Thursday, April 2, 2020

जानिए क्यों स्वयं श्रीराम ने तोड़ दिया था रामसेतु?


जानिए क्यों स्वयं श्रीराम ने तोड़ दिया था रामसेतु?
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका पर चढ़ाई करते समय भगवान श्रीराम के कहने पर वानरों और भालुओं ने रामसेतु का निर्माण किया था, ये बात हम सभी जानते हैं। लेकिन जब श्रीराम विभीषण से मिलने दोबारा लंका गए, तब उन्होंने रामसेतु का एक हिस्सा स्वयं ही तोड़ दिया था, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। इससे जुड़ी कथा का वर्णन पद्म पुराण के सृष्टि खंड में मिलता है।

श्रीराम इसलिए गए थे लंका पद्म पुराण के अनुसार, अयोध्या का राजा बनने के बाद एक दिन भगवान श्रीराम को विभीषण का विचार आया। उन्होंने सोचा कि- रावण की मृत्यु के बाद विभीषण किस तरह लंका का शासन कर रहे हैं, उन्हें कोई परेशानी तो नहीं है। जब श्रीराम ये सोच रहे थे, उसी समय वहां भरत भी आ गए।

भरत के पूछने पर श्रीराम उन्हें पूरी बात बताई। ऐसा विचार मन में आने पर श्रीराम लंका जाने की सोचते हैं। भरत भी उनके साथ जाने को तैयार हो जाते हैं। अयोध्या की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंपकर श्रीराम व भरत पुष्पक विमान पर सवार होकर लंका जाते हैं।

जब श्रीराम से मिले सुग्रीव और विभीषण
जब श्रीराम व भरत पुष्पक विमान से लंका जा रहे होते हैं, रास्ते में किष्किंधा नगरी आती है। श्रीराम व भरत थोड़ी देर वहां ठहरते हैं और सुग्रीव से अन्य वानरों से भी मिलते हैं। जब सुग्रीव को पता चलता है कि श्रीराम व भरत विभीषण से मिलने लंका जा रहे हैं, तो वे उनके साथ हो जाते हैं।

 रास्ते में श्रीराम भरत को वह पुल दिखाते हैं, जो वानरों व भालुओं ने समुद्र पर बनाया था। जब विभीषण को पता चलता है कि श्रीराम, भरत व सुग्रीव लंका आ रहे हैं तो वे पूरे नगर को सजाने के लिए कहते हैं। विभीषण श्रीराम, भरत व सुग्रीव से मिलकर बहुत प्रसन्न होते हैं।

श्रीराम ने इसलिए तोड़ा था सेतु श्रीराम तीन दिन तक लंका में ठहरते हैं और विभीषण को धर्म-अधर्म का ज्ञान देते हैं और कहते हैं कि तुम हमेशा धर्म पूर्वक इस नगर पर राज्य करना। 

जब श्रीराम पुन: अयोध्या जाने के लिए पुष्पक विमान पर बैठते हैं तो विभीषण उनसे कहता है कि- श्रीराम आपने जैसा मुझसे कहा है, ठीक उसी तरह मैं धर्म पूर्वक राज्य करूंगा। लेकिन इस सेतु (पुल) के मार्ग से जब मानव यहां आकर मुझे सताएंगे, उस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए। 

विभीषण के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अपने बाणों से उस सेतु के दो टुकड़े कर दिए। फिर तीन भाग करके बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया। इस तरह स्वयं श्रीराम ने ही रामसेतु तोड़ा था।


                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

महाभारत की ये अद्भुत महिलाएं, जिनके आगे नहीं चलती थी किसी की भी!!!!!!


महाभारत की ये अद्भुत महिलाएं, जिनके आगे नहीं चलती थी किसी की भी!!!!!!
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महाभारत में या महाभारत काल में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। इस काल में महिलाएं जितनी स्वतंत्र थीं उतनी ही परतंत्र भी थी। संपूर्ण महाभारत में महिलाओं की स्थिति कैसी भी रही हो लेकिन उन्होंने कई मौकों अपनी जिद या ज्ञान के आगे बड़े बड़े महारथियों को झुका दिया था। आओ जानते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में।

सत्यवती👉 महाभारत की शुरुआत राजा शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से होती है। सत्यवती के बारे में पढ़ने पर पता चलता है कि यह एक ऐसी महिला थीं जिसके कारण भीष्म को ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी। कहते हैं कि सत्यवती ही एक प्रमुख कारण थी जिसके चलते हस्तिनापुर की गद्दी से कुरुवंश नष्ट हो गया। यदि भीष्म सौगंध नहीं खाते तो सत्यवती के पराशर से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास के 3 पुत्र पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर हस्तिनापुर के शासक नहीं होते या यह कहें कि उनका जन्म ही नहीं होता। तब इतिहास ही कुछ और होता।
 
गांधारी👉 सत्यवती के बाद यदि राजकाज में किसी का दखल था तो वह थी धृतराष्ट्र की पत्नीं गांधारी। कहते हैं कि गांधारी का विवाह भीष्म ने जबरदस्ती धृतराष्ट से करवाकर उसके संपूर्ण परिवार को बंधक बनाकर रखा था। गांधारी के लिए यह सबसे दुखदायी बात थी। गांधारी के लिए आंखों पर पट्टी बांधने का एक कारण यह भी था।
धृतराष्ट्र आंखों से ही नहीं, मन से भी अंधों की भांति व्यवहार करते थे इसलिए गांधारी और उनके भाई शकुनि को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता संभालनी पड़ी। गांधारी को यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं कुंती के पुत्र सिंहासनारूढ़ न हो जाए। ऐसे में शकुनि ने दुर्योधन के भीतर पांडवों के प्रति घृणा का भाव भर दिया था। हालांकि यह भी कहा जाता था कि शकुनि भीष्म, धृतराष्ट्र आदि से बदला लेना चाहता था इसीलिए उसने यह षड़यंत्र रचा था। 
 
गांधारी ने ही अपनी शक्ति के बल पर दुर्योधन के अंग को वज्र के समान बना दिया था। लेकिन श्रीकृष्ण की चतुराई के चलते उसकी जंघा वैसी की वैसी ही रह गई थी। क्योंकि श्रीकृष्ण ने कहा था कि मांग के समक्ष नग्न अवस्था में जाना पाप है। गांधारी मानती थी कि श्रीकृष्ण के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ और उन्हीं के कारण मेरे सारे पुत्र मारे गए। तभी तो गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को उनके कुल का नाश होने का श्राप दिया था।
 
कुंती👉 गांधारी के बाद कुंती महाभारत के पटल पर एक शक्तिशाली महिला बनकर हस्तिनापुर में प्रवेश करती है। कुं‍ती और माद्री दोनों ही पांडु की पत्नियां थीं। यदि पांडु को शाप नहीं लगता तो उनका कोई पुत्र होता, जो गद्दी पर बैठता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब पांडु के आग्रह पर कुंती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाहन किया। इस प्रकार माद्री ने भी देवताओं का आवाहन किया।

तब कुंती को तीन और माद्री को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनमें युधिष्ठिर सबसे ज्येष्ठ थे। कुंती के अन्य पुत्र थे भीम और अर्जुन तथा माद्री के पुत्र थे नकुल व सहदेव। कुंती ने धर्मराज, वायु एवं इन्द्र देवता का आवाहन किया था तो माद्री ने अश्विन कुमारों का। इससे पहले कुंति ने विवाहपूर्व सूर्य का आह्‍वान कर कर्ण को जन्म दिया था और उसे एक नदी में बहा दिया था।
 
एक शाप के चलते जब पांडु का देहांत हो गया तो माद्री पांडु की मृत्यु बर्दाश्त नहीं कर सकी और उनके साथ सती हो गई। ऐसे में कुंति अकेली पांच पुत्रों के साथ जंगल में रह गए। अब उसके सामने भविष्य की चुनौतियां थी। ऐसे में कुंति ने मायके की सुरक्षित जगह पर जाने के बजाय ससुराल की असुरक्षित जगह को चुना। पांच पुत्रों के भविष्य और पालन पोषण के निमित्त उसने हस्तिनापुर का रुख गया, जोकि उसके जीवन का एक बहुत ही कठिन निर्णय और समय था। कुंति ने वहां पहुंचकर अपने पति पांडु के सभी हितेशियों से संपर्क कर उनका समर्थन जुटाया।

सभी के सहयोग से कुंति आखिरकार राजमहल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गई। कुंति और समर्थकों के कहने पर धृतराष्ट्र और गांधारी को पांडवों को पांडु का पुत्र मानना पड़ा। राजमहल में कुंती का सामना गांधारी से भी हुआ। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं, तो गांधारी गंधार नरेश की पुत्री और राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी।
 
द्रौपदी👉 सत्यवती, गांधारी और कुंति के बाद यदि किसी का नंबर आता है तो वह थीं पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी। द्रौपदी के लिए पांचों पांडवों के साथ विवाह करना बहुत कठिन निर्णय था। सामाजिक परंपरा के विरुद्ध उसने यह किया और दुनिया के समक्ष एक नया उदाहण ही नहीं रखा बल्कि उसने अपना सम्मान भी प्राप्त किया और खुद की छवि को पवित्र भी बनाए रखा। द्रौपदी की कथा और व्यथा पर कई उपन्यास लिखे जा चुके हैं।
 
द्रौपदी को इस महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। द्रौपदी ने ही दुर्योधन को इंद्रप्रस्थ में कहा था, 'अंधे का पुत्र भी अंधा।' बस यही बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई थी। यही कारण था कि द्यूतकीड़ा में उनसे शकुनी के साथ मिलकर पांडवों को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था। द्यूतकीड़ा या जुए के इस खेल ने ही महाभारत के युद्ध की भूमिका लिख दी थी जहां द्रौपदी का चिरहरण हुआ था।
 
सुभद्रा👉 सुभद्रा तो कृष्ण की बहन थी जिसने कृष्ण के मित्र अर्जुन से विवाह किया था, जबकि बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो। बलराम के हठ के चलते ही तो कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। विवाह के बाद वे 1 वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इन्द्रप्रस्थ लौट आए। 
 
लक्ष्मणा👉 श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में एक जाम्बवती थीं। जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र का नाम साम्ब था। साम्ब का दिल दुर्योधन-भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन के पुत्र का नाम लक्ष्मण था और पुत्री का नाम लक्ष्मणा। दुर्योधन अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र से नहीं करना चाहता था।

भानुमती सुदक्षिण की बहन और दुर्योधन की पत्नी थी। इसलिए एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से प्रेम विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्ध करने आ पहुंचे।
 
कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए। बलराम ने कौरवों से निवेदनपूर्वक कहा कि साम्ब को मुक्त कर उसे लक्ष्मणा के साथ विदा कर दें, लेकिन कौरवों ने बलराम की बात नहीं मानी। तब बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया।

वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया। द्वारिका में साम्ब और लक्ष्मणा का वैदिक रीति से विवाह संपन्न हुआ।

सत्यभामा👉 सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी थीं। राजा सत्राजित की पुत्री श्रीकृष्ण की 3 महारानियों में से 1 बनीं। सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु था। सत्यभामा को एक और जहां अपने सुंदर होने और श्रेष्ठ घराने की राजकुमारी होने का घमंड था वहीं देवमाता अदिति से उनको चिरयौवन का वरदान मिला था जिसके चलते वह और भी अहंकारी हो चली थी। 

महाभारत में उसका चरित्र इसीलिए उभरकर सामने आते है क्योंकि वह राजकार्य और राजनीति में रुचि लेती थी। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था।

तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी थी। इस तरह सत्यभामा के कई किस्से प्रचलित है। सत्यभामा का घमंड अनुमानजी ने तोड़ा था।
 
अन्य महिलाएं👉 भीम पत्नीं हिडिम्बा, दुर्योधन पत्नी भानुमति, अर्जुन की पत्नी उलूपी, श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवन्ती और सत्यभामा अदि अनेक महिलाऐं थी जिनका महाभारत में उल्लेख मिलता है। प्रत्येक महिला में अद्भुत खुबियां थीं।


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                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Monday, March 30, 2020

श्री रामनवमी पर्व पर कविता २०२०

माता कौशल्या  के जाये, सुंदर  बालकरूप  सुहाये।
भूमीभारहरण को आये,मिलकर सखियां गीत गायें।।

विश्वामित्र  जो संग ले आया उसका  पूरण यज्ञ कराया।
शंकर धनुष मरोड़गिराया जनकसुता सुखधाम बनाया।।

दशरथ बचन मान रघुराई बनको गये  सीया ले भाई।
रावण सीता गई चुराई हनुमत जाय के लंका जलाई।।

बीच समुंदर पुल बनवाई लंका जाकर के करी लड़ाई।
राक्षससेना मार गिराई राज विभीषण अवधपुरी आई।।

             ©पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी®
              धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                 डिंडोरी, मुंगेली - छ.ग.
          ७८२८६५७०५७/८१२००३२८३४

Sunday, March 29, 2020

गीत गाते चलो,प्यार पाते चलो


गीत गाते चलो,प्यार पाते चलो
मीत मेरे हृदय, गुनगुनाते चलो।

साथ अच्छा लगे,आज मिलकर सभी 
फासले ले तनिक,साथ आओ अभी,
द्वेष का हो क्षरण,नेह का हो वरण,
प्रेम का आचरण,स्वच्छ गह कर करण।
गीत गाते चलो,प्यार पाते चलो, 
मीत मेरे हृदय, गुनगुनाते चलो।

राह कंटक भरा,दूर चलना अभी 
लक्ष्य की साधना, फूल फलना अभी,
काँध पर धार कर,भार उनका गहो
जो निबल साथ में, साथ उनके रहो।
बस यही साधना,मत किसी को छलो,
मीत मेरे हृदय, गुनगुनाते चलो।

सुन समय की गिरा,चित्त एकाग्र कर
उस परम श्रेय का,ही पकड़ कर डगर,
त्याग नश्वर जरा,जीर्ण संसार तू
आत्म विस्तार ले,सूर्य आधार तू।
श्रेष्ठ पथ पर रहो,मत किसी को खलो,
मीत मेरे हृदय, गुनगुनाते चलो।

              
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Friday, March 27, 2020

आज का संदेश


           🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                                   *सनातन धर्म पूर्ण वैज्ञानिकता पर आधारित है , हमारे पूर्वज इतने दूरदर्शी एवं ज्ञानी थे कि उन्हेंने आदिकाल से ही मानव कल्याण के लिए कई सामाजिक नियम निर्धारित किये थे | मानव जीवन में वैसे तो समय समय पर कई धटनायें घटित होती रहती हैं परंतु मानव जीवन की दो महत्त्वपूर्ण घटनायें होती हैं जिसे जन्म एवं मृत्यु कहा जाता है | किसी नये जीव का जन्म लेना एवं किसी जीव का इस संसार को छोड़कर जाना अर्थात उसकी मृत्यु हो जाना इस सृष्टि की दो महत्वपूर्ण घटनायें हैं | इन दोनों ही अवसर पर हमारे पूर्वजों ने कुछ विशेष नियम मानवमात्र के लिए निर्धारित किये थे | मानव जीवन को कई प्रकार से प्रभावित करने वाले संक्रमणों से बचने के लिए ही इन नियमों को बनाया गया था | सन्तान का जन्म होने पर नवजात शिशु एवं प्रसूता (माता) को परिवार के सम्पर्क से दूर करते हुए एक कमरे में स्थान दिया जाता था जिससे कि जन्म देते समय प्रकट हुआ संक्रमण परिवार के अन्य सदस्यों को न संक्रमित कर पाये | यह सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) सवा महीने की होती थी | उसी प्रकार किसी की मृत्यु पर दाहक्रिया करने वाला भी दस दिन तक समाज से दूर रहा करता था , क्योंकि हमारे पूर्वजों का मानना था कि दाहक्रिया करते समय मृतक के शरीर से निकले हुए अनेक कीटाणु / विषाणु दाहकर्ता के सम्पर्क में आये होंगे किसी अन्य को वे संक्रमित न कर सकें इसीलिए दाहकर्ता दस दिन तक सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के नियम का पालन करता रहा है | उसके अतिरिक्त हमारे दरवाजों पर एक बाल्टी में पानी भरा रखा होता था जिससे कि बाहर से आना वाला कोई भी हो हाथ - पैर धुलकर ही घर में प्रवेश करे जिससे कि उसके हाथ - पैरों के माध्यम से कोई संक्रमित कीटाणु घर में प्रवेश न कर पाये | यह सनातन के नियम थे जिसका पालन यत्र तत्र आज भी देश के गाँवों में देखने को मिल जाता है , लेकिन धीरे - धीरे हम आधुनिक होते गये और उपरोक्त सारे नियम हमको पिछड़ापन एवं गंवारपन लगने लगा , बम अपनी मान्यताओं से दूर होकर आधुनिकता की चकाचौंध में खोते चले गये | आज सन्तान का जन्म होने पर माता एवं नवजात शिशु की सामाजिक दूरी लगभग समाप्त सी होती दिख रही है यही कारण है कि लोग अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो रहे हैं | सनातन. की कोई भी मान्यता महज दिखावा नहीं बल्कि ठोस कारणों पर आधारित थी परंतु आज का मनुष्य उसके रहस्यों को समझ पाने में सक्षम नहीं रह गया है | आज समय परिवर्तित हुआ तो सामाजिक दूरी का महत्त्व लोगों की समझ में आने लगा है |*

*आज समस्त विश्व में लोग सनातन की प्राचीन मान्यताओं को मानने पर बाध्य हो रहे हैं | विश्व का प्रत्येक देश सामाजिक दूरी बनाये रखने की अपील कर रहा है | आज कोरोना संक्रमण ने समस्त विश्व में कोहराम मचा रखा है , एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाले इस संक्रमण ने समूचे विश्व को हिलाकर रख दिया है , लाखों व्यक्ति इस संक्रमणीय महामारी से प्रभावित हो गये हैं | चिकित्सा पद्धति में महारत हासिल कर चुके मनुष्य को इस बीमारी की चिकित्सा नहीं मिल पा रही है | यदि बीमारी होती तब तो चिकित्सा संभव थी परंतु यह महामारी है महामारी की चिकित्सा ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता | ईश्वर एवं सनातन की मान्यताओं का मजाक उड़ाने वाले आज सामाजिक दूरी बनाकर अपने घरों में बैठे बैठे उसी ईश्वर से प्रार्थना कर रहे है कि इस महामारी से बचाईये | मैं आज समूचे विश्व में हो रही तालाबन्दी (लॉकडाउन) को देख रहा हूँ , यह तालाबन्दी इसलिए हो रही है कि लोग एक दूसरे से दूर रहें जिससे कि कोरोना का संक्रमण एक दूसरे में फैलने न पाये | मैं गर्व करता हूँ अपने पूर्वजों पर ( जिन्हें आज के तथाकथित गंवार एवं पिछड़ा कहा करते हैं ) जिन्होंने संक्रमणीय रोगों में सामाजिक दूरी का पालन बहुत पहले से करना प्रारम्भ कर दिया था | आज के आधुनिक मनुष्य को अपना जीवन बचाने के लिए सनातन की मान्यताओं के अतिरिक्त अन्य कोई भी मार्ग नहीं दिखाई पड़ रहा है | सनातन की प्रत्येक मान्यता मे मानवमात्र का कल्याण निहित है , अभी भी समय है कि हम इन मान्यताओं को पिछड़ापन न मानकरके इन्हें  अपना कर इस महामारी के संकटकाल में इस संक्रमण को रोकते हुए सामाजिक दूरी बनाने का प्रयास करें ! अभी तक जो गल्ती करते रहे हैं उसे अब न दोहराया जाय तो शायद यह अनमोल जीवन बच जाय !*

*सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाय तो उसे भूला नहीं कहते हैं इस सूक्ति को ध्यान में रखते हुए आओं लौट चलें सनातन मान्यताओं की ओर |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, March 26, 2020

आज का संदेश

           🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴

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                                   *मानव जीवन में अनेकों प्रकार की एवं मित्र बना करते हैं कुछ शत्रु तो ऐसे भी होते हैं जिनके विषय में हम कुछ भी नहीं जानते हैं परंतु वे हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध होते हैं | शत्रु से बचने का उपाय मनुष्य आदिकाल से करता चला आया है | अपने एवं अपने समाज की सुरक्षा करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है , अपने इस कर्तव्य का पालन मनुष्य आदिकाल से करता चला रहा है |  कुछ शत्रु ऐसे होते हैं जो संपूर्ण मानव जाति के लिए घातक सिद्ध होते रहे हैं | पूर्वकाल में हमारे यहां जब राजतंत्र था तब राजा लोग अपनी एवं अपने प्रजा की सुरक्षा के लिए एक मजबूत किले का निर्माण कराते थे , संपूर्ण प्रजा उसी किले के भीतर प्रेम से रहा करती थी | जब किसी शत्रु का आक्रमण होता था तो सर्वप्रथम प्रजा की सुरक्षा के लिए किले के दरवाजे को बंद कर दिया जाता था जिससे कि वह शत्रु किले में पहुंचकर प्रजा को नुकसान न पहुँचा सके | किले के अंदर ही बैठकर राजा अपने मंत्रियों के साथ शत्रु से लड़ने की योजना बनाया करते थे | कभी-कभी तो यह भी देखने को मिला है कि शत्रु सेना किले को न भेद पाई और उसे निराश होकर वापस लौटना पड़ा है | इतिहास साक्षी है कि मनुष्य विवेकवान प्राणी और अपने विवेक से उसने अपने शत्रुओं को पराजित भी किया है |  परंतु इसके लिए शत्रु के विषय में जानकारी एवं समय की अनुकूलता आवशयक है | जिसने समय को ना पहचाना और अपने बल के अहंकार में स्वयं से बलवान शत्रु से भिड़ने का प्रयास किया उसका पतन भी हो गया है | बुद्धिमत्ता यही है कि अपने शत्रु की शक्ति का आकलन करके तब उससे युद्ध ठाना जाय , शत्रु समुपस्थित होता है तो उस से युद्ध करना आसान हो जाता है परंतु जो शत्रु अदृश्य होकरके प्रहार कर रहा हो उससे युद्ध करके विजय प्राप्त कर पाना बहुत ही कठिन कार्य होता है | ऐसे में स्वयं को सुरक्षित करना ही एकमात्र उपाय बचता है | आज वहीं पर स्थिति संपूर्ण विश्व के सामने उपस्थित है शत्रु प्रबल है ,  और हम उसके स्वरूप को जानते भी नहीं ऐसे में स्वयं की सुरक्षा ही बचाव है |*

*आज संपूर्ण विश्व में मानव जाति के लिए प्रबल शत्रु बन करके कोरोना नामक महामारी तांडव तो मचा ही रही है साथ ही अदृश्य रूप में मानव जाति पर प्रहार करके मनुष्य को असमय ही काल के गाल में पहुंचा रही है | यह शत्रु ऐसा है जो हमको दिखाई तो नहीं पड़ता परंतु उसका प्रहार प्राणघातक होता है | ऐसे में हमें अपने पूर्वजों से सीख लेते हुए अपने किले अर्थात घर के दरवाजों को बंद करके घर के अंदर बैठकर शत्रु से लड़ने योजना बनानी चाहिए या फिर शत्रु के वापस चले जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए | मैं आज के संकट काल में समस्त देशवासियों को यही निवेदन करना चाहूंगा कि आज एक ऐसा प्रबल शत्रु प्राणघातक बनकर मानव जाति के लिए काल बना हुआ है जिसे कोरोना संक्रमण कहा जा रहा है और उससे युद्ध करने की सामग्री हमारे पास नहीं है , ऐसे में स्वयं को अपने घरों में सुरक्षित रखना ही बुद्धिमत्ता कही जा सकती है | जो लोग शत्रु के बल को ना जान करके बहादुरी दिखाते हुए अपने घरों के दरवाजों को खोलकर बाहर घूम रहे हैं वह स्वयं तो काल के गाल में जाने की तैयारी कर ही रहे है साथ ही एक बड़े समाज को भी शत्रु के सामने परोस रहे हैं | जो कि मानवमात्र के लिए घातक है | अपनी बुद्धि - विवेक का प्रयोग करके इतिहास के सीख लेते हुए प्रत्येक मनुष्य को अपनी एवं अपने परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाते हुए तब तक घरों में रहना है जब तक कि शत्रु वापस न चला जाए अन्यथा यह शत्रु इतना प्रबल है कि तत्क्षण मनुष्य को अपनी चपेट में ले लेता है अत: सुरक्षित रहें |*

*समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता है इस समय मनुष्य के लिए अच्छे दिन नहीं चल रहे है इसलिए विवेक का प्रयोग करते हैं घरों में बैठकर अच्छे दिनों की प्रतीक्षा करना ही एकमात्र उपाय है |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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आज का संदेश



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      🚩 *"नववर्ष सम्वतसर" पर विशेष* 🚩

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                                  *हमारे देश भारत में समय-समय पर अनेकों त्योहार मनाए जाते हैं | भारतीय सनातन परंपरा में प्रत्येक त्योहारों का एक वैज्ञानिक महत्व होता है इन्हीं त्योहारों में से एक है "नववर्ष संवत्सर" जो कि आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को माना जाता है | आदिकाल से यदि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष माना जा रहा है तो इसका कारण है कि आज के ही दिन सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ तथा ऐसी मान्यता है कि आज के ही दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की संरचना प्रारम्भ की थी | नववर्ष तभी मनाना सार्थक होता है जब सृष्टि में नवीनता हो और यह नवीनता अन्य धर्मों की अपेक्षा सनातन हिन्दू नववर्ष के अवसर पर समस्त सृष्टि में देखने को मिलती है | खेतों में तो हरियाली होती ही है साथ ही पतझड़ के बाद वृक्षों में नई कोपलें फूटने लगती हैं , फलदार वृक्षों में फूल आने लगते हैं सारे वृक्ष फलीय रसों से भर जाते हैं इसीलिए चैत्र को मधुमास भी कहा जाता है | सनातन हिन्दू धप्म पूर्ण रूप से वैज्ञानिकता पर आधारित है , समस्त सृष्टि ऋतुओं पर आधारित हैं , ऋतुओं के संधिकाल पर हमारे यहाँ नवरात्र मनाने की भी परम्परा रही है | यद्यपि आज सृष्टि का प्रथम है और बिना शक्ति के कोई भी यात्रा नहीं हो सकती इसीलिए प्रथम दिन से नौ दिन तक शक्ति उपासना करने का विधान है | नववर्ष सम्वतसर या चैत्र नवरात्र को यदि यदि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाय तो इसका विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्र में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है | वर्ष भर सूर्य बारह राशियों में भ्रमण करते हुआ पहली राशि मेष में आज के ही दिन प्रवेश करके अपनी नवीन यात्रा प्रारम्भ करते हैं | चैत्र नवरात्र प्रतिपदा को ही नववर्ष मानते हुए हिन्दू पञ्चांग की गणना प्रारम्भ होती है | यद्यपि विश्व में अनेक धर्म हैं और प्रत्येक धर्म का नववर्ष भी भिन्न है परंतु सनातन हिन्दू नववर्ष की जो वैज्ञानिकता , मान्यता एवं दिव्यता है वह अन्य नववर्षों में कदापि देखने को नहीं मिलती इसीलिए सनातन को दिव्य कहा जाता है |*

*आज अर्थात चैत्र प्रदिपदा से ही शक्ति की आराधना का पर्व "नवरात्र" प्रारम्भ होने के पीछे भी मान्यता है कि जब ब्रह्मा जी को सृष्टि का सृजन करने के लिए आत्मिक , बौद्धिक एवं शारीरिक शक्ति की आवश्यकता प्रतीत हुई तब उन्होंने आदिशक्ति की उपासना प्रारम्भ की | आज भले ही सम्पूर्ण विश्व में ईसाई नववर्ष की धूम हो परंतु आज भी जनवरी की अपेक्षा मार्च / अप्रैल से वित्तीय वर्ष एवं कार्यालयों के कार्य सम्पन्न होते हैं | आज के दिन प्रत्येक हिन्दू जनमानस को अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजन करके अपने घरों पर ध्वजारोहण करना चाहिए | मैं विचार करता हूँ कि शक्ति की आराधना करके ही जीवन में कुछ अर्जित किया जा सकता है | आदिशक्ति महामाया के बिना सृष्टि की संकल्पना करना ही व्यर्थ है | जिस प्रकार किसी भी परिवार का कुशल नेतृत्त्व एवं कुशल संचालन भवीभांति एक गृहिणी (नारीशक्ति) ही कर सकती है उसी प्रकार इस विशाल सृष्टि का पालन एवं संचालन आदिशक्ति महामाया के बिना असम्भव है | जो उत्पत्ति , पालन एवं संहार का आदिकारण हैं , समय समय पर जीवों पर दया करने के भाव से विभिन्न स्वरूपों में अवतरित होकर जीवमात्र का कल्याण करने वाली पराम्बा जगदम्बा की आराधना वर्ष के प्रथम दिन से इसीलिए की जाती रही है | चैत्र नवरात्र का धार्मिक महत्त्व इसलिए भी विशेष है क्योंकि इस नवरात्र में जहाँ प्रथम दिवस महामाया का प्रादुर्भाव हुआ था वहीं इसी नवरात्र की तृतीया को भगवान श्री हरि विष्णु ने प्रथम अवतार मत्स्यावतार धारण किया था और इसी नवरात्र की नवमी को इस धराधाम पर लुप्त हो रही मर्यादा की पुनर्स्थापना करने के लिए मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का अयोध्या में अवतरण हुआ था | कुल मिलाकर सनातन हिन्दू नववर्ष सम्वतसर चैत्र का वैज्ञानिक , ज्योतिषीय एवं धार्मिक दृष्टि से अपना विशेष महत्व है | प्रत्येक जनमानस को आज के दिन नववर्ष मनाते हुए शक्ति की आराधना करनी चाहिए |*

*जीवन में नवीनता एवं उल्लास लेकर नववर्ष आता है औऱ साथ ही शक्ति की उपासना का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाकर जीवन को सार्थक बनाना मानव जीवन का परम लक्ष्य है |*

     🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺

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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                     आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

न्यू २

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