Tuesday, September 11, 2018
Monday, September 10, 2018
तीजा के पीरा
करू भात के करू साग
का का ओ तो खात हे।
पानी भराई बर्तन मंजाई
मोला तो नहीं भात हे।।
गणेश चौथ के झंझट ऊपर ले
मंडप सजाय बर दाऊ बलाये हे।
मोर जीव बता बता लेत हे
मईके म ओखर रंग रंग बनाये हे।।
भईया ले हे झकमकहा लूगरा
तैं नि लस ,मोरे बर बड़ गुस्साए हे।
संविलियन के पईसा कति डहाथस
गौकिन मईके जाए ले भरमाए हे।।
का दु:ख बतावं समारू,
चार दिन ले नि परे हे बहिरी।
मईके जाके का का खाथे
तहान हो जाथे डऊकी बैरी।
तहान हो जाथे डऊकी बैरी...!
लीपे पोते तो नि आवय मोला
आते साठ बड़ खिसियाही।
चुल्हा ल राख करे डरे कईह
चिमटा धरे के ओ कुदाही।।
तीन साल जुन्ना के सुरता करथों
नवा नवा जब आए रिहिस।
पहिली तीजा ले जब लहूट संगी
खूरमी - ठेठरी लाए रिहिस।।
पऊर के का गोठियाबे संगी,
हकन के खा के आए रिहिस।
आए के खुशी दु पऊवा मारेंव,
धर बहिरी मा ठठाए रिहिस।।
चार दिन बर का जाथे मईके,
जऊँहर हो जाथे मूड़ पीरा।
सबो के हाल अईसनेच संगी,
का गोठियांव तीजा के पीरा।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
मुंगेली - छत्तीसगढ़
७८२८६५७०५७
८१२००३२८३४
जय जय हो गजानन तोर जय हो प्रभु
जय जय हो गजानन तोर जय हो,प्रभु
दुनिया ला देखे अपन आए कर कभु।
तोर अगोरा पुरा साल भर तो करथन,
संग हमर हमेशा रईह जुगाड़ कर प्रभु।।
बस भादो के का दस दिन हे,
तोर इँहा आए के निश्चित बेरा।
कतको रोज पूजे तोला इँहा हे,
अब तो डार ले सदादिन डेरा।।
पहिली पूजा हरदम तोरे करथन,
तहाँ फेर दूसर देवन ला भजथन।
अब देख हमेशा हमर हे करलाई,
प्रभु इँहा हम रोज दु:ख पावथन।।
नौ दिन सेवा तोर हम करथन,
अऊ तो दसवां दिन बोहवाथन जी।
खुरमी ठेठरी बरा सोहारी के तो,
हम पहिली तो भोग लगाथन जी।।
किसिम किसिम के रिंगी चिंगी,
लाइट मंडप तोरे तो सजाए हन।
फेर दया घलो तैं देखाये नि बप्पा,
जीवन अंधियारी हमन पाए हन।।
संग मा अपन रिद्धि सिद्धि लाथस,
ओ शुभ लाभ के बड़ सुंदर कहानी।
कभू काबर ,संग में कान्हा नि लाच,
अब दुष्ट के कईसे मिटय कहानी।।
भगत के सुनले तैं अब तो गोहार,
ए महिमा तोर बड़ हावे अपरम्पार।
अब आबे ते झैन जाबे हावे पुकार,
चारों डहर अब तोर हावे जैजैकार।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
मुंगेली - छत्तीसगढ़
७८२८६५७०५७
८१२००३२८३४
अब सुबह नई आगाज करो
ढल गई कब की ओ काली रतियां
अब सुबह नई आगाज करो।
ऐ हिंद के सोये युवा अब जागो,
तुम नये युग का निर्माण करो।।
सुनता नहीं है यहां तो कोई तुम्हारा,
अब अपना एक आवाज करो।
भूल न पाए फिर कोई अब तुमको,
ऐसा कर्म लकीरें पाषाण करो।।
बन बैठे हैं यहां कई - कई तो द्रोणा,
तुम एकलव्य सा आगाध करो।
राह नहीं तो दिखाता कोई जो,खुद,
अब गांडीव दिव्य तो बाण धरो।।
बैठे पितामह सिंहासन में यहां अब,
सीमा सैन्य बंधे,खुले हाथ करो।
देश की सीमा,जवान तो बंध बैठा,
अब,तो ए जंजीरें निर्वाण करो।।
कर्ण दानी सा चरित्र तुम बनाओ,
अर्जुन सा लक्ष्य आगाज करो।
बनके राम - कृष्ण जैसा चरितार्थ,
द्रोपदी की तुम ही तो लाज रखो।।
गर सेवा करनी है देश की तुमको,
अब भविष्य ऐसा आबाद करो।
ढल गई कबकी ओ काली रतियां,
अब सुबह नई आगाज करो।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
युवा ओज-व्यंग्य कवि
मुंगेली - छत्तीसगढ़
७८२८६५७०५७
८१२००३२८३४
सुदर्शन कहां धर दी है
ऐ कलयुग के भीष्म पितामह,
आस तुझसे कर गलती कर दी है।
सिंहासन पर बिठा के गंगा ने,
खुद की धारा को उल्टा कर दी है।।
था सही ओ अंधा मौनी राजा,
कम-से-कम नारी सुरक्षा सेवा दी है।
तु बैठे देखता द्रोपदी चीरहरण,
मानो जुएं में जीत तुझे मेवा दी है।।
सोचा था तु बनेगा मेरा कान्हा,
पर दुर्योधन सा हद तुने कर दी है।
दुस्शासन रोज यहां जन्म लेता,
सहनशीलता तुने अमर कर दी है।।
अग्निपरीक्षा रोज देती सीता तो,
फिर भी मर्यादा रक्षा तुने तज दी है।
याद कर वो सत्ता पहले की वादें,
सुरक्षा की सुदर्शन कहां धर दी है।।
अब लाज नहीं आती क्यों तुझे,
नाम हजार बार रणछोर कर ली है।
क्या घड़े नहीं भरें शिशुपाल के,
शिश छोड़ सुदर्शन कहां धर दी है।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
युवा ओज-व्यंग्य कवि
मुंगेली - छत्तीसगढ़
७८२८६५७०५७
सैनिक पत्नी के तीजा
बिन दरस पिया ऐ बम भोला
कईसे मै रिझावँव तोला।
अब होथे खुद के व्रत म मोला
भरोसा असमंजस मोला।।
पूरा जीनगी तो मोर करूच हे,
कईसे खांव ऊपर ले करेला।
रंगरंग के फरहार कईसे खाँहू ,
पिया सीमा मा जरे हे शोला।।
मैं महारानी घर मा बईठे हाँव,
अकेला भेज सीमा मा ओला।
काश अगर व्रत ले खुश हस,
वचन संग के निभान दे मोला।।
सीमा मा ओखर संग बलिदानी,
होवन देना प्रभु अब तो मोला।
बड़ तकलीफ़ मिलथे सत्ता ले,
बंधन में बांध दिए हे तो ओला।।
हथियार धरे हांथ फेर बंधे हे,
जंजीर खोलन देना अब मोला।
काली कहूं कोनो हमला होगे,
शहीदी के तो मिलही नतीजा।
अईसन कखरो संग झैन होवय,
का फेर रहीन उपवास तीजा।।
गर करना दुनिया में अमन-चैन,
झन खवा तैं करेला के बीजा।
हमरो चण्डी ताकत ल मौका दे,
बदल रखबो जंग ए नतीजा।।
भरोसा सरकार पल भर तोड़थे,
आस के कईसे लगावंव बगीचा।
बिन दरस पिया ऐ बम भोला,
कईसे मनावंव मैं हर तो तीजा।।
अब सजना मोर सीमा में अड़े हे,
कईसे सिंगारँव तन के बगीचा।
आवय लहूट के पिया मोरो अब,
ओखरे बर रहिथंव उपास जीजा।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
मुंगेली - छत्तीसगढ़
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८१२००३२८३४
Wednesday, September 5, 2018
प्यार सच्चा हो जाता है
सेवा का अवसर आने पर, सेवकों का पता चलता है,
रिश्तेदारों के प्यार का पता दुःख के समय ही लगता है।
मित्रों की मित्रता का पता संकट के समय ही चलता है,
जब साथ न हों सच्चे शुभचिंतक,अकेलेपन ही लगता है।।
पत्नी के प्रेम का उस समय पता चलता है,जब आदमी निर्धन हो जाता है।
जो ऐसे मौकों पर साथ देते हैं तो, उन्हीं का तो प्यार सच्चा हो जाता है !!
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
मुंगेली - छत्तीसगढ़
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न्यू २
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