😡 *कपट* 😀
👉 *मानव को कपट रहित होना परम आवश्यक है या कपट का सदुपयोग करना आवश्यक है। हमें सोचना चाहिऐ❗️* 🤔
👉 शास्त्र कहता है - *निर्मल मन जन सो मोहि पावा*। कहने का तात्पर्य स्वच्छ मन - कुंठा भय अवसाद घृणा क्रोध रहित मानव ही मेरा वरणीय है।
👉 आगे शास्त्र कहता है - *मोहि कपट छल छिद्र न भावा*। कहने का तात्पर्य परमात्मा कपट यानि छल रूपी मानव को बिल्कुल भी वरणीय नही मानते। कारण बहां पर करी हुई अमृत कृपा घट मे एक छिद्र भांति है। जहां पर अमृत धीरे धीरे रिसकर व्यर्थ हो जायेगा। मानव उसका उपयोग नही कर सकता या लाभ नही ले पायेगा।
👉 *हृदय मन में अनेको भाव रहने पर मानव जीवन का उपयोग नही कर पायेगा ।* बह समस्त प्रकल्प कपटता के संवर्धक होते है। मानव जीवन का हेतु मोक्ष है। परंतु अनेको भावो के कारण बह च्युत हो जाता है।
👉 *कपट मन का मल है* - जब निस्तारण करने योग्य मल हमारे उदर मे शेष रहता है। मानव चित्त उद्गिनता को व्याप्त रहता है। यानि शांति से दूर रहता है। अन्य भोज्य पदार्थ ग्रहण नही करना चाहता। ऐसे ही चित्त व्याप्त कपटता सही वस्तु के वरण से दूर रखता है। परमात्मा द्वारा प्रदत्त स्वांस प्रस्नांस मानव व्यर्थ कर देता है यानि समय का सदुपयोग नही कर पाता है।
👉 एक मानव को कटु शब्द नही बोलने चाहिए❗️ यह शत प्रतिशत ठीक है । लेकिन कटुता यदि मन में आ जाए तब स्पष्ट मन्तव्य से अवगत करा दे या सानिन्धय का सरलता से त्याग कर दे। जैसे ख़तरा होने पर मछली सहजता से दूर चली जाती है । लेकिन मन में न पाले ।
👉 कटु शब्द न बोलने से १००० गुना आवश्यक है निष्कपट होना । जिस हेतु शास्त्र कहता है -
*सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥*
सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही *सनातन धर्म है ॥*
🖕🏼 यही सरलतम् रूप में कपट की व्याख्या है।💐👏
👉 तभी कहा निर्मल मन यानि बिना राग द्वेष का ही मानव ही सर्वविद् वरणीय होता है।
👉 शास्त्रों में एक भी वरणीय भक्त ऐसा नही जो कपटी हो । 😡 लेकिन अधिकतर मानव- *कपट मुक्त होने हेतु क्रोध करते या कटु शब्द बोलते दिखते हैं ।* श्राप आदि कटु शब्द नही तो और क्या है ❓ 😫अतः *निष्कपट होना । मन वचन कर्म एक होना ही निष्कपट भाव का दर्शन लाभ कराने में सहयाक सिद्ध होता है।*
👉 कोई भी शब्द घृणित या निम्न कोटि का नही होता। कपट भी प्रकृति प्रदत्त एक शब्द है। तो घृणित उपेक्षित कैसे हो सकता है❓
👉 मानव द्वारा सृजन समस्त पदार्थों के मूल मे कपटता ही आधार होता है।
आज का परमाणु बॉम्ब सबसे सरल उदाहरण है। जिसके प्रयोग से मानव भय से काँपते है। इसके सृजन मे मानव की कपटता की भावना अन्तर्निहित भावना का परिणाम है।
👉 मानव कपट का उपयोग स्व भोग्य या विलासिता में करने के कारण बह आज भस्मासुर की तरह बन चुका है। *कपट का प्रयोग दूसरो को हानि पहुँचाने के कार्य को सिद्ध कराने मे करने से स्वयं का अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ गँवा देता है।*
👉 कपट का प्रयोग दूध से दही मक्खन बनाकर घृत बनाने हेतु खट्टे पदार्थ की तरह प्रकृति के साथ करने पर मानवीयता सिरमोर होती है।
*कहने का तात्पर्य हुआ प्रकृति प्रदत्त कोई भी पदार्थ या शब्द निर्थक नही है। उसका उपयोग करना मानव*
नही जानता। परिणाम 👉 *अवसाद घृणा कुंठा, मानव के चित्त व अन्त:करण मे व्याप्त होकर मानव के विवेक रूपी घृत के दर्शन से विलग ( दूर ) रखने में सहायक सिद्ध हो जाता है। जिससे मानव जीवन निर्थक होकर नि:शेष 👎 हो जाता है।* 😦😖😫👏
*अत: हम कपट का बहुत सूक्ष्मता के साथ प्रयोग करना चाहिऐ। जैसे आज कॉरोना का सटीक परिणाम हमारे सम्मुख साश्वत है। सनातन संस्कृति 🚩 में कपटता से दूर ❌🛑 रहने के लिऐ कहा गया है।* हम भी ध्यान देकर मानव जीवन का सदुपयोग करें।🌸🌸👏👏🌸🌸👏👏👏
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057