🔅🔅🔅🔅ঔ *श्रीराम* ঔ🔅🔅🔅🔅
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ஜ۩۞۩ஜ *श्रीरामकथा अमृत सुधा* ஜ۩۞۩ஜ
*सावन विशेष- भाग-20*
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🕉️📕 *शिव प्रसङ्ग --०६*📖🕉️
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आदरणीय चिन्तनशील बन्धु जन,
༂ *जय जय सियाराम* ༂
*भगवान् शिव जब हर्षित होकर कथा कहने लगते हैं तो वे सर्वप्रथम भगवान् श्रीराम के बाल रूप* की वंदना करते हैं –
*बंदउँ बालरूप सोइ रामू।सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।*
*मंगल भवन अमंगल हारी ।द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ।।*
यह मानस की सर्वाधिक लोकप्रिय चौपाई है, जिसमें भगवान् श्रीराम के सगुण रूप की वंदना की गई है।
इससे ऊपर की दो चौपाइयों में राम के निर्गुण रूप का गुण कहा गया है । यथा-
*झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें । जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें।।*
*जेहि जानें जग जाइ हेराई।जागें जथा सपन भ्रम जाई।।*
पंडित विजयानंद त्रिपाठी कहते हैं ” *निर्गुण में ही जगत का भ्रम होता है।अतः बालक से निर्गुण ब्रह्म की उपासना कही। निर्गुण-सगुण में अवस्था भेद मात्र है । सगुण को किशोरावस्था मानिए तो निर्गुण बाल्यावस्था है ।जगत् में रहते हुए भी प्रपंच से पृथक होने से बालरूप में निर्गुण उपासना ही कही।”*
मेरी दृष्टि में जो श्रीरघुनाथ रूप हृदय में आया,यहाँ उन्हीं युगल स्वरूप सीताराम का वर्णन है - *मंगल भवन अमंगल हारी।* यहाँ *श्रीराम मंगलभवन हैं और मंगलहारी शब्द सीताजी के लिए है ।*
क्योंकि तुलसीदास जी के सीताराम न तो राज्याभिषेक के बाद विलग हुए और न साकेत धाम गये। वे दोनों आज भी *“दसरथ अजिर बिहारी” हैं और हम सभी लोगों के लिए “मंगल भवन अमंगल हारी।” हैं ।*
भगवान् शिव कहते हैं कि आपकी कृपा से ही *“सकल लोक जग पावनि गंगा”* रूपी रामकथा आज अवतरित हो रही है ।इसके मूल में आपका राम चरणों में अत्यंत अनुराग है - *तुम्ह रघुबीर चरण अनुरागी।*
इसी अनुराग का परिणाम है कि भगवान् श्रीराम ने मुझसे पाणिग्रहण हेतु कहा था-
*अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी।।*
*जाइ बिबाहहु सैलजहि•••••।*
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*यह सार्वभौम सत्य है कि श्रोता के श्रद्धा और सात्विक भाव से ही वक्ता के भाव का प्रस्फुटन होता है ।*
शिवजी कहते हैं कि मुझे ज्ञात है कि *श्रीराम की कृपा से आपके शोक, मोह ,संदेह, भ्रम सब मिट गए हैं।अब इसका लेशमात्र भी आपमें नहीं है ।*
*जीवन उसी का धन्य है जिनके कान सदा रामकथा का श्रवण और आँखें संत दर्शन के लिए लालायित हों।*
*जिनके सिर श्रीराम और गुरु के चरणतल में नहीं झुकते, वे सिर कड़वी तूँबी के समान हैं-*
ते सिर कटु तुंबरि समतूला।
जे न नमत हरि गुर पद मूला।।
मानस पीयूष के अनुसार-
*“यहाँ पदमूला पद कैसा उत्तम पड़ा है।इसकी विलक्षणता श्रीमद्भागवत के स्कंध-2 अ•3 के 23वें श्लोक से मिलान करने पर स्पष्ट दीख पड़ेगी।पदमूल तलवे को कहते हैं। रज और चरणामृत का तलवों ही से संबंध है। इन्हीं की रज लोग सिर पर धारण करते और तीर्थपान करते हैं ।ध्यान भी चरण चिह्न का ही किया जाता है । पुनः ऊपर के भाग में नूपुरादि और नख का ध्यान होता है । तुलसी ऊपर चढेगी। शीश पर तलवे ही रक्खे जाते हैं । पदमूला में पद का ऊपरी भाग और पदमूल दोनों का अभिप्राय भरा है ।* श्रीमद्भागवत के *‘भागवताड्•घ्रिरेणुं’* अर्थात् रज और *‘विष्णुपद्या••••न वेद गन्धम्’* अर्थात् चरणों पर चड़ी हुई तुलसी का सूँघना दोनों ही भाव इसमें दर्शा दिये हैं।”
*अतः गोस्वामीजी की दृष्टि वृहत्तम है।*
मध्यकाल में गोस्वामी तुलसीदास जी जिस चौराहे पर खड़े थे वहाँ एक ओर से कृष्ण प्रेम भक्ति प्रचार, दूसरी ओर से कनफटे योगियों का अलख- अलख का उच्चार, तीसरी ओर से सूफी संतों का पैग़ाम और चौथी ओर से निर्गुणियों के अक्खड़पन सुनाई पड़ रहे थे। इसके अतिरिक्त अन्य पंथों,संप्रदायों में मतभिन्नता चरम पर थी।
अर्थात् *तत्कालीन भारतीय समाज धार्मिक,राजनीतिक, आर्थिक, नैतिक,सांस्कृतिक सभी दृष्टियों से खंड खंड होकर पतनशील हो गया था।*
गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस युगीन वैषम्य को खुलकर देखा था।क्या लोक,क्या वेद, क्या परंपरा, कथा, पुराण, क्या धर्म, क्या जीवन और क्या जगत-प्रत्येक के उलझाव को उन्होंने समझा था।
*रामकथा के संदर्भ में मानो तुलसी की शिव दृष्टि ने कामदेव को भस्मीभूत कर दिया, क्योंकि रामकथा और कामकथा एक साथ नहीं चल सकती थी।अतः गोस्वामी तुलसीदासजी ने कामदेव को रससिंधु कृष्ण का सुवन बना दिया।अपने सामने अत्याचार से पीड़ित मानवों के त्राण के लिए उन्होंने जिस राम का रूप गढ़ा, वे शक्ति, शील, और सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं ।*
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*कबीर अपने राम को रूप देने में परहेज करते रहे, उन्हें प्रकट नहीं किया।मानो वे ज्ञान की पोटली में बँधे रह गए। तुलसीदासजी ने ज्ञान के साथ भक्ति की चाशनी देकर राम को प्रकट किया और संत्रस्त मानवता के उद्धार के लिए उनके राम धनुष-बाण धारण कर धरती पर विचरने लगे।*
कबीर ने “दशरथसुत” राम से भिन्न निर्गुण राम को महत्त्व दिया । कबीर ने कहा-
*राम नाम का मरम है आना।दशरथसुत तिहुं लोक बखाना।।*
अर्थात् दशरथ के बेटे राम का बखान तीनों लोकों में होने लगा, जबकि राम नाम का मर्म “आना” यानी दूसरा है ।
*इस कथन से तुलसी मर्माहत हो गए और इसी परिप्रेक्ष्य में शिव-पार्वती संवाद की भूमिका तैयार की गई ।*
इस संवाद में पहले शिवजी ने पार्वती जी की प्रशंसा की और उनके प्रश्नों को सुंदर, सुखद और संत सम्मत कहा परंतु
*“राम सो अवध नृपतिसुत सोई।की अज अगुन अलख गति कोई।।”*
यह उन्हें अच्छा नहीं लगा। *शिवजी को यह बात कितनी असह्य, दुःखद और अरुचिकर लगी, यह उनके उत्तर के कठोर शब्दों से ही ज्ञात होता है ।वक्ता वही उत्तम है जो श्रोता के अंतर्बाह्य भावों को समझकर दुलार और समयानुसार फटकार से उसके संशय और भ्रम को निर्मूल कर दे।*
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🔻🔻जय सिया राम🔻🔻
℘ *जारी ⏭️* ɮ
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*_वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।_*
*_अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥_*
*शनिदेव की जय⛳*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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