🕉 📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा -०७*📕🐚
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*दक्ष प्रसंग से शिक्षा*
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हम सभी सावन महीनें के शुभ अवसर पर भगवान भोलेनाथ जी के प्रसङ्गो से युक्त श्रीरामकथा के अंतर्गत श्रीरामचरितमानस जी के आधार पर बाल कांड के सती प्रसङ्ग का आनंद ले रहे हैं । आज इसी अंर्तगत आज की कथा-
*श्रीरामचरितमानस जब हम पढने बैठते हैं तब उसके हर प्रसंग से हमे बहूत कुछ सीखने को मिलता है वह एक ऐसा विश्वविद्यालय है जिसे हम जेब मे रख कर कही भी कभी भी पढकर बहुत कुछ सीख सकते हैं |*
जब ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति , ब्रह्मा जी द्वारा प्रजापति का नायक बनाए जाते हैं --- *"देखा बिधि बिचारि सब लायक | दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक||"*
तब ब्रह्मा जी ने तो उन्हे सब भांति से लायक समझ कर नायक बना दिया पर एक बात दक्ष के साथ हो गयी- *" बड़ अधिकार दच्छ जब पावा |अति अभिमानु ह्रदयँ तब आवा ||"* जब वे नायक बना दिए गए तब वो यह सोचे कि हमसे योग्य कोई नही है | *"बुद्धिमत्ता मे अहंकार तो वैसे ही पहले से रहता है और जब उसमे सम्मान भी आकर मिल जाता है तो सारी सीमाएँ अभिमान लॉघ जाता है |"*
बस इसके फलस्वरुप ही जब वो एक दिन ब्रह्म लोक जाते हैं तो वहॉ उपस्थित सभी सदस्य एकमात्र भोले भंडारी को छोड़कर उठकर खडे हो जाते हैं और उनकी यथोचित सम्मान करते हैं |"
*जो नायक है उसका सम्मान,और प्रोत्साहन सभी को करना चाहिए |*
दक्ष का जोरदार ढंग से स्वागत हुआ वहॉ, पर इससे वे प्रसन्न नही हुए और वो यह देख कर दुखित हो गए कि हमारे सम्मान मे एक खड़ा नही हुआ | ध्यान दीजिए *"यह केवल दक्ष की परेशानी नही है यह आज कल भी हमे दिखाई पड़ता है जो विद्वान है उनमे वे यही देखते है कि हमारा सम्मान किसने नही किया ,यह नही देखते कि हजारो ने हमारा सम्मान किया और वो हजारो खुशियो को छोड़कर एक दुःख को पकड़ लेते है | यही हाल दक्ष का भी हुआ और वो यह सोचे कि यह नंग धरंग जिसे मैने अपनी पुत्री दी वह खड़ा नही हुआ | मै नायक तो हूं ही ,पर इसका श्वसुर भी हू पर यह अभिमानी है इसलिए नही खड़ा नही हुआ और वो अन्य सम्मान करने वालो से मिली खुशियो को छोड़कर एक मात्र इसी दुःख से दुखित होकर भोले भंडारी का अपमान करने लगे|*
भोले भंडारी तो ठहरे भोले भंडारी पर इसके पहले तो वह हैं- " *करालं महाकाल कालं कृपालं"* उनके नजर मे यह नही आ पाये और आते भी तो कैसे आते प्रजापति की पद तो असंख्य आते हैं भोले बाबा के सामने कहॉ तक याद रखे,और कितनो को याद रखे |उनकी दृष्टि मे यह पद तो कुछ है ही नही | इसलिए नही खड़े हुए थे और दूसरी बात वो तो हमेशा समाधी मे ही रहते हैं |
*अपने अपमान पर भी बाबा भोले भंडारी कुछ नही बोले और मन ही मन मुस्काते हूए यह सोचने लगे कि दक्ष तो बुद्धिमान है पर वह यह नही सोचा कि जिस पर महाकाल का नजर न परा वही अच्छी बात है पर वो वहॉ से वापस आ गए और इस बात का जिक्र माता सती से भी नही किए | यह बात हमेशा नही खुलती पर एक घटना- दक्ष यज्ञ के कारण खुल गयी| "अगर आज का कोई दामाद रहता तो वह आते आते ही अपनी पत्नी पर सारा गुस्सा निकाल देता |" पर भोले नाथ के चरित की तो यही विशेषतता है वो मान अपमान से उपर हैं |*
ध्यान दीजिए
*हमे इस प्रसंग से यही शिक्षा मिलती है कि हमे हमेशा खुशियो मे ही विचरण करना चाहिए यह कभी नही सोचना चाहिए कि हमारी इज्जत किसने नही की ,कौन हमारे विरोध मे बोल रहा है और दूसरी बात यह कि हमे हर बात प्रकट नही करनी चाहिए किसी के सामने चाहे ओ अपनी पत्नी ही क्यों न हो, जबतक जरुरत न महसूस हो |*
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💐🙏🏻जय जय सिया राम
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*_ॐ भानवे नमः।_*
*_ॐ पुष्णे नमः।_*
*_ॐ मारिचाये नमः।_*
⛳सभी की आत्मा में ऊर्जा रूप में स्थित भगवान सूर्यदेव की जय😊💪🏻
आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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