Tuesday, July 23, 2019

बलात्कार का आरंभ

इतिहास के अनुसार "यौन अपराध" किसकी की देन है !
           लेख ~बलात्कार का आरंभ~

मुझे पता है 90 % बिना पढ़े ही निकल लेंगे😢

आखिर भारत जैसे देवियों को पूजने वाले देश में बलात्कार की गन्दी मानसिकता कहाँ से आयी ~~

आखिर क्या बात है कि जब प्राचीन भारत के रामायण, महाभारत आदि लगभग सभी हिन्दू-ग्रंथ के उल्लेखों में अनेकों लड़ाईयाँ लड़ी और जीती गयीं, परन्तु विजेता सेना द्वारा किसी भी स्त्री का बलात्कार होने का जिक्र नहीं है।

तब आखिर ऐसा क्या हो गया ?? कि आज के आधुनिक भारत में बलात्कार रोज की सामान्य बात बन कर रह गयी है ??

~श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की पर न ही उन्होंने और न उनकी सेना ने पराजित लंका की स्त्रियों को हाथ लगाया ।

~महाभारत में पांडवों की जीत हुयी लाखों की संख्या में योद्धा मारे गए। पर किसी भी पांडव सैनिक ने किसी भी कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ तक न लगाया ।

अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में~

220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक "डेमेट्रियस प्रथम" ने भारत पर आक्रमण किया। 183 ईसापूर्व के लगभग उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया और पंजाब सहित सिन्ध पर भी राज किया। लेकिन उसके पूरे समयकाल में बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

~इसके बाद "युक्रेटीदस" भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर उसने "तक्षशिला" को अपनी राजधानी बनाया। बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

~"डेमेट्रियस" के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें बौद्ध शासक "वृहद्रथ" को पराजित कर सिन्धु के पार पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया परन्तु उसके शासनकाल में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

~"सिकंदर" ने भारत पर लगभग 326-327 ई .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए । इसमें युद्ध जीतने के बाद भी राजा "पुरु" की बहादुरी से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु को वापस दे दिया और "बेबिलोन" वापस चला गया ।

विजेता होने के बाद भी "यूनानियों" (यवनों) की सेनाओं ने किसी भी भारतीय महिला के साथ बलात्कार नहीं किया और न ही "धर्म परिवर्तन" करवाया ।

~इसके बाद "शकों" ने भारत पर आक्रमण किया (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)। "सिन्ध" नदी के तट पर स्थित "मीननगर" को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी,गंधार,सिन्ध,मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं।

~इसके बाद तिब्बत के "युइशि" (यूची) कबीले की लड़ाकू प्रजाति "कुषाणों" ने "काबुल" और "कंधार" पर अपना अधिकार कायम कर लिया। जिसमें "कनिष्क प्रथम" (127-140ई.) नाम का सबसे शक्तिशाली सम्राट हुआ।जिसका राज्य "कश्मीर से उत्तरी सिन्ध" तथा "पेशावर से सारनाथ" के आगे तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों का बलात्कार किया हो ।

~इसके बाद "अफगानिस्तान" से होते हुए भारत तक आये "हूणों" ने 520 AD के समयकाल में भारत पर अधिसंख्य बड़े आक्रमण किए और यहाँ पर राज भी किया। ये क्रूर तो थे परन्तु बलात्कारी होने का कलंक इन पर भी नहीं लगा।

~इन सबके अलावा भारतीय इतिहास के हजारों साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये जिन्होंने भारत में बहुत मार काट मचाई जैसे "नेपालवंशी" "शक्य" आदि। पर बलात्कार शब्द भारत में तब तक शायद ही किसी को पता था।

अब आते हैं मध्यकालीन भारत में~
जहाँ से शुरू होता है इस्लामी आक्रमण~
और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन!

~सबसे पहले 711 ईस्वी में "मुहम्मद बिन कासिम" ने सिंध पर हमला करके राजा "दाहिर" को हराने के बाद उसकी दोनों "बेटियों" को "यौनदासियों" के रूप में "खलीफा" को तोहफा भेज दिया।

तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें "हारे हुए राजा की बेटियों" और "साधारण भारतीय स्त्रियों" का "जीती हुयी इस्लामी सेना" द्वारा बुरी तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।

~फिर आया 1001 इस्वी में "गजनवी"। इसके बारे में ये कहा जाता है कि इसने "इस्लाम को फ़ैलाने" के उद्देश्य से ही आक्रमण किया था।

"सोमनाथ के मंदिर" को तोड़ने के बाद इसकी सेना ने हजारों "काफिर औरतों" का बलात्कार किया फिर उनको अफगानिस्तान ले जाकर "बाजारों में बोलियाँ" लगाकर "जानवरों" की तरह "बेच" दिया ।

~फिर "गौरी" ने 1192 में "पृथ्वीराज चौहान" को हराने के बाद भारत में "इस्लाम का प्रकाश" फैलाने के लिए "हजारों काफिरों" को मौत के घाट उतर दिया और उसकी "फौज" ने "अनगिनत हिन्दू स्त्रियों" के साथ बलात्कार कर उनका "धर्म-परिवर्तन" करवाया।

~ये विदेशी मुस्लिम अपने साथ औरतों को लेकर नहीं आए थे।

~मुहम्मद बिन कासिम से लेकर सुबुक्तगीन, बख्तियार खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह, तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह, मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद, गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर,

~अपने हरम में "8000 रखैलें रखने वाला शाहजहाँ"।

~ इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए "मीना बाजार" लगवाने वाला "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर"।

~मुहीउद्दीन मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है। जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों "काफिर महिलाओं" "(माल-ए-गनीमत)" का बेरहमी से बलात्कार किया और "जेहाद के इनाम" के तौर पर कभी वस्तुओं की तरह "सिपहसालारों" में बांटा तो कभी बाजारों में "जानवरों की तरह उनकी कीमत लगायी" गई।

~ये असहाय और बेबस महिलाएं "हरमों" से लेकर "वेश्यालयों" तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।

~एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम "आक्रमणकारी" अपने साथ "औरतों" को लेकर नहीं आए थे।

~वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा "पराजित काफिर स्त्रियों का बलात्कार" करना एक आम बात थी क्योंकि वो इसे "अपनी जीत" या "जिहाद का इनाम" (माल-ए-गनीमत) मानते थे।

~केवल यही नहीं इन सुल्तानों द्वारा किये अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों के बारे में आज के किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा।

~बल्कि खुद इन्हीं सुल्तानों के साथ रहने वाले लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।

~गूगल के कुछ लिंक्स पर क्लिक करके हिन्दुओं और हिन्दू महिलाओं पर हुए "दिल दहला" देने वाले अत्याचारों के बारे में विस्तार से जान पाएँगे। वो भी पूरे सबूतों के साथ।

~इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भागती और बसती रहीं।

~इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।

~ठीक इसी काल में कभी स्वच्छंद विचरण करने वाली भारतवर्ष की हिन्दू महिलाओं को भी मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के लिए पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई।

~महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का इतना घिनौना स्वरूप तो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 1947 तक अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में भी नहीं दिखीं। अंग्रेजों ने भारत को बहुत लूटा परन्तु बलात्कारियों में वे नहीं गिने जाते।

~1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्टर एक्शन प्लान, 1947 विभाजन के दंगों से लेकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक तो लाखों काफिर महिलाओं का बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया। फिर वो कभी नहीं मिलीं।

~इस दौरान स्थिती ऐसी हो गयी थी कि "पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों" से "बलात्कार" किये बिना एक भी "काफिर स्त्री" वहां से वापस नहीं आ सकती थी।

~जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आ भी गयीं वो अपनी जांच करवाने से डरती थी।

~जब डॉक्टर पूछते क्यों तब ज्यादातर महिलाओं का एक ही जवाब होता था कि "हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं ये हमें भी पता नहीं"।

~विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों में सड़कों पर काफिर स्त्रियों की "नग्न यात्राएं (धिंड) "निकाली गयीं, "बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं"

~और 10 लाख से ज्यादा की संख्या में उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।

~20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया। (देखें फिल्म "पिंजर" और पढ़ें पूरा सच्चा इतिहास गूगल पर)।

~इस विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे।

~वे समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, जिंदा जलाना, चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उनके "स्तनों को काटकर" तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।

अंत में कश्मीर की बात~
~19 जनवरी 1990~

~सारे कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया जिसमें लिखा था~ "या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी औरतों को यहीं छोड़कर "।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पण्डित संजय बहादुर उस मंजर को याद करते हुए आज भी सिहर जाते हैं।

~वह कहते हैं कि "मस्जिदों के लाउडस्पीकर" लगातार तीन दिन तक यही आवाज दे रहे थे कि यहां क्या चलेगा, "निजाम-ए-मुस्तफा", 'आजादी का मतलब क्या "ला इलाहा इलल्लाह", 'कश्मीर में अगर रहना है, "अल्लाह-ओ-अकबर" कहना है।

~और 'असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ "रोअस ते बतानेव सान" जिसका मतलब था कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है, कश्मीरी पंडितों के बिना मगर कश्मीरी पंडित महिलाओं के साथ।

~सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को तैयार हो गए थे।

~सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।

~उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके "नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया"।

~कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया।

~कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी।

~बच्चों को उनकी माँओं के सामने स्टील के तार से गला घोंटकर मार दिया गया।

~कश्मीरी काफिर महिलाएँ पहाड़ों की गहरी घाटियों और भागने का रास्ता न मिलने पर ऊंचे मकानों की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी।

~लेखक राहुल पंडिता उस समय 14 वर्ष के थे। बाहर माहौल ख़राब था। मस्जिदों से उनके ख़िलाफ़ नारे लग रहे थे। पीढ़ियों से उनके भाईचारे से रह रहे पड़ोसी ही कह रहे थे, 'मुसलमान बनकर आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो या वादी छोड़कर भागो'।

~राहुल पंडिता के परिवार ने तीन महीने इस उम्मीद में काटे कि शायद माहौल सुधर जाए। राहुल आगे कहते हैं, "कुछ लड़के जिनके साथ हम बचपन से क्रिकेट खेला करते थे वही हमारे घर के बाहर पंडितों के ख़ाली घरों को आपस में बांटने की बातें कर रहे थे और हमारी लड़कियों के बारे में गंदी बातें कह रहे थे। ये बातें मेरे ज़हन में अब भी ताज़ा हैं।

~1989 में कश्मीर में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी संगठन का नारा था- 'हम सब एक, तुम भागो या मरो'।

~घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात और बदतर हो गए थे।

~कुल मिलाकर हजारों की संख्या में काफिर महिलाओं का बलात्कार किया गया।

~आज आप जिस तरह दाँत निकालकर धरती के जन्नत कश्मीर घूमकर मजे लेने जाते हैं और वहाँ के लोगों को रोजगार देने जाते हैं। उसी कश्मीर की हसीन वादियों में आज भी सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बेटियों की बेबस कराहें गूंजती हैं, जिन्हें केवल काफिर होने की सजा मिली।

~घर, बाजार, हाट, मैदान से लेकर उन खूबसूरत वादियों में न जाने कितनी जुल्मों की दास्तानें दफन हैं जो आज तक अनकही हैं। घाटी के खाली, जले मकान यह चीख-चीख के बताते हैं कि रातों-रात दुनिया जल जाने का मतलब कोई हमसे पूछे। झेलम का बहता हुआ पानी उन रातों की वहशियत के गवाह हैं जिसने कभी न खत्म होने वाले दाग इंसानियत के दिल पर दिए।

~लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पंडित रविन्द्र कोत्रू के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया होता जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि वह किसी कश्मीरी पंडित को चोट पहुंचाने की सोच पाता लेकिन तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए थे या उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।

~अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर "अबू बकर अल बगदादी" के जेहादियों को काफिर "यजीदी महिलाओं" को रस्सियों से बाँधकर कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा।

~पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर सार्वजनिक रूप से मौलवियों की टीम द्वारा धर्मपरिवर्तन कर निकाह कराते देखा होगा।

~बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के बलात्कार की हजारों मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी।

~यहाँ तक कि म्यांमार में भी एक काफिर बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।

~केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता का विनाश कर दिया।

~परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ी...
बलात्कार के रूप में ।

~आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी।

~जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों तक का बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये भयानक रूप देखने को मिल रहा है!
          आप सभी से विनम्र निवेदन है इस मानसिक रोग को खत्म करने के लिए एक छोटा से छोटा उठाया गया आपके द्वारा कदम इस समाज को इस मानसिक विकृति से बचा सकता है अतः आइए हम सब मिलकर अपने आप से एक वादा करें कि समाज की इस बुराई  को जड़ से मिटाने के लिए जो कुछ भी करना पड़ेगा वह हम करेंगे
धन्यवाद🙏🙏

              *पं. खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
              राजर्षि राजवंश-आर्यावर्त्य
              धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
            प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
     अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
       ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, July 18, 2019

सुविचार

धर्म की रक्षा के लिए अपने अंदर करंट पैदा करो...

क्योंकि जिन तारो मे करंट नहीं होती
उस पर लोग कपड़े बनियान सुखाते हैं...!

©पं. खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
        मुंगेली छत्तीसगढ़

Wednesday, July 17, 2019

अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़

अंतरराष्ट्रीय युवा हिन्दु वाहिनी में आपका स्वागत है।

  

अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी (पंजीकृत) संबंध युवा हिंदू वेलफेयर एसोसिएशन रजिस्टर्ड अंडर सोसाइटी एक्ट (पंजीकरण संख्या (162/19)। अंतरराष्ट्रीय युवा हिन्दु वाहिनी की नई सदस्यता प्रारम्भ हो चुकी है,
छत्तीसगढ़ में संगठन विस्तार हेतु सक्षम सनातनी हिन्दू धर्म के युवाओं का हार्दिक स्वागत अभिनन्दन है, आप अपने क्षेत्र में जिला,ब्लाक स्तर पर दायित्व लेकर हिंदूत्व को मजबूत कर सकते हैं, प्रदेश )जिला स्तर पर दायित्व के लिए तत्काल संपर्क करें -
*पं. खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
*प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता*
8120032834 (व्हाटसएप)

संगठन

अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी एक रजिस्टर्ड संगठन है जो कि युवा हिंदू वेलफेयर एसोसिएशन सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत रजिस्टर्ड है | यह इसकी स्वायत्त संस्था है|

संगठन की कार्यकारणी के लिए

संगठन के सञ्चालन के लिए कार्य कारिणी समिति का गठन अपने ही सदस्यों के बीच से किया जायेगा । कार्यकारिणी में कुल २० सदस्य होंगे जिनमें –
प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जी तय करेंगे, इसी प्रकार सभी जिलों में दायित्व दिया जाएगा:-
प्रदेश में:--
संयोजक :१ (एक)
अध्यक्ष :1 (एक)
उपाध्यक्ष :५(पांच)
महामंत्री : १ (एक)
प्रदेश मंत्री:५(पांच)
महासचिव :१ (एक)
सह सचिव :- ५ (पांच)
मीडिया प्रभारी:२ (दो)
प्रचारक :१ (एक )
कोषाध्यक्ष : १ (एक)
संरक्षक :१ (एक)

जिलों में:--

जिला प्रभारी:१ (एक)- हम तय करेंगे सभी जिलों में कार्यकारिणी तैयार हो जाने के बाद
अध्यक्ष :1 (एक)
उपाध्यक्ष :५(पांच)
महामंत्री : १ (एक)
प्रदेश मंत्री:५(पांच)
महासचिव :१ (एक)
सह सचिव :- ५ (पांच)
मीडिया प्रभारी:२ (दो)
जिला प्रवक्ता : १ (एक)
जिला प्रचारक :१ (एक )
कोषाध्यक्ष : १ (एक)
संरक्षक :१ (एक)

संस्था की सदस्यता तथा सदस्यों की कोटि : २ कोटियाँ होंगीं |
संस्था की सदस्यता : इसमें वे सभी हिन्दू व्यक्ति या महिला सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं जिनकी आयु १८ साल से अधिक तथा संस्था के नियमों एवम उद्देश्यों में आस्था रखते होंगे , वह अध्यक्ष की अनुमति से सदस्यता ग्रहण कर सकता है |
(क) आजीवनसदस्यता :
वह व्यक्ति जो हिन्दू हो तथा संस्था को एक बार में रुपये ११००० / नगद संस्था के हित में देंगे वे संस्था के आजीवन सदस्य होंगें |
(ख) सामान्य सदस्यता :
वह व्यक्ति जो हिन्दू हो तथा संस्था को रु. २५१ / वार्षिकं सदस्यता शुल्क नगद या संस्था द्वारा बनाये गए नियम अनुसार प्रदान करेगा , संस्था का सामान्य सदस्य कहलायेगा |

सदस्यता की समाप्ति :

१. मृत्यु हो जाने पर |
२. पागल या दिवालिया हो जाने पर |
३. संस्था के प्रति हानिकारक / खिलाफ कार्य करने पर |
४. किसी अपराध में न्यायलय दण्डित होने पर |
५. नियमित रूप से निर्धारित शुल्क न देने पर |
६. अविश्वास प्रस्ताव एवं त्याग पत्र पारित होने पर |
७. बिना सुचना दिए हुए लगातार ३ बैठकों में अनुपस्थित रहने पर |

नए सदस्यों की सदस्यता : संस्था के सदस्य बनने के लिए संस्था के समछ प्रार्थना पत्र देने पर सदस्यों की बहुमत स्वीकृति के आधार पर होगी |

संस्था में रिक्त स्थान की पूर्ति : किसीपदाधिकारी / सदस्य की असामयिक मृत्यु होने पर , अविश्वास प्रस्ताव पर , त्यागपत्र देने पर या दिवालिया होने पर खली स्थान की पूर्ति सर्व सम्मति से बहुमत के आधार पर या निर्वाचन प्रक्रिया द्वारा रिक्ति की पूर्ति की जाएगी |

पदाधिकारियों का कार्यकाल :

संस्था के अध्यक्ष एवं कार्यकारणी की अवधि ३ साल होगी , हर ३ साल में अध्यक्ष का चुनाव कार्यकारणी के सदस्यों द्वारा किया जायेगा | मनमानी करने की स्थिति में अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों को कार्यकारणी द्वारा बहुमत के आधार पर ३ साल के पहले भी हटाया जा सकता है |

संस्था के अंग :

(अ) साधारण सभा |
(ब) कार्यकारिणी समिति |

साधारण सभा :

गठन : संस्था के आजीवन सदस्य एवं सामान्य सदस्य को मिला कर साधारण सभा का गठन होगा |
बैठकें : साधारण सभा की सामान्य बैठक कम से कम तीन (३) माह में एक बार अवश्य होगी तथा विशेष बैठक आवश्यकतानुसार किसी भी समय सदस्यों को निर्वाचित अधिकारी द्वारा सुचना देकर बुलाई जा सकती है |
सूचना अवधि : साधारण सभा की सामान्य बैठक की सूचना १५ दिन पूर्व तथा विशेष बैठक की सूचना ७ दिन पूर्व सदस्यों की दि जाएगी |
गणपूर्ति : साधारण सभा में उपस्थित सदस्यों में से २ / ३ की उपस्थिति गणपूर्ति मणि जाएगी |

                        निवेदक
               पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी
           प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
    धार्मिक प्रवक्ता-साहित्यकार-ओज कवि
मानस वक्ता-श्रीमद्भागवत-शिव कथा-यज्ञाचार्य
    मुंगेली - छत्तीसगढ़ - भारतवर्ष-४९५३३४

Monday, July 15, 2019

गुरु पूर्णिमा २०१९

गुरुपूर्णिमा

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते है। इसे व्यासपूर्णिमा भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान व्यास का जन्म हुआ था। इस  श्वेतवाराह कल्प के वैवस्वत मन्वंतर  में २८ द्वापर अब तक बीत चुके हैं। अत एव व्यास भी २८ हो चुके हैं जिनमे ब्रह्मा,  वशिष्ठ, वाल्मीकि, शक्ति, पराशर और अंतिम व्यास भगवान कृष्ण द्वैपायन मुख्य हैं। इनका नाम  परस्पर सम्बन्ध होने के कारण मैंने लिया है।

यह गुरुपूर्णिमा भगवान कृष्ण द्वैपायन की जन्म तिथि है। इसलिए इस व्यासपूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा भी कहा जाता  है। क्योंकि भगवान व्यास की ही प्रदर्शित पद्धति का उनके परवर्ती कवियों एवं विद्वानों ने अनुसरण किया है। इसीलिये कहते है की जो कुछ विद्वानों ने लिखा है वह व्यास जी का उच्छिष्ट ही है ----

"व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम् ।।"

२८ व्यासों में यही भगवान नारायण के साक्षात अवतार हैं ---

"कृष्णद्वैपायनं  व्यासं विद्धि नारायणं प्रभुम्।।" -- विष्णु पुराण ३/४/५.

इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनकी परंपरा में कई व्यास हो चुके है जैसे भगवान ब्रह्मा, वशिष्ठ, शक्ति और इनके पिता स्वयं पराशर। अर्थात आज तक इनकी परंपरा में जो प्रकट हुए वे व्यास ही हुए हैं इसलिए परंपरा से चले आ रहे सभी ज्ञानों की प्राप्ति इन्हें सरलतया हो गयी और श्रीहरि के अवतार वाला वैशिष्ट्य तो इनमें है ही। इनके उपदेष्टा गुरु देवर्षि नारद जी हैं। नारद जी के ४ शिष्य हैं २ बालक और २ वृद्ध, बालक शिष्यों में ध्रुव तथा प्रह्लाद आते हैं और वृद्ध शिष्यों में भगवान वाल्मीकि और ये व्यास जी!                                                 

व्यासजी के अवतार का कारण

पहले १०० करोड़ श्लोकों का एक ही पुराण था जो लोकस्रष्टा ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुआ ---

"पुराणां सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्। नित्यं शब्दमयं पुण्यं शतकोटिप्रविस्तरम्।।"-मत्स्य पुराण ३/३-४,

यह अति विशाल था जो आज हम लोगों के द्वारा  धारण = पढकर स्मरण नहीं किया जा  सकता था। इसीलिए व्यासजी का अवतरण होता है कि उसे 4 लाख श्लोकों में संक्षिप्त करके हम लोगों को सुख पूर्वक धारण योग्य बना दें। मत्स्यपुराण में इस तथ्य का इस प्रकार उद्घाटन किया गया है--

"कालेनाग्रहणं  दृष्ट्वा पुराणस्य ततो नृप। व्यास रूपमहं कृत्वा संहरामि युगे युगे।। चतुर्लक्षप्रमाणेन द्वापरे द्वापरे सदा।।

---53/8-9,

इस श्लोक की व्याख्या करते हुए भगवन्नामकौमुदीकार श्रीलक्ष्मीधर जी लिखते हैं –

"पूर्वसिद्धमेव पुराणम् सुखग्रहणाय संकलयामीत्यर्थः।"

अर्थात् पूर्वकाल से विद्यमान पुराण का सुखपूर्वक ज्ञान कराने के लिए मैं संक्षिप्तरूप में इसका संकलन करता हूँ। आज भी १०० करोड़ श्लोकों का पुराण ब्रह्मलोक में स्थित है। देखें  –स्कन्द पुराण आ० रे० १/२८-२९!

वेदों के विषय में भी यही स्थिति है प्राणियों के तेज बुद्धि बल आदि को अल्प देखकर व्यासजी वेदों का विभाजन करते है जिससे लोग सुख पूर्वक उसे धारण कर सकें ---

"हिताय सर्वभूतानां वेदभेदान्  करोति सः ---विष्णु पुराण ३/३/६.

जिन लोगो का अधिकार वेदों मे नही माना गया है ऐसे लोगो के लिये धर्म आदि का ज्ञान कराने हेतु विपुलकाय महाभारत की  रचना भगवान व्यास ने की।  पातंजलयोग दर्शन पर व्यास भाष्य लिखकर ये योगमार्ग को सर्व सुलभ कर दिए। उपनिषदों के गाम्भीर्य में डूब जाने वाले मनीषियो के अवलंबन हेतु ब्रह्मसूत्रों की रचना करके उपनिषद महासागर के संतरण हेतु ब्रह्मसूत्र रूपी सुदृढ़ नौका प्रदान करके जो उपकार भगवान बादरायण ने किया है उसका ऋण  न तो आचार्य शंकर न श्रीरामानुज न आचार्य श्रीरामानंद आदि ही उतार सकते हैं। भगवद्गीता तो  महाभारत के ही अंतर्गत है  इसलिए हम उसकी पृथक चर्चा नहीं कर रहे हैं। इन्हीं महत्वपूर्ण कार्यों के लिए भगवान व्यास का अवतरण होता है!

माता –पिता

चेदि देश में एक राजा थे जिनका नाम था उपरिचर वसु  उनकी पत्नी का नाम गिरिका था वे परम सौंदर्यवती थीं। महाराज देवराज इन्द्र की उपासना से एक दिव्य विमान प्राप्त किये थे जिससे इधर उधर सपत्नीक विचरण करते थे! एक दिन महाराज आखेट हेतु गहन वन  में प्रवेश किये अधिक दूर निकल जाने से समयानुसार राजमहल पहुँचने की संभावना नहीं थी।  उन्हें ध्यान आया कि महारानी गिरिका ऋतुस्नाता  हैं आज उनके समीप पहुचना आवश्यक है।

उधर पत्नी का चिंतन और इधर वसंत की शीतल मंद सुगंध वायु दोनों ने मिलकर महाराज के धैर्य को डिगा दिया। अंततः उनके तेज का स्खलन हो गया, धार्मिक नृप ने सोचा की मेरे तेज का स्खलन निरर्थक नहीं हो सकता –ऐसा दृढ़ निश्चय करके उसे पत्रपुटक में रखकर स्वपोषित श्येन = बाज पक्षी को महारानी के पास पहुंचाने का निर्देश दिया। आकाश में उस पक्षी को दूसरे श्येन ने देखा तो मांस समझकर आक्रमण कर बैठा। वह  रेतः पत्रपुटक सहित यमुना जी के जल में गिरा।

उसमें मछली के रूप में अद्रिका नाम की एक अप्सरा रहती थी जो किसी ऋषि के शाप से मत्स्य योनि को प्राप्त हुयी थी  वह उस तेज को निगल गई। जिसके फलस्वरूप वह गर्भवती हुई और अंत में जब मल्लाहों ने उसे पकड़कर देखा तो उसके उदर से एक बालक और एक बालिका निकली। बालक को महाराज ने स्वयं ले लिया तथा उसका नाम मत्स्य रखा जो बाद में राजा बना।

बालिका में चूँकि मछली की गंध आती थी इसलिए उसे धीवरो ने लेकर लालन पालन किया यह कृष्ण वर्ण की थी इसीलिए लोग इसे काली भी कहते थे, वास्तविक नाम सत्यवती था! द्वापर कलि की संधि का काल था, इसके पिता भोजन कर रहे थे उसी समय  महर्षि पराशर पहुंचे और यमुना को पार करने के लिए नाविक को आवाज दिए, विलम्ब होने से ऋषि क्रुद्ध हो जायेंगे इसलिए उसने पुत्री  सत्यवती को नौका द्वारा महर्षि को पार उतारने की आज्ञा दी, सत्यवती ने तत्काल पिता के मनोभाव को समझ लिया और नाव लेकर महर्षि के समीप पहुँच गयी।

ऋषि के पादपद्मों में प्रणाम करके नौका में चढ़ने का संकेत किया। सर्वज्ञ महर्षि नौकारूढ़ हो गए, भगवच्चिन्तन करने वालो में अग्रगण्य ऋषि ने ध्यान में देखा कि इस समय इस देश मे इस मुहूर्त में यदि गर्भाधान किया जाय तो साक्षात नारायण का अवतार होगा जिनसे विश्व का परम कल्याण होगा किन्तु मेरी पत्नी पास में है नहीं, क्या करूँ, जो पास में है वह अपरिणीता है और इसके शरीर से भयंकर दुर्गन्ध भी निकल रही है जिससे आज तक इसके साथ किसी ने विवाह तक नहीं किया।

इसी ऊहापोह में पड़े महर्षि ने विश्व के भावी कल्याण को ध्यान में रखकर शीघ्र ही उसे सम्पूर्ण रहस्य बताया, वह तो अपने दुर्गंधमय शरीर के कारण स्वतः हीनभावना से ग्रस्त रहती थी! जब अपने उदर से भगवान नारायण के प्रादुर्भाव का होना वह भी एक ब्रह्मवंशी सर्वज्ञ महर्षि के द्वारा सुनी तो उसका मनमयूर प्रसन्नता से नृत्य करने लगा!

अब उसने अपने भावों को व्यक्त करते हुए प्रकाश की ओर संकेत किया।  त्रिकालद्रष्टा महर्षि ने अपने तीव्र तपोबल का प्रयोग झटिति किया कि कहीं वह दिव्य वेला निकल न जाय, संकल्प मात्र से सघन कुहरे की सृष्टि कर दी, और भगवान का स्मरण करके गर्भाधान किया।

विश्व कल्याण का कार्य तो हो गया किन्तु इस कन्या का कन्यात्व भगवान के प्रकट होने बाद सुरक्षित रहे और इसके साथ विवाह हेतु बड़े से बड़े राजा लालायित रहें –इसकी व्यवस्था भी कर दी, अब उसके शरीर से दुर्गन्ध की जगह सुगंध निकल रही थी। कुछ काल के उपरान्त भगवान व्यास का जन्म हुआ एक द्वीप में और ये कृष्ण वर्ण के थे जैसे माता थी---

"काली पराशरात जज्ञे कृष्ण द्वैपायनं मुनिम्—"

अग्नि पुराण (कृष्ण वर्ण के कारण इनकी माता का एक उपनाम काली भी था)  इसलिए रूप और स्थान को दृष्टि में रखकर इनका नाम कृष्णद्वैपायन पड़ा!

यही भगवान कृष्णद्वैपायन हैं जिनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ। विद्वज्जन तो इसे "व्यासपूर्णिमा" नाम से जानते है पर चूँकि व्यास जी ने विश्व के सकल कवियों लेखकों और अन्य ऋषियों की अपेक्षा इतना गुरुतर कार्य किया कि यह पूर्णिमा गुरुपूर्णिमा नाम से विख्यात हो गयी।

काशीवाशी आज भी वर्ष में एक बार व्यास काशी गाँव जाकर व्यास मंदिर में उनकी पूजा एवं दर्शन करते है। वहाँ के विद्वानों में ऐसी प्रसिद्धि है कि वर्ष में एक बार जो काशी निवासी “व्यासकाशी” जाकर व्यास जी का दर्शन नहीं करता उसे काशीवास का फल नहीं मिलता है।

हम लोग काशी में विद्याध्ययन काल में व्यासकाशी जाकर भगवान कृष्ण द्वैपायन का दर्शन किये हैं, वहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इस पूर्णिमा को व्यासजी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

जो लोग वर्ष में एकबार भी अपने गुरुदेव के समीप नहीं पहुँच सकते वे यदि गुरुपूर्णिमा को गुरु की पूजा कर लें तो कल्याण ही कल्याण है। भगवान बादरायण कि महिमा का वर्णन कोई नहीं कर सकता ---

वे चार मिख वाले न होकर भी लोकस्रष्टा ब्रह्मा हैं  चतुर्भुज न होकर भी द्विभुज दूसरे विष्णु हैं ५मुख तथा १५नेत्र न होने पर भी साक्षात भगवान शंकर हैं ----

"अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो  हरिः! अभाललोचनः शङ्भुर्भगवान् बादरायणः।।"

भगवद्बादरायणकृष्णद्वैपायनव्यासो विजयतेततराम्

आप सबको *श्री गुरुपुर्णिमा* पर्व की ढ़ेरों बधाई व शुभकामनाएं...

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...