Saturday, April 25, 2020

मुस्कुराते रहे वो बिना बात पर।

मुस्कुराते   रहे    वो    बिना   बात    पर।
दिल   को  थामे  रहे  हम मुलाकात पर।।

तिरछी  नज़रों  से  घायल वो  करते  रहे।
तरस    खाए   बिना   मेरे   हालात  पर।।

है  नज़र  आ   रहे  हर  तरफ  वो  ही वो।
छा    गए    ऐसे    मेरे    ख्यालात   पर।।

हर   धङकन   उन्हीं   को  पुकारा   करे।
वो असर कर गए दिल  के जज़्बात पर।।

यूं   दीवाना  बनाकर   के  वो  चल दिए ।
क्या  कहूं  दिल की  ऐसी खुराफात पर।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Friday, April 24, 2020

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।

आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।
सब  सिमटे  सिमटे से हैं कहां वाद विवाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

ऐसा ही होता जब छलना अनजानी आती है ।
निराशा आती तब आशा जलती सी जाती है ।
किधर मौन  हो हैं  जाते वे बजते गीत सुहाने ।
खोजने पे   भी नजर नहीं आते वे यार पुराने ।
हम भी हैं  सामिल नहीं कहीं हम अपवाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

इक अनजानी  अनचाही  रिक्त्तता ने घेरा है ।
इस चार दिन की जिंदगी में क्या तेरा मेरा है ।
करते हैं  कहीं पे गुजर कुछ दिन का फेरा है ।
धुंधला धुंधला सा कैसा चित्र उसने उकेरा है ।
मंदिरों के पट हैं बंद नहीं  वहां प्रणव नाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

उजियारे  का  चांद गगन  में चढ़ के रोता है ।
छोंड़  के  हमें भाग्य भरोसे वह भी सोता है ।
अंधियारे  से  डर  जाने किधर उजियारा है ।
कैसा दौर दुनिया का  हर ओर अंधियारा है ।
सब हैं मौन से  अनजाना  कोई अवसाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,!!!

इच्छाएं   पर आज  बंदिसें  कोई अज्ञात है ।
जानें किधर खोए सब प्रख्यात विख्यात हैं ।
हो गई भोर बिना आभा के दुखी प्रभात है ।
शोर थम  गए  जो दिखता है वह प्रलाप है ।
सबके  दिलो  में छाया अनजाना संताप है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,!!!

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ

कृन्दन करतीं आज दिशायें,भरे पाप के घट देखो,
डरे हुए हैं गली बगीचे,आतंकित पनघट देखो,
मानवता के मूल्य गिरे हैं,दानवता के भाव बढ़े,
राष्ट्र भक्ति की छोड़ किताबें,युवा फेसबुक आज पढ़े,
परिधान बदलते हैं ऐसे,जैसे मौसम बदल रहे,
घात लगाए अंधकार में,कई भेड़िये टहल रहे,
मासूम बच्चियों को भी अब,नहीं छोड़ते दानव हैं,
वहसी दैत्य नराधम केवल,कहनें को ही मानव हैं,

करबद्ध निवेदन करता हूँ,सब सन्ताप मिटा जाओ ।।
एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ ।।(1)

इक्कीस बार इस धरती को,मुक्ति दिलाई पापों से,
एक बार फिर राष्ट्र बचालो,कलयुग के इन साँपों से,
हर ओर दिखाई देता है,नंगा नर्तन हिंसा का,
बापू नें कर दिया नपुंसक,देकर सबक अहिंसा का,
जातिवाद की ज्वाला सबको,धीरे धीरे निगल रही,
तू तेरा मैं मेरा में ही,कुण्ठा करवट बदल रही,
ऐसी आँधी चली देश में,संस्कृति के वट उखड़ रहे,
अनाचार की ज्वाला में वन,सदाचार के उजड़ रहे,

भारत भू पर सदाचार का,फिर से वृक्ष लगा जाओ ।।(2)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

किलप रहीं हैं कितनी गायें,कटती बूचड़खानें में,
भर खर्राटे रक्षक सोते,पाँव पसारे थानें में,
विप्र धेनु सुर सन्त हेतु ही,मनुज रूप हरि नें धारे,
जब जब दैत्य बढ़े धरती पर,एक एक कर सब मारे,
नहीं सुरक्षित आज द्रोपदी,नहीं सुरक्षित सीता है,
संकट में गौ गंगा नारी,संकट में अब गीता है,
आज हिन्द में पुनः चतुर्दिक,सहसबाहु की फौज खड़ी,
एक बार फिर परसुराम की,राह निहारे क्रन्द घड़ी,

भारत की इस धर्म भूमि पर,धर्म ध्वजा फहरा जाओ ।।(3)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

काट न पाया कोई अब तक,आतंकवाद की चोटी,
गरम तवे पर सेंक रहे हैं,अपनी अपनी सब रोटी,
नरसंहार मचा चौतरफा,सेना पर पत्थरबाज़ी,
अपनें अपनें राग अलापें,उछल उछल पंडित काज़ी,
क्रंदन करती भारत माता,राह तुम्हारी देख रही,
असुरों के सन्ताप झेलती,काँप रही है आज मही,
धोते धोते पाप सभी के,अब हो रही मलिन गंगा,
आज़ादी को कोस रहा है,भारत का राष्ट्र तिरंगा,

दुनिया से आतंकवाद का,नाम निसान मिटा जाओ ।।(4)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो

हर परीक्षा दे चुका अब आग में इसको न ठेलो ।।
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो ।।

कौन कहता शांति से बिन ढाल आज़ादी मिली,
कौन कहता बिन गँवाये लाल आज़ादी मिली,
बुझ गए हैं दीप लाखों तब उजाला पा सका,
दे दिया बलिदान सर्वस तब प्रभाती गा सका,

है धरा यह प्रेम की तुम कृष्ण बनकर रास खेलो ।।(1)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

राष्ट्र की चिर भक्ति में है बाँधता परचम हमें,
लड़खड़ाते जब कदम है साधता परचम हमें,
एकता का मन्त्र देकर दे रहा अधिकार सब,
एक आँगन में मना लो एक हो त्योहार सब,

राष्ट्र है आज़ाद अब तो राष्ट्र को सम्मान दे लो ।।(2)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

दुष्ट शकुनी रच रहे गृह-युद्ध की नव नीतियाँ,
देखकर बारूद फौरन जल उठी सब तीलियाँ,
मुक्त मन से निज समर्थन दे रहीं हैं आँधियाँ,
रौद्र होकर चढ़ रही हैं शीर्ष पर सब व्याधियाँ,

भारती के लाल हो तुम वीर हर तूफान झेलो ।।(3)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

एक हम धृतराष्ट्र बनकर सुन रहे सारी कथा,
एक वह जो भीष्म बनकर पी रहा सारी व्यथा,
बाँसुरी को त्याग दो अब शंख की धुत्कार हो,
जो न मानें बात से फिर लात से सत्कार हो,

लक्ष्य साधे रिपु खड़े हैं खेमेश्वर तीर झेलो ।।(4)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है

जन्म लिया है यहाँ राम नॆं,अग्नि- परीक्षा दी सीता !! 
सुचिता-पथ पर यज्ञ करातॆ,इसका हरपल है बीता !! 
चरण-पादुका पूजा करता,इक भरत प्रॆम का प्यासा !! 
अनुज लखन नॆं अर्पित कर दीं,अपनें जीवन की श्वाँसा !! 
प्रॆम विवश कॆवट सॆ रघुवर,चरण कमल धुलवातॆ हैं !! 
प्रॆम विवश शबरी कॆ जूठॆ, बदरी फल प्रभु खातॆ हैं !! 
वॆद पुराणॊं नॆं लिख जिसकी, गौरव गाथा गाई है !! 
सत्य-धर्म की कल-कल गंगा,तुलसी की चौपाई है !! 

आज युवा पीढी फिर कैसॆ,अपना कर्म भुलाती है !! 
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!१!! 

द्वापर युग मॆं इस भारत नॆं,महा-समर कॊ जीता है !! 
वॆद व्यास नॆं रच डाली इक,कृष्ण-भाष्य सॆ गीता है !! 
जहाँ कंस कॆ अहन्कार की,जलती साख चिताऒं मॆं !! 
पल-भर मॆं जल गई हॊलिका,उड़ती राख हवाऒं मॆं !! 
जहाँ पूतना का छल छद्रम,टिका नहीं सच कॆ आगॆ !! 
हरिश्चन्द्र नृप पत्नी बालक,बिकॆ जहाँ सच कॆ आगॆ !! 
जहाँ धर्म का रक्षक बनकर,प्रभु नॆं चक्र चलाया है !! 
अँगुली ऊपर रख गॊवर्धन,गॊधन कष्ट मिटाया है !! 

युवा शक्ति अब तॆरॆ सम्मुख,काल खड़ा अपघाती है !! 
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!२!! 

जहाँ एक दासी नॆं समुचित,दॆव लॊक कॊ हिला दिया !!
उदयसिंह की मृत्यु सॆज पर,अपना बेटा सुला दिया !!
जहाँ घास की रॊटी खाकर,आँधी कॊ ललकार दिया !!
जहाँ क्रान्ति का सूरज हमनॆं,दॆकर लहू उतार लिया !!
जहाँ दॆश की खातिर बहना,अर्पण करती भैया को !!
जहाँ लाल की कुर्वानी दे,गर्व हुआ है मैया को !!
जहाँ पींठ पर बालक बाँधॆ,अबला रण में युद्ध करे !!
जहाँ एक नारी यम से भी,पति प्राणों की टेक धरे !!

शीश काट निज जहाँ सुहागिन,पति को भेंट पठाती है !!
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!३!! 

जिस भारत से सकल विश्व नें,ज्ञान ध्यान तप सीखा है !!
चिन्तन मंथन क्षमा शीलता,योग यज्ञ जप सीखा है !!
जिस भारत नें शून्य मिलाकर,गणित पूर्ण कर डाला है !!
एक दशमलव दे करके ही,विश्व पटल भर डाला है !!
जहाँ राष्ट्र की बलिवेदी पर,प्राणाहुति की होड़ लगे !!
जहाँ राष्ट्र की गरिमा ही बस,जीवन पथ बेजोड़ लगे !!
बच्चा बच्चा गाता फिरता,इंकलाब के गीत जहाँ !!
हँसकर फाँसी चढ़ जाने की,सदा रही है रीत जहाँ !!

इस भारत की गौरव गाथा,सकल सृष्टि दुहराती है !!
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!४!! 

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ क्या शरमाना

रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कंचन काया गुणखानी !!
इन्द्रलॊक सॆ आई हॊ तुम,या फ़िर माया की रानी !!
अंग अंग रसराज झूमता,कामदॆव का आलय हॊ !!
दॆख दॆखकर झूम रहॆ सब,तुम पूरा मदिरालय हॊ !!

दिखा रहा हूँ रूप तुम्हारा,इतना भी मत इतराना !!
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ क्या शरमाना !!(१)

मचल लॆखनी लिखनॆ बैठी,लिखी कहानी लिखी हुई !!
कमलकॊष पर दृष्टि भ्रमर की,याचक जैसी टिकी हुई !!
वातावरण शान्त है लॆकिन,हिय मॆं हैं तूफ़ान उठॆ !!
जॊ नयन दॆखतॆ इस छवि कॊ,रह जातॆ बस लुटॆ लुटॆ !!

चातक तृष्णा नॆ ठान लिया,नहीं किसी सॆ घबराना !!(२)
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ,,,

धूप छाँव मॆं बदल गई अब,है चली धुन्ध पुरवाई !!
घूँघर ज़ुल्फ़ॆं उड़ीं गगन मॆं,लगता बदली घिर आई !!
ऊँची ग्रीवा नयन झुकॆ कुछ,इक ज्वार उठा स्पंदन मॆं !!
लगता जैसे शान्त मोरनी,खड़ी अकॆली उपवन मॆं !!

बार बार मन सॊच रहा है,पास उसी के बस जाना !!(३)
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ,,,

लगता है सौन्दर्य समूचा,मानॊ ज़िद पर अड़ा हुआ !!
किन्तु गाल पर काला सा तिल,पहरॆ मॆं है खड़ा हुआ !!
खड़ी रहॊ हॆ रूप सुन्दरी,अपनी कलम  उठा लूँ मैं !!
एक सर्ग शृंगार शतक का,अभी अभी रच डालूँ मैं !!

अहॊ ! तृप्ति की मीठी सरिता,हॄदय सिंधु कॊ भर जाना !!(4)
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,अभी आग ही लिखनें दो

बिंदिया पायल कंगन वाले,रति गीत अभी मत माँगो,
सुप्त पड़ी तलवारों से,कहो भवानी अब जागो,
भारत माँ के बेटे होकर,मत क्रंदन स्वीकार करो,
अनाचार है बढ़ा देश में,कर गर्जन हुंकार भरो,
राणा और शिवा का पौरुष,पढ़ना और पढाना है,
पन्ना माँ की त्याग बेल को,आगे हमें बढ़ाना है,
रक्त नहाया चन्दन का शव,तुमसे कुछ माँग रहा है,
मातृभूमि की आँहें सुनकर,अबतक वह जाग रहा है,
हाड़ौती के शीश दान की,परम्परा दोहरानी है,
भामा जैसी दान वीरता,बच्चों को सिखलानी है,

जौहर ज्वाला को मत सींचो,उसको और धधकनें दो ।।(1)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,अभी आग ही लिखनें दो ।।

मूक समर्पण कर देनें से,अधिकार नहीं मिल पाते,
साहस और शौर्य के सम्मुख,सभी सूरमा झुक जाते,
एक गाल पर पड़े तमाचा,तुम दूजे पर मत खाना,
हाँथ उठाने वाले का तुम,शीश काटकर घर आना,
गाँधी के सिद्धांत पढ़ो पर,शेखर को भी याद रखो,
बनों शान्ति के वाहक लेकिन,सीनें में फौलाद रखो,
शान्ति मंत्र के जपने वालो,दमन सूर्य का जारी है,
आज किसी की बारी है कल,और किसी की बारी है,
समर शेरनी उस दुर्गा की,तुम शौर्य कहानी पढ़ लो,
इतिहास नया गढ़नें वाली,गाथा मर्दानी पढ़ लो,

सुप्त पड़ी तलवारों को अब,भर हुंकार खनकनें दो ।।(2)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,,,,,

लोलुपता के गरल कुण्ड को,दानवता से भर डाला,
भारत माँ के शुभ्र भाल को,किसनें रक्तिम कर डाला,
सोने की चिड़िया को देखो,नोंच नोंच कर खाते हैं,
तड़प रहा है भूखा भारत,लुच्चे मौज मनाते हैं,
रात दिवस है नाता जिनका,सीमा की रखवाली से,
उनका स्वागत होते देखा,डंडा पत्थर गाली से,
अबलाओं की इज्जत लुटती,खुलेआम चौराहों पर,
नोटों का जब भार बढे तो,पर्दा पड़े गुनाहों पर,
सीना ताने खड़ा अँधेरा,बन्दी हुआ उजाला है,
हर सीनें में जलती ज्वाला,किन्तु अधर पर ताला है,

अभी अभी यह कलम उठी है,इसको और बहकनें दो ।।(3)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,,,,

इतिहास उठाकर पढ़ लेना,यह भारत सिरमौर रहा,
सकल विश्व में इसका सानी,देश न कोई और रहा,
पागल और दिवाने जैसे,गीतों का वन्दन छोड़ो,
नयन तीसरा बनों शम्भु का,कामदेव का पथ मोड़ो,
काम वासना के अर्चन से,इतिहास नहीं रच सकता,
अलकों पलकों के वंदन से,यह देश नहीं बच सकता,
एक समय आएगा ऐसा,फिर गुलाम बन जायेंगे,
नागफनी के बिखरे काँटे,बरछी बन तन जायेंगे,
शंखनाद केशरिया पगड़ी,भाल तिलक परिवेश कहाँ, 
अमर शहीदों के सपनों का,प्यारा भारत देश कहाँ,

आज़ादी की नवल वधू को,अब मत और सिसकनें दो ।।(4)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...