Thursday, April 16, 2020

कपट


    
       😡 *कपट* 😀 

👉  *मानव को कपट  रहित होना परम आवश्यक है या कपट का सदुपयोग करना आवश्यक है। हमें सोचना चाहिऐ❗️* 🤔 

👉 शास्त्र कहता है - *निर्मल मन जन सो मोहि पावा*।  कहने का तात्पर्य स्वच्छ मन - कुंठा भय अवसाद घृणा क्रोध रहित मानव ही मेरा वरणीय है।

👉 आगे शास्त्र कहता है -  *मोहि कपट छल छिद्र न भावा*। कहने का तात्पर्य  परमात्मा कपट यानि छल रूपी मानव को बिल्कुल भी वरणीय नही मानते। कारण बहां पर करी हुई अमृत कृपा घट मे एक छिद्र भांति है। जहां पर अमृत धीरे धीरे रिसकर व्यर्थ हो जायेगा। मानव उसका उपयोग नही कर सकता या लाभ नही ले पायेगा। 

👉 *हृदय मन में अनेको भाव रहने पर मानव जीवन का उपयोग नही कर पायेगा ।*  बह समस्त प्रकल्प कपटता के संवर्धक होते है। मानव जीवन का हेतु मोक्ष है। परंतु अनेको भावो के कारण बह च्युत हो जाता है।

👉 *कपट मन का मल है* -  जब निस्तारण करने योग्य मल हमारे उदर मे शेष रहता है। मानव चित्त उद्गिनता को व्याप्त रहता है। यानि शांति से दूर रहता है। अन्य भोज्य पदार्थ ग्रहण नही करना चाहता। ऐसे ही चित्त व्याप्त कपटता सही वस्तु के वरण से दूर रखता है। परमात्मा द्वारा प्रदत्त स्वांस प्रस्नांस मानव व्यर्थ कर देता है यानि समय का सदुपयोग नही कर पाता है।

👉 एक मानव को कटु शब्द नही बोलने चाहिए❗️ यह शत प्रतिशत ठीक है । लेकिन कटुता यदि मन में आ जाए तब स्पष्ट मन्तव्य से अवगत करा दे या सानिन्धय का सरलता से त्याग कर दे। जैसे ख़तरा होने पर मछली सहजता से   दूर चली जाती है ।  लेकिन मन में न पाले ।

👉  कटु शब्द न बोलने से १००० गुना आवश्यक है निष्कपट होना । जिस हेतु शास्त्र कहता है - 

*सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥*

सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही *सनातन धर्म है ॥*

🖕🏼 यही सरलतम्  रूप में कपट की व्याख्या है।💐👏

👉 तभी कहा निर्मल मन यानि बिना राग द्वेष का  ही मानव ही सर्वविद्  वरणीय होता है। 

👉 शास्त्रों में एक भी वरणीय भक्त ऐसा नही जो कपटी हो । 😡 लेकिन  अधिकतर मानव- *कपट मुक्त होने हेतु क्रोध करते या कटु शब्द बोलते दिखते हैं ।*  श्राप आदि कटु शब्द नही तो और क्या है ❓ 😫अतः *निष्कपट होना । मन वचन कर्म एक होना ही निष्कपट भाव का दर्शन लाभ कराने में सहयाक सिद्ध होता है।*

👉 कोई भी शब्द घृणित या निम्न कोटि का नही होता। कपट भी प्रकृति प्रदत्त एक शब्द है। तो घृणित उपेक्षित कैसे हो सकता है❓ 

👉 मानव द्वारा सृजन समस्त पदार्थों के मूल मे कपटता ही आधार होता है।
 आज का परमाणु बॉम्ब सबसे सरल उदाहरण है। जिसके प्रयोग से मानव भय से काँपते है। इसके सृजन मे मानव की कपटता की भावना अन्तर्निहित भावना का परिणाम है।

👉 मानव कपट का उपयोग स्व भोग्य या विलासिता में करने के कारण बह आज भस्मासुर की तरह बन  चुका है। *कपट का प्रयोग दूसरो को हानि पहुँचाने के  कार्य को सिद्ध कराने मे करने से स्वयं का अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ गँवा देता है।*

👉 कपट का प्रयोग दूध से दही मक्खन बनाकर घृत बनाने हेतु खट्टे पदार्थ की तरह प्रकृति के साथ करने पर मानवीयता सिरमोर होती है।

*कहने का तात्पर्य हुआ प्रकृति प्रदत्त कोई भी पदार्थ या शब्द निर्थक नही है। उसका उपयोग करना मानव*
नही जानता। परिणाम 👉 *अवसाद घृणा कुंठा,  मानव के चित्त व अन्त:करण मे व्याप्त होकर मानव के विवेक रूपी घृत के दर्शन से विलग ( दूर ) रखने में सहायक सिद्ध हो जाता है। जिससे मानव जीवन निर्थक होकर नि:शेष 👎 हो जाता है।* 😦😖😫👏

  *अत: हम कपट का बहुत सूक्ष्मता के साथ प्रयोग करना चाहिऐ। जैसे आज कॉरोना का सटीक परिणाम हमारे सम्मुख साश्वत है। सनातन संस्कृति 🚩 में कपटता से दूर ❌🛑 रहने के लिऐ कहा गया है।* हम भी ध्यान देकर मानव जीवन का सदुपयोग करें।🌸🌸👏👏🌸🌸👏👏👏

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, April 15, 2020

गलत तरीके से कमाया गया धन💰, आपकी खुशियों को ले डूबता है‼


*🤔गलत तरीके से कमाया गया धन💰, आपकी खुशियों को ले डूबता है‼*

*आज के समय में हर व्यक्ति धन💰 प्राप्ति की चाह में इस तरह से अंधा🥺 बन गया है कि उसके पास यह चिंतन😌 करने का ही समय⏱ नहीं है कि वह जिस मार्ग द्वारा वह धन अर्जित कर रहा है, क्या नैतिक द्रष्टि👁 से वह उचित है ❓ धन की देवी को लक्ष्मी👣 कहा गया है | माँ लक्ष्मी स्वभाव से बड़ी चंचल है | वह एक स्थान या एक घर 🏚में अधिक समय तक नहीं रूकती | जो व्यक्ति अनैतिक तरीकों से धन💰 अर्जित करते है उनके पास लक्ष्मी 👣कुछ समय के लिए तो रूकती है किन्तु कुछ समय बाद वहाँ से चली भी जाती है और अपने साथ-साथ उस घर से खुशियाँ☺ भी ले जाती है |*

*कानून⚖ का उल्लंघन करते हुए धन 💰अर्जित करना, दूसरों का धन हड़प(छीन👊🏿 लेना, चोरी या लूट का पैसा, जुए 🃏द्वारा पैसा कमाना, ऐसे बहुत से गलत ❌तरीके है धन 💰प्राप्त करने के, जो एक बार तो आपको कुछ समय⏱ के लिए ख़ुशी दे सकते है किन्तु बाद में विकट👿 परिस्थितियों को ही जन्म देते है | ऐसे व्यक्ति के परिवार👩‍👩‍👧‍👦 से हर खुशियाँ गायब होने लगती है | ऐसे व्यक्ति को लाख चिंतन करने बाद भी परिवार पर आने वाले दुखों ☠का मूल कारण तक समझ नहीं आता |*

*यह सत्य✔ है कि धन💰 के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, थोड़ा 😌बहुत धन हमें चाहिए और  इस थोड़े धन को नेक तरीके से अर्जित करने का सामर्थ्य 💪🏻लगभग सभी लोगों में होता है | किन्तु लोगों की समस्या यह है कि उन्हें सिर्फ इतना धन नहीं चाहिए कि जिससे उनका खर्च आसानी🙂 से चल सके | उन्हें तो धनवान बनना है, धन कमाने की दौड़ 🏃में सबसे आगे निकलना है | अपनी आने वाली पीड़ियों को इतना धन देकर जाना है कि वे जन्म लेते ही धनाड्य👑 कहलाये | बस यही सोच 🤔गलत तरीकों से धन कमाने के कारणों को जन्म देती है |*

*धन 💰द्वारा बहुत सी खुशियाँ 😊तो खरीदी जा सकती है किन्तु सारी नहीं❌, अभी भी बहुत कुछ शेष है जो खरीदना बाकी है, क्या धन के द्वारा यह सब खरीद पाना संभव है ❓ सारी खुशियाँ प्राप्त कर पाना, धन के द्वारा संभव नहीं है | यह सब आपके संस्कारों 👏🏻पर निर्भर करता है और संस्कार👏🏻 बनते है आपके पूर्वजन्म के अच्छे कर्मों🙏🏻 से | इसलिए अच्छे कर्मों के द्वारा संस्कार कमाए, गलत👿 तरीकों से धन नहीं❌।*
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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

इन 4 महिलाओं का हर हाल में सम्मान करना चाहिए

*इन 4 महिलाओं का हर हाल में सम्मान करना चाहिए*
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तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरित मानस नीति-शिक्षा का एक महत्मपूर्ण ग्रंथ है। इसमें बताई गई कई बातें और नीतियां मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती हैं। जिनका पालन करके मनुष्य कई दुखों और परेशानियों से बच सकता है।

रामचरित मानस में चार ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान हर हाल में करना ही चाहिए। इन चार का अपमान करने वाले या इन पर बुरी नजर डालने वाले मनुष्य महापापी होते हैं। ऐसे मनुष्य की जीवनभर किसी न किसी तरह से दुख भोगने पड़ते ही है।

*अनुज बधू भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी।*
*इन्हिह कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई।।*

_*अर्थात- छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री- ये चारों एक समान होती हैं। इन पर बुरी नजह डालने वाले या इनका सम्मान न करने वाले को मारने से कोई पाप नहीं लगता।*_

*१. छोटे भाई की पत्नी*

छोटे भाई की पत्नी बहू के समान होती है। उस पर कभी बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य का परिणाम बुरा ही होता है। रामचरितमानस के अनुसार, किष्किन्धा के राजा बालि ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज्य से बाहर निकाल कर उसकी पत्नी रूमा को अपने अधीन कर लिया था।

छोटे भाई की पत्नी पर बुरी दृष्टि डालना या उसके साथ बुरा व्यवहार करना महापाप होता है। इसी वजह से खुद भगवान राम ने बाली का वध करके उसे उसके कर्मों की सजा दी थी। इसलिए हर मनुष्य को अपने छोटे भाई की पत्नी को अपनी बहू के समान ही समझना चाहिए।

*२. पुत्र की पत्नी*

पुत्र की पत्नी बेटी के समान मानी जाती है। अपनी बहू के सम्मान की रक्षा करना सबका धर्म होता है। मनुष्य को भूलकर भी अपनी बहू का अपमान नहीं करना चाहिए, न ही उसका अपमान होते देख, उस बात का समर्थन करना चाहिए।

रामायण में दी गई एक घटना के अनुसार, एक बार स्वर्ग की अप्सरा रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रास्ते में रावण ने उसे देखा और बुरी नीयत से रोक लिया। रावण को कामातुर होता देख रंभा ने कहा कि आज उसने कुबेर के पुत्र नलकुबेर को मिलने का वचन दिया है और इसलिए वह रावण की पुत्रवधू के समान है।

रंभा के ऐसा कहने पर भी रावण ने उसकी बात नहीं मानी और उसके साथ बुरा व्यवहार किया। रावण के ऐसा करने पर रंभा ने क्रोधित होकर उसे किसी भी स्त्री पर नजह डालने पर उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाने का और किसी स्त्री की वजह से ही उसका विनाश होने का श्राप दे दिया था। पुत्रवधू का यही श्राप रावण के विनाश का कारण बना।

*३. अपनी पुत्री*

अपनी पुत्री का सम्मान करना, हर बुरी परिस्थिति से उसे बचाना पिता का धर्म होता है। अपनी पुत्री के साथ बुरा व्यवहार करना, उसे बुरी दृष्टि से देखने से बड़ा पाप और कोई नहीं होता।

ऐसा कर्म करने वाला मनुष्य महापापी माना जाता है और उसे जीवन भर दुःखों का सामना करना ही पड़ता है। ऐसा मनुष्य चाहे कितने ही दान धर्म कर ले, लेकिन उसके पाप का निवारण नहीं होता। इसलिए मनुष्य को भूलकर भी अपनी पुत्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

*४. बहन*

मनुष्य को अपनी छोटी बहन को पुत्री और बड़ी बहन को माता के समान समझना चाहिए। जो मनुष्य अपनी बहन के मान की रक्षा नहीं करता या अपने निजी स्वार्थ के लिए उसका अपमान करता है, उसे राक्षस प्रवृत्ति का माना जाता है।

बहन का अपमान या उसके साथ बुरा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को जीवित होते हुए भी नरक के समान दुःख उठाने पड़ते हैं। मनुष्य को किसी भी हाल में अपनी बहन का अपमान नहीं करना चाहिए और हमेशा उसकी रक्षा करना चाहिए।

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, April 14, 2020

कैसे गीत मल्हार लिखूं....!!

🙏🏻🌸🌼गीत🌼🌸🙏🏻


जलती ज्वाला देखी थी कल,इक तितली की पाँखों में,
भय का मातम देख रहा हूँ,आज भ्रमर की आँखों में,
उजड़े उजड़े उपवन देखे,सहमी सहमी कली मिली,
शोक समाहित पनघट सारे,सूनी चौखट गली मिली,

कोयल कागा एक हुए अब,कैसे मुक्त विचार लिखूँ ।।(1)
आग उगलती आज हवायें,कैसे गीत मल्हार लिखूँ ।।

काली काली करतूतों की,आज मिली छवि धुली धुली,
चंदन की खुशबू में जैसे,आ करके दुर्गन्ध घुली,
राजनीति की चौपालों पर,खेल अभी भी जारी है,
इसनें लूटा उसनें लूटा,अब अगले की बारी है,

साँप नेवले हैं गठबन्धित,किसमें* *भरा विकार लिखूँ ।।(2)
आग उगलती आज हवायें,,,,,

कितनें शीश चढाये हमनें,इंकलाब की भाषा में,
कितनें दीप बुझाये हमनें,एक किरण की आशा में,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख पारसी,एक पालकी लानें को,
हर एक यहाँ पर आतुर था,अपनें प्राण लुटाने को,

फाँसी के फन्दों पर लटके,बलिदानी परिवार लिखूँ ।।(3)
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

महा-मूर्ति नें चाहा होता,सत्ता भी झुक सकती थी,
राजगुरू सुखदेव भगत की,फाँसी भी रुक सकती थी,
चाचा जी उस रोज अगर तुम,इतना भेद छुपा जाते,
अल्फ्रेड पार्क में शेखर को,गीदड़ घेर नहीं पाते,

घर में आग लगाने वाले,घर के ही गद्दार लिखूँ ।।(4)
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

जब राजतिलक की बेला पर,कुटिल मंथरा ऐंठी हो,
बच्चों की रखवाली में घर,आकर डायन बैठी हो,
अपनें और पराये में तब,भेद बताना मुश्किल है,
घर के भेदी लंका ढाते,यह समझाना मुश्किल है,

सारे चेहरे एक सरीखे,फिर भी मैं प्रतिकार लिखूँ ।।
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

*******************
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

प्रभु श्रीराम स्तुति भावार्थ सहित



*प्रभु श्रीराम स्तुति भावार्थ सहित*

 *रामचंद्र कृपालु भजमन हरणभवभयदारुणं ।*
*नवकञ्जलोचन कञ्जमुख करकञ्ज पदकञ्जारुणं ॥१॥*

*व्याख्या:* हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर । वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं । उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं । मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥

*कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरदसुन्दरं ।*
*पटपीतमानहु तडित रूचिशुचि नौमिजनकसुतावरं ॥२॥*

*व्याख्या:* उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है । उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है । पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है । ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

*भजदीनबन्धु दिनेश दानवदैत्यवंशनिकन्दनं ।*
*रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशरथनन्दनं ॥३॥*

*व्याख्या:* हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकन्द कौशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥३॥

*शिरमुकुटकुण्डल तिलकचारू उदारुअङ्गविभूषणं ।*
*आजानुभुज शरचापधर सङ्ग्रामजितखरदूषणं ॥४॥*

*व्याख्या:* जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं । जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं । जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥

*इति वदति तुलसीदास शङकरशेषमुनिमनरञ्जनं ।* *ममहृदयकञ्जनिवासकुरु कामादिखलदलगञ्जनं ॥५॥*

*व्याख्या:* जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें ॥५॥

*मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो ।*
*करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥*

*व्याख्या:* जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से सुन्दर साँवला वर (श्रीरामन्द्रजी) तुमको मिलेगा। वह जो दया का खजाना और सुजान (सर्वज्ञ) है, तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥६॥

*एही भाँति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली ।*
*तुलसी भवानी पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥*

*व्याख्या:* इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशिर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ॥७॥

*जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।*
*मञ्जुल मङ्गल मूल बाम अङ्ग फरकन लगे ॥८॥*

*व्याख्या:* गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे ।।८॥

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मनुष्य मांसाहारी या शाकाहारी

*मनुष्य मांसाहारी या शाकाहारी ?*
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*परमपिता परमात्मा ने प्राणियों के आहार का निर्धारण स्वतः ही किया है जैसे-गाय, हिरण,हाथी,घोड़े,गदहों आदि पशुओं के लिए घास शाक, फूल पत्ते आदि और बाघ,सिंह, कुत्ते, बिल्ली आदि के लिए मांस। परमात्मा ने समस्त प्राणियों के शरीर की रचना उनके भिन्न भिन्न आहार को सहजता से खाने एवं पचाने योग्य ही बनाई है।*

अब देखिये कि मांसाहारी और शाकाहारी प्राणियों के शरीर की रचना में परमात्मा ने किस प्रकार भेद निर्माण किया है, यथा-

(1) शाकाहारी--प्राणियों के मुख म़े दाढ़े होती हैं जिससे वे अन्न को पीस देते हैं। दांतों में अंतर नहीं होता।

(1)मांसाहारी:-प्राणियों के मुख के अग्र भाग में तीक्ष्ण नुकीले दो दांत किल्ले रुप में होते हैं जिसे हम Canine कहते हैं, ताकि वो अन्य प्राणियों को फाड़-फाड़कर खा सकें और उनके दाढ़े नहीं होने से यह मांस रुपी भोजन को सीधा सटकते हैं,चबाकर या पीसकर नहीं खाते तथा दांतों में भी अन्तर होता है।

(2) शाकाहारी--प्राणी होठ से पानी पीते हैं। घूंट घूंट कर पीते हैं।

(2) मांसाहारी--जीभ से चाट-चाट कर(चप चप करके) पानी पीते हैं।

(3) शाकाहारी--इनकी संतान की आंखें पैदा होते ही खुलती हैं,बंद नहीं रहती।

(3) मांसाहारी--इनके बच्चों की आंखें पैदा होने पर बंद रहती हैं,जो 2-3-4 दिनों बाद खुलती हैं।

(4) शाकाहारी--तीक्ष्ण नुकीले नाखून नहीं होते,एक शफ या दो शफ रहते हैं,पंजे नहीं होते।

(4) मांसाहारी--पंजों पर नाखून तीक्ष्ण व नुकीले होते हैं ताकि शिकार को आसानी से फाड़कर उसे खा सकें।

(5) शाकाहारी--पांव की रचना से चलते समय आवाज हो सकती है।

(5) मांसाहारी--पांव के तलवे ऐसे गद्दीदार होते हैं जिससे चलने में आवाज न हो,ताकि अपने शिकार को सुगमता से पकड सकें।

(6) शाकाहारी--बचपन के दांत गिरकर पुनः नये दांत आते हैं।

(6) मांसाहारी--बचपन के दांत गिरकर पुनः दूसरे नये दांत नहीं आते।

(7) शाकाहारी-आंतों की लम्बाई उनके शरीर से 8 से 10 गुना बड़ी होती है।

(7) मांसाहारी--आंतों की लम्बाई कम होती है,कारण? मांस आंतों में ज्यादा समय न रहे।

(8) शाकाहारी--हरित द्रव्य जैसे साग सब्जी आदि पचाने की शक्ति होती है।

(8) मांसाहारी--हरित द्रव्य पचाने की क्षमता नहीं होती।

(9) शाकाहारी--लीवर व पित्ताशय छोटा होता है।

(9) मांसाहारी--लीवर व पित्ताशय शरीर के परिमाण से बड़ा रहता है।

(10) शाकाहारी--आंखें बादाम जैसी आकृति की होती हैं और रात्रि/अंधेरे में पूर्णतः नहीं देख सकते।

(10) मांसाहारी--आंखें गोल होती हैं,रात्रि/अंधेरे में स्पष्ट दिखायी पड़ता है।

(11) शाकाहारी--साधारणतः रात्रि में सोते हैं तथा दिन में जागते एवं चलते फिरते हैं।

(11) मांसाहारी--रात्रि में चलते-फिरते हैं, दिन में प्रायः सोते रहते हैं।

(12) शाकाहारी--क्रूरता,धोखाधड़ी आदि नहीं करते,बलवान होते हैं,इनके कार्य करने की क्षमता अधिक होती है तथा इनमें आत्मिक व शारिरिक बल अधिक पाया जाता है।

(12) मांसाहारी--क्रूर,धोखेबाज,दगाबाज,एवं चालाक प्रकृति के होते हैं,आत्मिक व शारिरिक शक्ति कम रहने के कारण कार्य करने की क्षमता कम होती है।

(13) शाकाहारी--भूखा रहने की क्षमता बहुत होती है तथा भूख रहने पर भी किसी को हानि पहुंचाने की  अथवा हिंसा करने की भावना नहीं रखते।

(13) मांसाहारी--भूख न रहने पर भी दूसरे प्राणियों को मारते हैं।

(14) शाकाहारी--ये स्वभावतः साधन होते हुए भी शिकार नहीं करते,और न ही ये शिकार कला में निपुण होते हैं।

(14) मांसाहारी--किसी हथियार या साधन के बिना ही/भी शिकार कर सकते हैं। मांसाहारी जीव शिकार कला में स्वाभाविक ही निपुण होते हैं।

(15) शाकाहारी--श्वास-प्रश्वास क्रिया धीमी अर्थात् मंद गति होने के कारण ये दीर्घ जीवन(लम्बी आयु) वाले होते हैं तथा समाज में रहना पसंद करते हैं।

(15) मांसाहारी--श्वसन प्रक्रिया तेज अर्थात् गतिमान होने के कारण ये दीर्घ आयु वाले नहीं होते तथा समूह में अर्थात् झुंड़ में रहना पसंद नहीं करते।

(16) शाकाहारी--भाग-दौड़ (परिश्रम) करने पर पसीना आता है।

(16) मांसाहारी--छलांग मारते हुए अर्थात् बहुत दौड़ने (परिश्रम करने पर ) पर भी पसीना नहीं आता।

(17) शाकाहारी--खून पीने की इच्छा स्वाभाविक रुप से नहीं होती। खून पचा भी नहीं सकते। इनका रक्त क्षारयुक्त होता है।

(17) मांसाहारी--खून पीने की तीव्र इच्छा होती है और खून पचा सकते हैं। इनका रक्त आम्लयुक्त होता है।

(18) शाकाहारी--शरीर की बाहरी ऊर्जा का उत्सर्जन अधिक होता है।

(18) मांसाहारी--शरीर की ऊर्जा कम उत्सर्जित होती है,अतः शरीर से बाहर उत्सर्जन कम मात्रा में होता है।

(19) शाकाहारी--माँ का वात्सल्य प्रेम, ममता अधिक रहता है,भूख लगने पर भी अपने बच्चों को माँ कदापि नहीं खाती।

(19) मांसाहारी--हिंसक जीव मातृत्व में क्रूरता से भूख लगने पर अपने बच्चों को स्वयं खा जाते हैं। घरेलू बिल्ली को खुद ही अपने बच्चों को खाते हुए अक्सर देखा गया है

(20) शाकाहारी--खाद्य पाचन के लिए जो एन्ज़ाइम तैयार होता है वह केवल वनस्पती-जन्य पदार्थों को ही पचा सकता है।वनस्पति के सेवन से एसिड टॉक्सिन नहीं होते, उत्तेजना न होने से स्वभाव शान्त व दयालु किस्म का होता है।

(20) मांसाहारी--मांस को पचाने वाला एन्ज़ाइम तैयार होता है। मांस में एसिड और Toxins बहुत हैं जिसके कारण उत्तेजना होती है,परन्तु शक्ति नहीं आती तथा हिंसक प्राणियों का स्वभाव क्रूर व भयानक किस्म का होता है।

अब आप स्वयं ही फैंसला करें कि हम मनुष्य किस श्रेणी में आते हैं मांसाहारी या शाकाहारी ????
परमात्मा ने मानव प्राणी को शाकाहारी ही बनाया है जो कि इसकी शरीर रचना से सिद्ध होता है। जन्म से प्राप्त मन के झुकाव को Nature स्वभाव कहते हैं और जन्म के बाद सीखी हुई बातों को Habbit आदत कहते हैं।

*मनुष्य स्वभावतः शाकाहारी है, मांसाहार एक आदत है जो इंसान ने जबर्दस्ती अपनाई है। प्रयोग के लिए एक ६-७ मास का नन्हे शिशु के सामने लाल-लाल पपीते के टुकड़े थाली में रखे गए और दूसरी थाली में रक्त से सने हुए मांस के लाल-लाल टुकड़े रखे गए,जब शिशु को उन थालियों की दिशा में छोड़ा गया,तो यह देखा गया कि वह नादान निरामिष शिशु पपीते के टुकड़े की ओर ही गया, मांस के टुकडे़ उसे आकर्षित नहीं कर सके। इससे स्पष्ट होता है कि मनुष्य मांसाहारी प्राणी नहीं है,शाकाहारी है । अतः हम अपने स्वाद की खतिर मूक पशुओं का वध न करें और एक शाकाहार एवं सात्विक जीवन अपनाएं।*


सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, April 9, 2020

आज का संदेश

*इस दृश्य मान जगत में जन्म मरण का खेल अभिराम चल रहा है। इस प्रकृति के जादू घर में कुछ भी स्थिर या नित्य नहीं है।*
*अंत में आत्मा युक्त  सूक्ष्म- शरीर से वियुक्त होकर तो वह सर्वथा घृणित ,हेय , हो जाता है। एवं हम उसे श्मशान में ले जाकर फूक डालते हैं या भीषण सुनसान स्थान में जमीन खोदकर गाड़ देते हैं। यही तो परिणाम है,, इस शरीर का।*

*आज प्यारी स्त्री, प्राण प्रियतम पति, श्रद्धास्पद  माता- पिता,अभिन्न हृदय मित्र, प्राणों के पुतले प्यारे पुत्र आदि को परस्पर पाकर हम अपने को परम सुखी समझते हैं । सबके प्राण हंसते हैं ,,,,*
*परंतु दूसरे ही दिन मृत्यु के भयानक आघात से हमारे यह प्राण प्यारे आत्मीय हम से बिछड़ जाते हैं। हमारा प्यार का भंडार लूट लिया जाता है। हम "हाय हाय" करते हैं, रोते हैं चिल्लाते हैं ,,पर कुछ भी नहीं कर पाते , यही हाल संसार की सभी वस्तुओं का है।*

*आज हम अपने इस शरीर से माता-पिता ,स्त्री स्वामी, पुत्र कन्या ,आदि से प्रेम करते हैं,, उनके बिना क्षण भर भी नहीं रह पाते, उनका थोड़ा सा भी अदर्शन हमें असहाय हो जाता है।,,, पर जब हम उन्हें छोड़ जाते हैं और दूसरे चोले में पहुंच जाते हैं , तब उनका स्मरण भी नहीं करते। न मालूम कितनी बार कितनी योनियों में हमारे प्रिय माता-पिता ,स्त्री ,पुत्र, यस, कीर्ति, घर, जमीन हो चुके परंतु आज हमें उनका स्मरण तक नहीं है।*

*ऐसे विनाशी क्षण स्थायी  संबंध को यथार्थ संबंध समझकर सुखी दुखी होना मूर्खता नहीं है तो क्या है ?,,,*
*भगवान हमारे सदा संगी हैं, प्राणों के प्राण हैं ,आत्मा के आत्मा है । उन प्रभु को छोड़कर हम अन्य किसी से भी प्रेम करेंगे, उसी में धोखा होगा ,,जिसको चाहेंगे ,वही दगा देगा।*

*जीवन मृत्यु उनका--- परमात्मा प्रभु का खेल है,,, सब में सब समय सब ओर से उन्हीं को देखो, पकड़ लो। तभी जीवन सार्थक होगा, तभी सुख के--- सच्चे सुख के--- परमानंद के यथार्थ दर्शन होंगे।*

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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न्यू २

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