Wednesday, July 22, 2020

सावन विशेष श्री रामकथा अमृत सुधा 18


🔅🔅🔅🔅ঔ *श्रीराम* ঔ🔅🔅🔅🔅
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ஜ۩۞۩ஜ *श्रीरामकथा अमृत सुधा* ஜ۩۞۩ஜ
                  *सावन विशेष- भाग-18*
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          🕉️📕 *शिव प्रसङ्ग --०४*📖🕉️
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आदरणीय चिन्तनशील बन्धु जन,
   ༂ *जय जय सियाराम* ༂
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*शिव आनंदस्वरूप हैं । गोस्वामी जी कहते हैं कि कैलास पर्वतों में श्रेष्ठ और बहुत ही रमणीय हैं ,जहाँ शिव -पार्वती जी सदा निवास करते हैं ।देवता, ऋषि, मुनि योगी आदि उनकी सेवा करते हैं ।वे सहज रूप से एक वटवृक्ष के नीचे विराजमान हैं ।*
कुन्द के पुष्प, चंद्रमा और शंख के समान उनका गौर शरीर था।बड़ी लंबी भुजाएँ थीं और वे मुनियों के से वस्त्र धारण किये हुए थे ।उनके चरण नए  लाल कमल के समान थे,नखों की ज्योति भक्तों के हृदय का अंधकार हरनेवाली थी-
*तरुन अरुन अंबुज सम चरना।नख दुति भगत हृदय तम हरना।।*
मुख शरद पूनम की तरह शोभायमान है। सिर पर जटा-मुकुट और गंगा सुशोभित हैं । नीलकंठ भगवान् शिव बालचंद्र धारण कर ऐसे विराजमान हैं, मानो शांत रस शरीर धारण कर बैठा हो।
*ऐसे अवसर पर भगवती पार्वती के वहाँ पहुँचने पर शिवजी ने उन्हें अपनी बाँयी ओर बैठने के लिए आसन दिया ।* उनके मन में सर्वहित कारी राम कथा पूछने का भाव जगा। पार्वती जी ने कहा- *हे संसार के स्वामी!हे मेरे नाथ!हे त्रिपुरासुर के बध करने वाले! आपकी महिमा तीनों लोकों में विख्यात है ।चर, अचर, नाग, मनुष्य और देवता*  सभी आपके चरणकमलों की सेवा करते हैं –
*बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी।*
*त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी।*
*चर अरु अचर नाग नर देवा।*
*सकल करहिं पद पंकज सेवा।।*
यह प्रसंग सचमुच बड़ा अनुपम है ध्यान दीजिये 
🗣  *जब सती रूपी जिज्ञासा एक जन्म में संशयग्रस्त होकर भस्मीभूत हो गई और वही फिर नवीन जन्म धारण कर कठिन तप से श्रद्धा हो गई ।*             
 *तप में तपकर जिज्ञासा का भस्मांकुरित रूप ही श्रद्धा है।*
⚜   
                                 *आज श्रद्धा और विश्वास के परिणय से रामकथा विश्व कल्याण कारिणी भागीरथी के रूप में प्रवहमान होने वाली है ।यह अत्यंत व्यावहारिक और जीवनोपयोगी तथ्य है । जब रामकथा की भावभूमि के लिए भगवान् शिव और सतीजी को इतनी साधना करनी पड़ी तो हम भवाटवि में भटक रहे जीव का क्या कहना।*
महाकाल का काल भी मानो रूक गया । 87 हजार वर्षों की समाधि और पार्वती की अखण्ड और अनवरत  तपस्या के पश्चात् *श्रद्धा और विश्वास की जो परिणय भूमि तैयार हुई, उसी पर आज रामकथा गंगा धारा प्रवाहित होने वाली है ।*
मानस का यह प्रसंग सचमुच में असाधारण महत्त्व का है ।
*श्रद्धा और विश्वास जीवन के दो ऐसे पहिए हैं जिस पर जगत के बोझ को लादकर हम आनंद से जीवन जी सकते हैं। आज विडंबना यह है कि छोटों को बड़ों पर श्रद्धा नहीं और बड़ों को छोटों पर विश्वास नहीं।फलतः पूरा पारिवारिक और सामाजिक जीवन असंतुलित हो गया है। पिता, पुत्र, पत्नी, माता, भाई आदि के संबंधों में सर्वत्र आप इसका आकलन कर सकते हैं।जहाँ संतुलन है, मतलब वहाँ ये दो पहिए ठीक से धुरी पर घूम रहे हैं ।यह सभी काल और देश के लिए प्रासंगिक है।*
परमपूज्य रामकिंकर जी महाराज कहते हैं कि *सती का जीवन दुःखमय हो गया “क्योंकि स्वयं उनमें श्रद्धा दृष्टि का उदय नहीं हुआ था और शिव की विश्वास दृष्टि पर भरोसा नहीं था।स्वयं के पास दृष्टि न हो और दूसरे की दृष्टि पर विश्वास न हो,ऐसी स्थिति में कल्याण की कल्पना भी बुद्धि की विडंबना है ।”*
*यही पार्वती श्रद्धा रूप में जब विश्वास रूप में विराजमान शिवजी के चरणों में शरणागत हो जाती हैं, तब मात्र उनका ही कल्याण नहीं होता वरन उस रामकथा गंगा धारा में अवगाहन कर संपूर्ण जीवन जगत का कल्याण हो रहा है और अनंत काल तक होता रहेगा ।* 
इस प्रसंग में भगवान् शिव के चरणों की वंदना का वर्णन करते हुए गोस्वामी जी कहते हैं –
(1)
*तरुन अरुन अंबुज सम चरना।नख दुति भगत हृदय तम हरना।।*
भगवान् शिव के बारे में पार्वती जी कहती हैं - *तुम त्रिभुवन गुरु वेद बखाना।* अर्थात् भगवान् शिव त्रिभुवन के गुरु हैं ।गुरु के बारे में कहा गया है- *श्री गुरु पद नख मनि गन ज्योति ।सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ।।* 
अतः यह बड़ा सार्थक और सहेतुक वर्णन है ।
(2)
*चर अरु अचर नाग नर देवा।सकल करहिं पद पंकज सेवा।।*
भगवान् शिव महादेव हैं । उनकी सेवा में पाताल लोक के नाग, पृथ्वीलोक के मुनि और स्वर्ग के देवता तो हैं ही जड़ और चेतन भी सम्मिलित हैं । 
*भक्त्यात्मक दृष्टि से विचार करने पर और शास्त्र तथा संत के वचनानुसार भक्त जहाँ जिस योनि में रहता है, वह प्रभु की सेवा में संलग्न रहता है।*  मानस में अधम पात्र बालि की दृष्टि खुली तो भगवान् श्रीराम से कहा- *जेहि जोनि जन्मों कर्म बस तहँ रामपद अनुरागऊँ।।*
मानस में श्रीराम के लिए पृथ्वी का कोमल होना,बादल के द्वारा छाया करना, वृक्ष का पुष्पित फलित होना- *सब तरु फरे रामहित लागी।* आदि से उपर्युक्त प्रसंग की सार्थकता सिद्ध होती है ।
(3)
*बंदउँ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि।बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि।।* 
आज हम बात-बात में वेदादि शास्त्रों की अवहेलना करते हैं इसलिए कि हमें इनका रहस्य पता नहीं है । आज भवानी पार्वती श्रुतियों के सिद्धांतसम्मित  श्री रघुनाथजी के निर्मल यश श्रवण करने हेतु पृथ्वी पर सिर रखकर भगवान् शिव के चरणों में प्रणाम कर रही हैं और हाथ जोड़कर विनती करती हैं ।
*करबद्ध होकर सिर को पृथ्वी पर रखकर घुटने के बल होकर नमन निवेदित करना-* यह विनय की पराकाष्ठा है और यही है श्रद्धा की स्वाभाविक भावदशा। *इसी विनय वश भगवान् शंकर रूप विश्वास  के मुख से स्वतःस्फूर्त रामकथा की गंगोत्री प्रवहमान होने लगी।* 
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*यही है रामकथा के श्रवण की पावन विधि।*
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℘ *जारी ⏭️* ɮ
🙌🏻 सियावर श्री रामचन्द्र की जय🙌🏻
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*जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें*⛳🙏🏻
 
*_नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम। पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम॥_*

*भगवान सत्यनारायण की जय⛳*
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत 
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057उ

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