सौ वर्षों की तपस्या, यह संघ शक्ति का विस्तार।
बीज बोया था जिसने, आज वटवृक्ष साकार।
संकटों में भी रहा अटल, न झुका कभी यह शीश।
सेवा, समर्पण, राष्ट्रप्रेम, है इसका आधार।
नवयुग का आह्वान है, हर शाखा में नई आस।
चरैवेति, चरैवेति का मंत्र, गूँजे दिशा और पास।
जाति-पाँति के भेद मिटाकर, समरसता हो स्थापित।
एक राष्ट्र की भावना से, जीवन हो अनुप्राणित।
प्रतिदिन प्रातःकाल में, एक नई चेतना जागे।
नित्य नियम की साधना, सब भेदभाव से भागे।
संस्कृति की यह धारा, बहती युगों से आई।
हिन्दू जीवन-मूल्यों की, इसने ज्योत जलाई।
कितने वीरों ने दिया, अपना सर्वोच्च बलिदान।
उन हुतात्माओं को आज, करता कोटि-कोटि प्रणाम।
युवा शक्ति का संगठन, यही देश की आशा।
दूर करेगी मिलकर, हर अज्ञान की भाषा।
हर हाथ में राष्ट्रियता, हर मुख पर जन-जागरण।
संघ-कार्य में लीन हों, हम करें पुण्य आचरण।
यह शताब्दी वर्ष है, ध्येय पथ पर चलना है।
परम वैभव की ओर, भारत को फिर सँवरना है।
©पं. खेमेश्वर पुरी गोस्वामी ®
कवि/लेखक/पत्रकार
मुंगेली - छत्तीसगढ़
दूरभाष - ८१२००३२८३४
No comments:
Post a Comment