एक सपना तुम लिखो तो,एक सपना मैं लिखूँ ।।
पृष्ठ अपना तुम लिखो तो,पृष्ठ अपना मैं लिखूँ ।।
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,
मीत मेरे पास आओ हम नया सा गीत लिख दें,
जो हृदय में मौन सोयी आज अपनी प्रीत लिख दें,
एक मीरा एक राधा एक शबरी सी लगन है,
तन हुआ पाषाण शापित किन्तु मन में इक अगन है,
देह तपना तुम लिखो तो,नेह तपना मैं लिखूँ ।।(1)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,
याचना नें कुछ न पाया साधना को फल मिला है,
कर्म हो निर्बाध्य तो फिर रेत में भी जल मिला है,
आस का दीपक जलाये चेतना नित कर्म रत है,
उर उदधि में ज्वार लेकिन बाह्य चिंतन मौन व्रत है,
नाम अपना तुम लिखो तो,नाम अपना मैं लिखूँ ।।(2)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,
स्वप्न टूटे भाव रूठे नैन जागे रात जागी,
तुम अलौकिक रूप रत्ना रत्न मन में वीतरागी,
जल गईं सब क्यारियाँ जल कौन से घट में भरूँ मैं,
अब तुम्हारे नेह का बोलो करूँ तो क्या करूँ मैं,
प्रेम जपना तुम लिखो तो,प्रेम जपना मैं लिखूँ ।।(3)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,
एक मंथन कर रहा हूँ जीत कर जो युद्ध हारे,
मन वचन की बद्धता में जल गये सारे सहारे,
एक चातक प्यास लेकर ताकता आकाश को नित,
अब गिरेगी बूँद जल की है यही विश्वास जीवित,
कंठ तपना तुम लिखो तो,कंठ तपना मैं लिखूँ ।।(4)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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