ज़िन्दगी की दौड़ में सब,उम्र भर भागे फिरे,
रात दिन पिसते रहे बस, योजनाओं से घिरे,
आचरण ही भूल बैठे,श्रेष्ठता की चाह में,
कंटकों पर चल पड़े सब,जी रहे हैं आह में,
थक गए जब चूर होकर,कौन सोया कौन जागा ।।(1)
कौन जीता कौन हारा,कौन ठहरा कौन भागा ।।
दैत्य कितनें रूप बदले,बन महामानव गये,
आदमी के भेष में सब,छुप यहाँ दानव गये,
कर दिखावा दीन दुखियों,के विधाता बन रहे,
एक रोटी दान करके,अन्नदाता बन रहे,
है विधाता कौन किसका,कौन किस्मत का अभागा ।।(2)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,
रूप दुश्मन रूप क़ातिल,रूप खंज़र ढाल है,
रूप शबनम रूप ज्वाला,रूप ही भ्रमजाल है,
भेद खुलता जिस घड़ी आभास होता सत्य का,
कौन मधुरिम कौन कर्कश,भेद खुलता कृत्य का,
कौन तोता कौन मैना,कौन कोयल कौन कागा ।।(3)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,
हम स्वयं ठहरे हुये या ज़िन्दगी अपनी थमी,
रूप ही धूमिल हुआ या धूल दर्पण पर जमी,
धुन्ध कितनी देख पाना है सहज इतना नहीं,
तथ्य क्या है जान पाना है सहज इतना नहीं,
सब गुँथे हैं यूँ परस्पर,कौन चरखा कौन धागा ।।(4)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,
एक दीपक सत्य का जो दे रहा नित रोशनी,
आँधियों के सामनें भी लिख रहा है जीवनी,
कर्म का प्रारब्ध मिलता यह प्रमाणिक तथ्य है,
कर्म की ही साधना का यह कथानक कथ्य है,
"खेमेश्वर" भेद समझो,क्या कनक है क्या सुहागा ।।(5)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057