दुर्गम राह नुकीले काँटे,नग्न पैर से चलना है ।।
दग्ध वेदना के शोलों पर,जैसे मीन उछलना है ।।
देकर अमिय जगत को सारा,गरल पान खुद करना है ।।
इक छोटी सी गागर में ज्यों,गंगा सागर भरना है ।।
शब्दों की इक माला लेकर,शबरी जैसा जपना है ।।
बड़ा कठिन है कविता करना,सूरज जैसा तपना है ।।(1)
शब्द शब्द की ध्वनि तरंग से,अनुपम कविता गूँजी है ।।
जीवन भर की शब्द साधना,ही सृजता की पूँजी है ।।
एक विषय के आ जाते ही,नींद नयन से उड़ जाती ।।
चलते चलते कभी चेतना,अन्य विषय पर मुड़ जाती ।।
पात निपात हमें समझाता,साँसों को तो खपना है ।।(2)
बड़ा कठिन है कविता करना,,,
खड़ा खड़ा जग देखेगा पर,बात न कोई पूछेगा ।।
भोर किरण के ग्राहक हैं सब,रात न कोई पूछेंगा ।।
यह अभाव का लाक्षागृह है,धधक रही इक ज्वाला है ।।
अमिय चाहती सारी दुनियाँ,कवि के हिस्से हाला है ।।
किन्तु सत्य पर चलते रहना,कर्म हमारा अपना है ।।(3)
बड़ा कठिन है कविता करना,,,
ज़हर उगलने वालों तुमको,कैसे मिसरी खीर मिले ।।
कलह-कामिनी के कुम्भों से,कैसे अमृत क्षीर मिले ।।
मरणासन्न पड़े भागीरथ,कैसे गंगा नीर मिले ।।
कैसे पन्त निराला जन्मे,कैसे सूर कबीर मिले ।।
चाँद कहाँ मुट्ठी में आता,कहना केवल सपना है ।।(4)
बड़ा कठिन है कविता करना,,,,
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057