🕉️📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा-०८*📕🕉️
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*श्रीरामचरितमानस : शिवजी और दक्ष*
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*श्रीरामचरितमानस के नायक अनादि श्री सरकारजी हैं और इस अद्भूत ग्रंथ के प्रतिपादक भोले भंडारी अनादि शिव*
इस अलौकिक ग्रंथ में शिव कथा का भी समावेश गोस्वामीबाबाजी ने किया है जो दो भागो मे विभाजित किया जा सकता है - *(१) सती खंड ,और (२) पार्वती खंड |*
सती हैं वो दक्ष की पुत्री हैं और दक्ष *देखा विधि विचार सब लायक | इच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ||*
ऐसे ही व्यक्ति की पुत्री सती की शादी ब्रह्मा जी ने भगवान् भूतनाथ के साथ करा दी | *हम प्राय: आजकल जो श्वसुर दामाद के बीच का संबंध देखते हैं वैसा दक्ष और शिवजी में नही देखते|*
कारण यह कि *दक्ष का तात्पर्य जहॉ चतुर और बुद्धिमान से है वही भगवान शिव तो साक्षात विश्वास ही है |*
*क्योकि चतुराई का विश्वास के साथ सदा ३६ का आकड़ा रहा है |*
ध्यान दीजिए *सृष्टि के विस्तारक की कन्या का विवाह सृष्टि के संहारक के साथ, कितना विरोधाभाष है |*
ब्रह्मा जी तो सर्वज्ञ है वेदज्ञ हैं वे *इस अद्भूत संबंध के जरिए एक दूसरे के विरोधी दिखने वाले विवेक और विश्वास की एकरुपता को सिद्ध करना चाहते थे,पर दक्ष अपनी अहंकारता से इस पूर्ण सत्य को नही देख पाते |*
यह संघर्ष दो विचारधाराओ का भी परिचायक है |
*दक्ष पुरुषार्थ परायण, बुद्धिमान सृष्टि का विस्तारक है पर अपनी बुद्धि की सीमाओं को नहीं जानते है उन्हे लगता है कि वह जो जानते हैं उससे भिन्न सत्य का कोई अन्य रूप हो ही नहीं सकता ।*
ध्यान दिजीये जरा
*यह मनोवृत्तियॉ केवल दक्ष की नहीं है बल्कि अन्य बुद्धिजीवियों की भी धारणा इसी प्रकार की होती है क्योकि आज भी हम देखते है कि किस तरह पंथवादियो द्वारा यह दावा किया जाता है कि उसी ने सत्य का साक्षात्कार किया है शेष सभी लोग भ्रांत हैं |*
*जबकि अनादि भोले भंडारी शिव असीम सत्य के अनंतता के प्रतीक है |*
ब्रह्मा वास्तिवक विवेक के प्रतीक हैं जिन्हे अपनी सीमाओ का भान है पर दक्ष को नही |
*दक्ष पुत्री सती जो जिज्ञासा की प्रतीक है जिसे शिव के प्रति समर्पित करने की आज्ञा देकर दक्ष को इस सत्य का दर्शन करना चाहे थे ब्रह्मा जी कि बुद्धि की धन्यता विश्वास की उपलब्धि मे है |*
*विश्वास का श्री गणेश वहॉ से होता है जहॉ बुद्धि की सीमाए समाप्त हो जाती है | अत: बुद्धि विश्वास की सेवा करे इसी मे इसका कल्याण है|*
*दक्ष के शिव के प्रति नाखुश होने की जो कथा है वही स्वंय को ही बुद्धिमान मानने वाले की बुद्धि की विडम्बना है | एेसे लोग असत्य सिद्धांतो के आधार पर किसी की सटिकता और प्रामाणिकता का निर्धारण करते हैं | अगर ऐसे लोगो की मत या सिद्धांत को प्रमाणिकता और सटिकता के कसौटी पर कसा जाए तो वह ताश के पतो के महल की तरह भरभरा कर तुरंत ही गिर जाए |*
*दक्ष भी अपने इसी तरह के सिद्धांत,मत मे घिरा हुआ एक पात्र है जिसका सुख सीमित और दूसरे पर आश्रित है जबकि भगवान भोले भंडारी आत्मानन्द मे निमग्न रहने वाले पात्र दिखते हैं जो अपने ईष्ट के लिए पूरी तरह समर्पित हैं।*
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*_ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!_*
⛳हलाहल विष पीकर विषधर कहलाये जग के सारे कष्ट मिटाये बोलो देवो के देव महादेव की जय😊💪🏻
आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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