Friday, April 24, 2020

कौन जीता कौन हारा,कौन ठहरा कौन भागा

ज़िन्दगी की दौड़ में सब,उम्र भर भागे फिरे,
रात दिन पिसते रहे बस, योजनाओं से घिरे,
आचरण ही भूल बैठे,श्रेष्ठता की चाह में,
कंटकों पर चल पड़े सब,जी रहे हैं आह में,

थक गए जब चूर होकर,कौन सोया कौन जागा ।।(1)
कौन जीता कौन हारा,कौन ठहरा कौन भागा ।।

दैत्य कितनें रूप बदले,बन महामानव गये,
आदमी के भेष में सब,छुप यहाँ दानव गये,
कर दिखावा दीन दुखियों,के विधाता बन रहे,
एक रोटी दान करके,अन्नदाता बन रहे, 

है विधाता कौन किसका,कौन किस्मत का अभागा ।।(2)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

रूप दुश्मन रूप क़ातिल,रूप खंज़र ढाल है,
रूप शबनम रूप ज्वाला,रूप ही भ्रमजाल है,
भेद खुलता जिस घड़ी आभास होता सत्य का,
कौन मधुरिम कौन कर्कश,भेद खुलता कृत्य का,

कौन तोता कौन मैना,कौन कोयल कौन कागा ।।(3)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

हम स्वयं ठहरे हुये या ज़िन्दगी अपनी थमी,
रूप ही धूमिल हुआ या धूल दर्पण पर जमी,
धुन्ध कितनी देख पाना है सहज इतना नहीं,
तथ्य क्या है जान पाना है सहज इतना नहीं,

सब गुँथे हैं यूँ परस्पर,कौन चरखा कौन धागा ।।(4)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

एक दीपक सत्य का जो दे रहा नित रोशनी,
आँधियों के सामनें भी लिख रहा है जीवनी,
कर्म का प्रारब्ध मिलता यह प्रमाणिक तथ्य है,
कर्म की ही साधना का यह कथानक कथ्य है,

"खेमेश्वर" भेद समझो,क्या कनक है क्या सुहागा ।।(5)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

नदी किनारे नैन झुकाये,बैठी अल्हड़ नार ।।

किसकी चली तूलिका ऐसी,खुले सृजन के द्वार ।।
नदी किनारे नैन झुकाये,बैठी अल्हड़ नार ।।

नख से शिख तक मादकता की,जैसे गगरी भरी हुई,
या फिर मूक संगमरमर की,कोई प्रतिमा धरी हुई,
ऐसे उठे विचार हॄदय में,जैसे लाखों ज्वार उठे,
लाखों कामदेव हो विचलित,एक साथ ललकार उठे,

कितनों के तप भंग हुए हैं,देख इसे करतार ।।(1)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

अगल बगल दो घड़े धरे हैं,इक कर पीत वसन है,
और एक कर उपल देह पर,मानों करता उबटन है,
श्वेत धवल साड़ी पर निखरे,दो नीले रंग किनारे,
ज्यों गंगा के अगल बगल में,कालिंदी के दो धारे,

कंगन बाजूबन्द पायलें,और गले में हार ।।(2)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

चित्र देखकर ऐसा लगता,बोल पड़ेगी अभी अभी,
हृदयातल में दबी भावना,खोल पड़ेगी अभी अभी,
प्रिय की गहन सोच में डूबी,नार नवेली पनघट पर,
जरा न विचलित होती रमणी,सरिता जल की आहट पर,

काली काली केश राशि पर,अनुपम जूड़ा मार ।।(3)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

देख रहे हैं अम्बर पथ से,बादल यह रूप निराला,
मानों उन्हें निमंत्रण देती,आज धरा से मधुशाला, 
जिसनें देखा उसनें माना,रीतिकाल प्रत्यक्ष खड़ा,
हर एक सृजनकर्ता अपनीं,कविता रचनें हेतु अड़ा,

गोरे गोर गाल लाल यूँ,जैसे पके अनार ।।(4)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

इस चित्रकार की अनुपम कृति,नें मंत्र मुग्ध कर डाला,
सारी काम कलाओं को बस,एक कलश में भर डाला,
सोच रहा हूँ कहाँ समेंटूँ,इस नीरवता के क्षण को,
धन्य कहूँ उस पाहन को या,धन्य कहूँ उस रज कण को,

मनसिज से मिलने आया,पनघट पर शृंगार ।।(5)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

समझ आई न जिसको भी हमारे प्यार की भाषा

समझ आई न जिसको भी हमारे प्यार की भाषा ।।
सुनाई फिर उसे हमनें तनें हथियार की भाषा ।।(1)

बढ़ें जब हाथ गर्दन को उठे दस्तार पर उँगली,
हमारा फ़र्ज़ बनता है लिखें अंगार की भाषा ।।(2)

परिंदों पर निसाना साधकर बैठे कफ़स डाले, 
दरिंदों को समझ आती नहीं लाचार की भाषा ।।(3)

गुलों से पूछियेगा दर्द की तासीर क्या होती,
बतायेंगे वही तुमको चुभन की खार की भाषा ।।(4)

निभाओ फ़र्ज़ अपना सब रहो ईमान पे कायम,
मगर भूलो नहीं अपनें कभी अधिकार की भाषा ।।(5)

निभाता कौन है वादे मियाँ अब के ज़माने में,
करो तुम ताजपोशी फिर सुनो सरकार की भाषा ।।(6)

युवा पीढी नपुंसकता वरण करनें लगे जब भी,
उठाओ लेखनी अपनी लिखो तलवार की भाषा ।।(7)

बढाया हाथ हमनें है हमेशा मित्रता का पर,
इज़ाफ़े में मिली उससे हमें इनकार की भाषा ।।(8)

सभी की आँख का तारा बना है खेमेश्वर जी,
हमेशा बोलता है एक ज़िम्मेदार की भाषा ।।(9)

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

वेदना गीत

कहाँ धरित्री पति सोता है, 
जगती का जन जन रोता है।

मिटते जाते जनधन उपवन,
सूना घर है सुने मधुवन,
उड़ते जाते प्राणि पखेरू
सूना नंदन वन रोता है।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||

मौतों ने श्रृंगार रचाया,
ताण्डव कर उत्पात मचाया।
विछड़ते जाते मीत जहाँ से,
आर्द्र मेरा भी मन होता है।।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||

आर्त वेदना   कृन्दित  मेरी,
भक्ति पुकार  रुदित अब मेरी।
उजड़ती जाती वसुदा सुन्दरि,
श्रद्धा का भी दम खोता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

मृत्यु अजेय हुई भूतल पर,
रुधिर माँग सज्जित नव वर।
उनको भी छोड़ती नही है,
कारण यही मदन रोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

श्वेत बालुका कण आधारित,
यह जीवन नश्वर अभिसारित।
पञ्च तत्व में खण्डित होकर,
जर जर यूँ ही भवन होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

प्रकृति रम्यता क्षय कर सारी,
मानव ने मधुरिमता क्षारी।
क्षमा सभी अपराध मनुज के,
यही इश्वरी गुण होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

हे!त्रिनेत्र वैश्वानर धारी,
कैलाशी प्रगल्भ मदनारी।
दया तुम्हारी बिन मृत्युञ्जय,
भू पर सकल श्रजन खोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

करुण कृन्दनित जगती है प्रभु, 
अनुत्तरित सब देव हुए शुभ।
बिना तुम्हारी क्रोध अनल के,
कहीं मृत्यु मर्दन होता है??
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

हे! "खेमेश्वर" के प्राणोद्धारक, 
जगत विनाशक पालन कारक।
हे!शिव ! शिवमय जग को कर दो, 
नवीन युग उदयन होता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा भी रोता है |

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,!

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा भी रोता है |
इधर उधर थका हारा अपना आपा ही खोता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,!

तब मन का धैर्य पास कहां हमारे कुछ होता है |
हम करते हैं कुछ अनचाहे कुछ और होता है |
जब आता है कठिन दौर तब ऐसा ही होता है | 
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,!

एक भी हल न हुईं जीवन की मेरी पहेलियां |
कामना अभिलाषा बनी होती मेरी सहेलियां |
उपर से अपना दोष अलग रंग दिखाता होता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,!

देख देख सबकी हालत कुछ हमको भी होता है |
खोजता मैं भी उसको हूं जाने किधर वह होता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,,!

                   
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

हमें एतबार होता है आपसे मिलकर।


फजा गुलजार होता है आपसे मिलकर!
हमें  एतबार होता है आपसे मिलकर।

नहीं मुमकिन जहां में आप बिन रहना!
जवाँ और प्यार होता है आपसे मिलकर।

रहे उल्फत सदा अपने दर्मियां अक्सर!
यही इंतजार होता है आपसे मिलकर।

थाम कर हाथ मेरा चलना हमारे संग!
दिल को करार होता है आपसे मिलकर।

कभी बिछड़े ना हम वफ़ा की राहों पर!
इश्क़ बेशुमार होता है आपसे मिलकर।

फजा गुलजार होता है आपसे मिलकर!
हमें  एतबार होता है आपसे मिलकर।

                   
           ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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अर्णव गोस्वामी जी के ऊपर हुए हमले के ख़िलाफ़ कविता


रोती वसुंधरा, क्या ठहरे उसके पूत्र उसके दास नहीं
ग़लती तुम्हारी नहीं अर्णव, हमें इसका आभास नहीं

क्या हुआ गर एक विदेशी से उसका पेशा पूछ लिया
राजनीतिज्ञ ठहरे तो क्या है, जनता ठहरी खास नहीं

तुम खोलो आँखें देश की सोया हुआ देश तो क्या है
जागेगा एक दिन, छोड़ना तुम कभी भी प्रयास नहीं

सच्ची पत्रकारिता अपनाके, उतारो नकाब चेहरों से
यहाँ दिल के काले नेता ठहरे लेने देंगे तुझे सांस नहीं

गुरु चाणक्य कह गये थे,विदेशी कभी हितकर नहीं
देश बेच खाने कब छोड़ेगा कभी अपने अभ्यास नहीं

पृथ्वी ने आँखें फुड़वा डाली की आँखें खुल जाएंगी
गुरु गोविंद ने दी बच्चो की कुर्बानी आई ये रास नहीं

नहीं भूल सकते हम अम्बी,जयचंद मीर जाफर यहाँ
इससे ज्यादा क्या करेंगे ये देश का ये सत्यानास नहीं

जब चाहो चैनल पर बुलवा लेना गोस्वामी तुम हमकों
हम दरबारी कवि ना ठहरे लिखते कभी बकवास नहीं

तुम देश जगाओ खेमेश्वर की कलम साथ तुम्हारे ठहरी
हमारे अलावा तुम्हें मिलेगा कोई कवि अपने पास नहीं

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...