Wednesday, September 12, 2018

युद्ध महाभारत करने दो

ए सिंहासन के धर्मराज सुनो अब,
                 एक बार फिर, महाभारत होने दो।
बहुत हुई सहन शीलता सुनो अब,
                सीमा के हथियार न मुर्छा होने दो।

बांध रखे हो  जो सैनिक बंधन में,
                 उनको तो सिंह नाद फिर करने दो।
बहुत हुई शकुनि जैसै कुटनीति,
                  कृष्ण श्री धर्म युद्ध चाल चलने दो।

कर्ण से दानी और  कब तक रहें,
                 शहीदी दर्द, अपनों के न  सहने दो।
कुर्बानी नही अब सरसैय्या जैसी,
                अभिमन्यु से चक्रव्युह को भेदने दो।

भूल बैठें क्या हम बजरंगी ताकत,
                 बन जामवंत हुंकार भरके हममें दो।
घटोत्कच जैसी क्षमता हर एक में,
                 अब युद्ध नतीजा हमको बदलने दो।

रावण का कब तक प्रवचन सुनें,
                 अब अंगद जैसे  हमें भी भीड़ने दो।
लक्ष्मण सा तो अब नहीं सही पर,
                 श्रीराम सा, मर्यादा में ही, लड़ने दो।

बहुत हुई नापाक की काली रातें,
                  आग्नेय अस्त्र से, नदारत करने दो।
खोल दो  बार एक जंजीर  हमारी,
        फिर क्या ......फिर क्या.........
                 सीमा पार युद्ध महाभारत करने दो।।

           ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                       "ओज-व्यंग्य"
                    मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Tuesday, September 11, 2018

भारत बन्द पर निबंध

भारत बन्द हमारा राष्ट्रीय त्योहार है।देश के सभी राज्यों में मनाया जाता है।बंगाल,बिहार,उत्तर प्रदेश, केरल,मध्यप्रदेश,राजस्थान,हरियाणा आदि राज्यों में बरसों से पारम्परिक तरीकों से मनाया जाता रहा है।आजकल गुजरात,महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी जोर शोर से मनाया जाने लगा है।

जिस तरह होली दीवाली पंडित जी द्वारा पतरा देखके,ईद-मोहर्रम इमाम साहेब द्वारा टेलीस्कोप से चांद देखकर,क्रिसमस जॉर्जियन कलेंडर देखकर,गुरु परब संडे देखकर मनाया जाता है,उसी तरह भारतबन्द का त्योहार नेतागणों द्वारा चुनाव आने का समय देखकर मनाया जाता है।यह लोकतंत्र का धार्मिक उत्सव है।

नेताओं के नवयुवा समर्पित चमचे लोग सुबह-सुबह डंडा लेकर सड़क पर निकलते हैं।सड़क पर टायर जलाकर खुशियां मनाते हैं।गाड़ियों और दुकानों का शीशा फोड़ना,स्कूटर, रिक्शा आदि के टायरों से हवा निकालना आदि भारत बन्द त्योहार के पारंपरिक रीति रिवाज हैं।गाली गलौज मारपीट इस महान पर्व की शोभा में चार चांद लगाते हैं।

भारत बन्द का त्योहार अभिव्यक्ति की आजादी के विजय का प्रतीक है।यह त्योहार इंसान के अंदर के जानवर को आदर के साथ बाहर लाता है। पशुता के प्रहसन के माध्यम से लोकशाही की श्रेष्ठता का जनजागरण होता है।उन्माद और विवाद की पराकाष्ठा पर पहुंचने में संवेग और उदवेग दोनों का सहारा लिया जाता है।

भारत बन्द में नेता लोग सड़कों पर अपनी पारम्परिक भेषभूषा जैसे पजामा कुर्ता और अपनी पार्टी का गमछा पहनकर निकलते हैं।आम चमचे लुंगी,बनियान और गमछी में झंडा-डंडा लेकर ही निकलते हैं।आजकल नवयुवक बरमुडा टी शर्ट में भी निकलने लगे है।हाथ में व्यक्ति से लगभग 6" लम्बा डंडा होना अत्यंत आवश्यक है।फाड़े में कट्टा हो तो सोने पर सुहागा।

चाय,पकोड़े,पेप्सी,कोला और शराब कबाब का इंतजाम सड़क पर ही होता है।पहले भारत बन्द मनाने वाले लोग स्वयं ही इन व्यंजनों का लुत्फ उठाते थे। जब से मीडिया भी इस त्योहार में कलम-कैमरे के साथ हिस्सा लेने लगी है और शक्ति प्रदर्शन की सेल्फी का डिमांड बढ़ा है,बन्द कराते लोग काफी सभ्य होने का प्रदर्शन करने लगे हैं।बंद पीड़ितों को भी चाय नाश्ता दवा-दारू दिया जाता है,एम्बुलेंसों को रास्ता देने का सद्कर्म भी किया जाने लगा है,जिसे पशुता पर मानवता की विजय कह कर छापा और दिखाया जाने लगा है।मानवीय गुणों का यह प्रदर्शन निश्चय ही सराहनीय है।

भारत-बन्द आलसी लोगों के लिए लोकतंत्र का अनमोल वरदान है।सोमवार से लेकर शुक्रवार तक किए जाने वाला बन्द श्रेष्ठतम लोकोपकार का है।स्कूलों कालेजों को बन्द कराने में बाल कल्याण की भावना छुपी है।सोमवार और शुक्रवार का भारतबन्द सबसे पावन बन्द है।मंगलवार से वृहस्पतिवार तक का बन्द मध्यम आनंददायी होता है।रविवार को या शनिवार को आहूत बन्द निकृष्ट कोटि के बन्द की श्रेणी में आता है।

इस भाग दौड़ की तनाव भरी जिंदगी में भारतबन्द का त्यौहार हमें परिवार के साथ वक्त बिताने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है।अब तो इंटरनेट के माध्यम से सामाजिक सरोकारों को बढ़ाने का मौका भी मिलता है।कभी-कभी बन्दकर्तागणों के अति उत्साह की वजह से इंटरनेट बन्द हो जाता है,जो निश्चय ही परिहार्य है।

आजकल हर पर्व त्योहार के विरोध का फैशन बन गया है।निश्चय ही कुछ लोग इस भारतबन्द पर्व पर भी ऊँगली उठाएंगे!लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है।बस इतना ध्यान रखें कि बन्द का विरोध शांतिपूर्ण तरीके से करें।उत्सव में रंग में भंग न डालें!भावनाओं को आहत न करें।पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी है कि बन्द को शांतिपूर्ण तरीके से मनाए जाने में सप्रेम अपना डंडा सहित योगदान दें।आंसू गैस के गोले से लोगों को भावुक होने में मदद करें!आंखों के रास्ते मन का मैल धुलबाने का आजमाया हुआ अंग्रेजी तरीका है।

भारत-बन्द के इस महान पर्व के शुभ अवसर पर हम बन्द के समर्थक और विपक्षी दोनों पक्षों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं समर्पित करते हैं।लोकतंत्र के चौथे खम्भे पर ज्यादा प्रवाह आपके विसर्जन का हो!इसी मंगलकामना के साथ अपने निबंध को बन्ध देता हूँ।

कबीरा खड़ा बजार में, दियो टायर दहकाय।
नेता अपनी रोटियां,सेंक-सेंक कर ले जाय।।

©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
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मां. धर्मजीत सिंह जी को जन्मदिन पर समर्पित रचना

Monday, September 10, 2018

तीजा के पीरा

करू भात के करू साग
                   का का ओ तो खात हे।
पानी भराई बर्तन मंजाई
                  मोला तो नहीं भात हे।।

गणेश चौथ के झंझट ऊपर ले
                मंडप सजाय बर दाऊ बलाये हे।
मोर जीव बता बता लेत हे
               मईके म ओखर रंग रंग बनाये हे।।
भईया ले हे झकमकहा लूगरा
               तैं नि लस ,मोरे बर बड़ गुस्साए हे।
संविलियन के पईसा कति डहाथस
               गौकिन मईके जाए ले भरमाए हे।।

का दु:ख बतावं समारू,
                     चार दिन ले नि परे हे बहिरी।
मईके जाके का का खाथे
                      तहान हो जाथे डऊकी बैरी।
               तहान हो जाथे डऊकी बैरी...!

लीपे पोते तो नि आवय मोला
                       आते साठ बड़ खिसियाही।
चुल्हा ल राख  करे  डरे कईह
                        चिमटा धरे के ओ कुदाही।।

तीन साल जुन्ना के सुरता करथों
                         नवा नवा जब आए रिहिस।
पहिली तीजा ले जब लहूट संगी
                         खूरमी - ठेठरी लाए रिहिस।।

पऊर के का गोठियाबे संगी,
                         हकन के खा के आए रिहिस।
आए के खुशी दु पऊवा मारेंव,
                         धर बहिरी मा ठठाए रिहिस।।

चार दिन बर का जाथे मईके,
                         जऊँहर हो  जाथे  मूड़ पीरा।
सबो के हाल अईसनेच संगी,
                        का गोठियांव तीजा के पीरा।।

            ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®                
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जय जय हो गजानन तोर जय हो प्रभु

जय जय हो गजानन तोर जय हो,प्रभु
            दुनिया ला देखे अपन आए कर कभु।
तोर अगोरा पुरा साल भर तो करथन,
            संग हमर हमेशा रईह जुगाड़ कर प्रभु।।

बस भादो के का दस दिन हे,
                     तोर इँहा आए के निश्चित बेरा।
कतको रोज पूजे तोला इँहा हे,
                     अब तो डार ले सदादिन डेरा।।

पहिली पूजा  हरदम तोरे करथन,
                    तहाँ फेर दूसर देवन ला भजथन।
अब देख हमेशा हमर हे करलाई,
                   प्रभु इँहा हम रोज दु:ख पावथन।।

नौ दिन सेवा तोर  हम  करथन,
                 अऊ तो दसवां दिन बोहवाथन जी।
खुरमी ठेठरी बरा सोहारी के तो,
                  हम पहिली तो भोग लगाथन जी।।

किसिम किसिम के रिंगी चिंगी,
                    लाइट मंडप तोरे तो सजाए हन।
फेर दया घलो तैं देखाये नि बप्पा,
                   जीवन अंधियारी हमन पाए हन।।

संग मा अपन रिद्धि सिद्धि लाथस,
                 ओ शुभ लाभ के बड़ सुंदर कहानी।
कभू काबर ,संग में कान्हा नि लाच,
                  अब दुष्ट के कईसे मिटय कहानी।।

भगत के सुनले तैं अब तो गोहार,
                 ए महिमा तोर बड़ हावे अपरम्पार।
अब आबे ते झैन जाबे हावे पुकार,
                चारों डहर अब तोर हावे जैजैकार।।

                ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                          मुंगेली - छत्तीसगढ़
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अब सुबह नई आगाज करो

ढल गई कब की ओ काली रतियां
                        अब सुबह नई आगाज करो।
ऐ हिंद के सोये  युवा अब जागो,
                      तुम नये युग का निर्माण करो।।
सुनता नहीं है यहां तो कोई तुम्हारा,
                     अब अपना एक आवाज करो।
भूल न पाए फिर  कोई अब तुमको,
                     ऐसा कर्म लकीरें पाषाण करो।।
बन बैठे हैं यहां कई - कई तो द्रोणा,
                     तुम एकलव्य सा आगाध करो।
राह नहीं तो दिखाता कोई जो,खुद,
                    अब गांडीव दिव्य तो बाण धरो।।
बैठे पितामह सिंहासन में यहां अब,
                    सीमा सैन्य बंधे,खुले हाथ करो।
देश की सीमा,जवान तो बंध बैठा,
                    अब,तो ए जंजीरें निर्वाण करो।।
कर्ण दानी सा चरित्र तुम बनाओ,
                     अर्जुन सा लक्ष्य आगाज करो।
बनके राम - कृष्ण जैसा चरितार्थ,
                    द्रोपदी की तुम ही तो लाज रखो।।
गर सेवा करनी है देश की तुमको,
                      अब भविष्य ऐसा आबाद करो।
ढल गई कबकी ओ काली रतियां,
                        अब सुबह नई आगाज करो।।

               ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                      युवा ओज-व्यंग्य कवि
                        मुंगेली - छत्तीसगढ़
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सुदर्शन कहां धर दी है

ऐ कलयुग के भीष्म पितामह,
                आस तुझसे कर गलती कर दी है।
सिंहासन पर बिठा के गंगा ने,
                खुद की धारा को उल्टा कर दी है।।
था सही ओ अंधा मौनी राजा,
                कम-से-कम नारी सुरक्षा सेवा दी है।
तु बैठे देखता द्रोपदी चीरहरण,
                मानो जुएं में  जीत तुझे  मेवा दी है।।
सोचा था तु बनेगा मेरा कान्हा,
                 पर दुर्योधन सा हद  तुने कर दी है।
दुस्शासन रोज यहां जन्म लेता,
                 सहनशीलता  तुने अमर कर दी है।।
अग्निपरीक्षा रोज देती सीता तो,
                 फिर भी मर्यादा रक्षा तुने तज दी है।
याद कर वो सत्ता पहले की वादें,
                  सुरक्षा की सुदर्शन कहां धर दी है।।
अब लाज नहीं आती क्यों तुझे,
                  नाम हजार बार रणछोर कर ली है।
क्या घड़े नहीं भरें शिशुपाल के,
                 शिश छोड़ सुदर्शन कहां धर दी है।।

            ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                   युवा ओज-व्यंग्य कवि
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...