Saturday, July 25, 2020

सावन विशेष श्री रामकथा अमृत सुधा 21


🔅🔅🔅🔅ঔ *श्रीराम* ঔ🔅🔅🔅🔅
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ஜ۩۞۩ஜ *श्रीरामकथा अमृत सुधा* ஜ۩۞۩ஜ
                  *सावन विशेष- भाग-21*
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          🕉️📕 *शिव प्रसङ्ग--०७*📖🕉️
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आदरणीय चिन्तनशील बन्धु जन,
   ༂ *जय जय सियाराम* ༂
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 *भगवान् शिव पार्वती जी के इस प्रश्न का उत्तर कि राम “अवध नृपतिसुत”हैं कि कोई “अज अगुन अलखगति” हैं, बड़े फटकारपूर्ण शब्दों में देते हैं –*
🗣
*एक बात नहीं मोहि सोहानी।जदपि मोह बस कहेहु भवानी।।*
तुम्ह जो कहा राम कोउ आना।
जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना।।
कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।
पाखंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच।। 
अग्य अकोविद अंध अभागी।
काई बिषय मुकुर मन लागी।।
लंपट कपटी कुटिल बिसेषी।
सपनेहुँ संतसभा नहीं देखी।।
कहहिं ते बेद असंमत बानी।
जिन्ह कें सूझ लाभु नहीं हानी।।
मुकुर मलिन अरु नयन बिहीना।
राम रुप देखहिं किमि दीना।
जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका ।
जल्पहिं कल्पित बचन अनेका।।
हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं।
तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं।।
बातुल भूत बिबस मतवारे।
ते नहीं बोलहिं बचन बिचारे।।
जिन्ह कृत महामोह मद पाना।
तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना।
अस निज हृदय बिचारि तजु संसय भजु राम पद।
सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम।। 
अर्थात् *ऐसी वेदविरुद्ध बातें कहने और सुनने वाले अधम नर पाखंडी हैं, हरि पद विमुख हैं, झूठ- सच का ज्ञान नहीं है, अज्ञानी, मूर्ख, अंधे और भाग्यहीन हैं, उनके मन रूपी दर्पण पर विषय रूपी काई जमी हुई है, जो व्यभिचारी, छली और बड़े कुटिल हैं और जिन्होंने कभी स्वप्न में भी संत-समाज के दर्शन नहीं किये; जिन्हें अपनी लाभ-हानि नहीं सूझती, जिनका हृदय रूपी दर्पण मैला है और जो नेत्रों से हीन हैं वे बेचारे रामचंद्रजी के रूप कैसे देखें? जिनको निर्गुण-सगुण का कुछ विवेक नहीं, जो अनेक मनगढंत बातें बका करते हैं, जो श्रीहरि की माया के वश में होकर जगत में भ्रमते फिरते हैं, जिन्हें बात या बाई चड़ी है, जो भूत के वश और नशे में चूर हैं वे विचारकर वचन नहीं बोलते और जिन्होंने महामोहरूपी मदिरा पी रखी है, उनके कहने पर कान नहीं देना चाहिए ।*
यहाँ ऐसे वचन बोलने वाले को *भगवान शिव उपर्युक्त 25 दोषों से ग्रस्त बताते हैं ।* निश्चित रूप से ये दोष पार्वतीजी में तो नहीं ही हैं। यह मानस का सामान्य पाठक भी समझ सकता है । 
*इस प्रकार युगीन भ्रमित चेतनाओं को दृष्टि प्रदान करने के उद्देश्य से गोस्वामी जी ने तत्कालीन परिवेश के पाखंड को निर्मूल करने और दाशरथि राम को अवतरित करने के लिए इस प्रसंग को निमित्त बनाया ।*
विशेषतः *इस प्रसंग का “आना” शब्द महत्वपूर्ण है । कबीर के  “राम नाम का मरम है आना” का सीधा संबंध “तुम्ह जो कहा राम कोउ आना” से है। फिर उसके नीचे गोस्वामीजी अन्योक्ति, वंयग्योक्ति के साथ वक्रोक्ति से प्रहार करते दिखते हैं ।*       *गोस्वामीजी ने मानस में प्रायः  व्यंग्यात्मक रूप में ही आना शब्द का प्रयोग किया है।*
यथा--
1- 
*विभीषण को संपूर्ण लंका का राज्य देकर भी श्रीराम सकुचाते हैं तो तुलसीदासजी कहते हैं –*
अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना।
ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना।।
2-
*सती मोह प्रसंग के पूर्व श्रीराम की वन लीला की वियोग विरह दशा को देखकर भगवान् शिव कहते हैं –*
अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन।।
3-
*सेतु बंधन के पश्चात् गोस्वामी जी कहते हैं –*
श्री रघुवीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन।। 
4-
*उत्तरकांड में जब काकभुशुंडि जी भगवान् श्रीराम के अभ्यंतर लोकों की दिव्यता के दर्शन करते हैं तो वहाँ भुशुंडि जी कहते हैं-*
भिन्न भिन्न मैं दीख सबु अति बिचित्र हरिजिन।
अगनित भुवन फिरेउँ प्रभु राम न देखउँ आन।।
*मानस में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जहाँ आन या आना शब्द के माध्यम से व्यंग्य करते हैं ।*
पार्वतीजी, जो यहाँ गिरिराज कुमारी से संबोधित हैं *अर्थात् दृढ़ता को प्रतीकित करती हैं,* को निमित्त बनाकर गोस्वामीजी भगवान शिव के माध्यम से कहते हैं कि *”तजु संसय भजु राम पद”* अर्थात् *राम पद का सेवन करो इसी से भ्रम रुपी अंधकार का नाश होगा।*
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*_ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:॥_*

*भगवान सूर्यदेव की जय⛳*
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत 
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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