भक्त्यात्मक दृष्टि से पार्वती के प्रश्नों के उत्तर हैं। चरित निर्गुण सगुण दोनों हो सकते हैं ।* कबीर और तुलसीदासजी दोनों ने राम चरित के वर्णन किये हैं । परंतु एक का निर्गुण है और दूसरे का सगुण ।
*हाँ, एक बात और है कबीर अपने निर्गुण रामचरित में सगुण चरित को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं । परंतु तुलसीदास दोनों चरित को अभेद मानते हैं ।*
*मानस के प्रायः प्रत्येक श्रोता को यही भ्रांति है कि वह निर्गुण ब्रह्म अलग है और दशरथ नंदन राम अलग हैं।*
*भगवान् शिव सहित सारे वक्ताओं ने मानस में यही सिद्ध किया है कि दोनों अभेद हैं*-सगुनहिं अगुनहिं नहीं कछु भेदा। *पूरे मानस का यही प्रतिपाद्य है* कि
*“अगुन अलेप अमान एकरस।रामु सगुन भए भगत पेम बस।।*
यहाँ गोस्वामीजी कहते हैं- *श्रीरघुनाथ रूप उर आवा।*
मेरी दृष्टि में यहाँ *“श्रीरघुनाथ”* शब्द महत्त्वपूर्ण है । *”श्री”* सीताजी के लिए है और *“रघुनाथ”* श्रीराम के लिए ।
*युगल चरित का सम्मिलित स्वरूप ही रामचरित मानस है।*
महाराज मनु ने भी जब कहा कि मुझे उस रूप के दर्शन चाहिए- *“जो सरूप बस सिब मन माहीं”*। तो भगवान् श्रीराम सीताजी सहित प्रकट हुए-
*राम बाम दिसि सीता सोई ।* इससे स्पष्ट है कि *भगवान् शिव के हृदय में युगल रूप का निवास है ।*
इस पर भी संतों के अलग-अलग मत हैं। *कुछ बालक राम को इनका इष्ट मानते हैं तो कुछ भिन्न स्वरूप को।* क्योंकि भगवान् शिव ने बाल लीला से लेकर रण लीला तक जिस चरित को देखा, वहीं अभिभूत हो गए।अतः शिव तो- *“सेवक स्वामी सखा सीय पी के”।* अतः उनके हृदय में राम समग्रता में निवास करते हैं ।
हाँ,एक बात जो मेरी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । *भक्ति में सेव्य (इष्ट) बालक रूप में हों तो यह अति उत्तम है, क्योंकि कलिग्रस्त जीव के लिए ऐसा स्वरूप बड़ा सहज और स्वाभाविक होता है ।अन्यथा सेवक ही बालवत् हो जाए तो किसी भी स्वरूप में वह आनंदित रह सकता है।*
*बालक की सहजता, निष्कलुषता और उसकी अंतर्बाह्य पवित्रता भक्त्यात्मक दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण है ।* फिर कोई भी लीला हो-सर्वत्र आनंद ही आनंद है । भगवान् कहते हैं - *“बालक सुत सम दास अमानी।”*
अतः महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि *हम श्रीराम के किस रूप के उपासक हैं, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि जिस दिन हमारे जीवन में बालक सम अमानित्व का भाव जग जाता है हमारे इष्ट हमारे ही हो जाते हैं । रामकृष्ण परमहंस बालवत् जीते थे तो जगदंबा स्वयं पुत्रवत् पालन करती थीं। यहाँ तक कि माँ शारदा में भी उनका यही भाव था। यही है- बालवत् साधना ।*
🙏🏼💐🙏🏼
🔻🔻🔻🔻🔻🔻
℘ *जारी ⏭️* ɮ
🙏🏻जय सियाराम
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
*जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें*⛳🙏🏻
*_नमस्ये सर्वलोकानां जननीमब्जसम्भवाम् । श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम् ॥_*
*माता लक्ष्मी की जय⛳*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
No comments:
Post a Comment