Monday, May 4, 2020

आप जब भी अलग, छुप गये दूर थे!

आप जब भी अलग, छुप गये दूर थे!
दो जहां का डगर ,   मोड़  बेनूर  थे।

बढ़ रही थी उदासी, इसकदर से सदा!
चार  सू  थी  घनी  रात,  मजबूर   थे।

थक गये थे मगर, फिर उठे चल दिये!
हम जहां भी ढले,  पहर   मशहूर थे।

चाहतें थी कई, वक़्त  गुजरता  गया!
हां सफर में मिले,  लोग  भरपूर   थे।

दासतां क्या  कहें, बाबरा  मन  रहा!
वासते प्यार के,   तड़पते  जरूर  थे।

आप जब भी अलग, छुप गये दूर थे!
दो जहां का डगर ,   मोड़  बेनूर  थे।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दिल का करार ले गए है मुस्कुरा के वो।



दिल   का   करार  ले  गए  है   मुस्कुरा   के  वो।
जां  ले  चले  है  हाथों  में  चेहरा  छुपा  के  वो।।

जब  भी मिले है  बींध कर ये  दिल  निकल गए।
तिरछी नज़र  के  तीर  से  निशाना लगा के वो।।

शिद्दत    से    ढूंढता   है    कभी   मानता   नहीं।
दिल  को   ऐसा  चल  दिए  दीवाना बनाके वो।।

फना  होने  को  तैयार  है  दिल उनको  देखकर।
खुद शमा  बनके चल दिए  परवाना बना के वो।।

हो   दर्द   की   दवा   उनका   दीदार  ग़र  मिले।
"खेमेश्वर" सदा बस पास रहे बहाना बना  के  वो।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, May 3, 2020

इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी

रुक जाओ नारी तुम कभी सीता न बन पाओगी
इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी

खुद मैला करते दामन मन भी घायल करते तेरा
धरती के खुदाओं से न जीत कभी तुम पाओगी

जन्म लिया है नारी से नारी ही पालनहार बनी
कलुषित ऐसे नर के लिए निर्मल मनकैसे लाओगी

अग्निपरीक्षा देकर भी धरती माँ के अंक समाती है
घायल तन मन का बोझ लिए लौट कभी न पाओगी

चाहे त्रेता की सीता हो या हो कलयुग की निर्भया
घृणित आचरण इनका सर अपने लेकर जाओगी 

रुक जाओ नारी तुम कभी सीता न बन पाओगी
इन पाषाणों के बीच कुछ साबित न कर पाओगी

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, May 2, 2020

देखूं जो हंसीं सूरत गमों को भूल जाता हूँ।


थका सा दूर से जब भी तेरे पास आता हूँ!
देखूं जो हंसीं सूरत गमों को भूल जाता हूँ।

बसे हो आंखों में ऐसे हो दिल चुराये बैठे !
लगे है चार सू चाह के मेले सदाएं पाता हूँ।

खिले है गुल भी दिल के सजे बाग मन का!
मिला आ सुर में सुर को हंसीं गीत गाता हूँ।

रजा  है रब  की  मिले  यूँ दिल मन मन से!
करूं ये दुआ भी और एकदूजे को भाता हूं।

नहीं है कुछ भी आप बिन हंसीं  दुनियां में।
मिलें आ आये हम निभाने वफ़ा का नाता हूं।

थका सा दूर से जब भी तेरे पास आता हूँ!
देखूं जो हंसीं सूरत गमों को भूल जाता हूँ।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

हां जी ना पाएंगे हम, तुमसे बिछड़के।

आ  जीभर   के  देखूं,   तुझे   प्यार  करके!
हां  जी  ना   पाएंगे   हम,  तुमसे  बिछड़के।

इस  कदर  तुम  हमारे,  हम  तुम्हारे  हुए हैं!
जुदा  रहना  है  मुश्किल,  अब तो कसम से।

चलो  संग  चलें  हम,  जिंदगी  के  सफर में!
लिये  चाहतों  का  हंसीं,  लहर  हर  डगर पे।

जो  रूठूँ  मनाना ,  दूर  एक  पल  ना  जाना!
रहना हमदम हमेशा,  करीब   मेरे  नजर  के।

दिल मिले  और  दिलसे,  दुआ करते रहें हम!
जानेमन जान हो तुम, मेरे धड़कते जिगर के।

आ   जीभर   के  देखूं ,   तुझे   प्यार  करके!
हां  जी  ना पाएंगे   हम,   तुमसे     बिछड़के।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Friday, May 1, 2020

कहूं क्या बताएं सभी को पता है।

सफ़र   में   अकेले    हुएं    सब  जुदा  है!
कहूं  क्या   बताएं   सभी    को    पता  है।

उल्फत  का   ठिकाना   रहा  ना  यहां  पे!
किसे  प्यार   में   यूँ   यकीं   अब  रहा  है।

चन्द  लम्हें    ठहर  कर   गुजरते  चलें  हैं!
मिलकर  बिछड़ने   का  लगा  माजरा  है।

कब तलक इस कदर तय  सफर हम करें!
रूठे हैं पराये यहां  और  अपने   ख़फ़ा है।

लिये दिल ढला था मुहब्बत हां मगर फिर!
जताये   सभी   और   शिकवा   मिला  है।

सफ़र   में   अकेले    हुएं    सब  जुदा  है!
कहूं  क्या   बताएं   सभी    को    पता  है।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे

सूर्य का है काम ढ़लना,नित्य वह ढ़लता रहे ।।
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

शाम को जब आ अँधेरा द्वार पर होता खड़ा,
तानकर निज वक्ष दीपक गर्व से रहता अड़ा,
एक दिनकर काट पायेगा भला क्या कालिमा,
कालिमा के व्यूह में दम तोड़ देगी लालिमा,

है तमस का काम छलना द्रोह में छलता रहे ।।(1)
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

एक जुगनूँ का अहं कब जीत पाया रवि किरण,
मान मर्दन कर गया वह एक अंगद का चरण,
एक कवि स्वीकार करता सत्य के ही पक्ष को,
एक दीपक चीर देता है तमस के वक्ष को,

आँधियों का दम्भ तोड़े उम्र भर खलता रहे ।।(2)
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

शान्ति के प्रस्ताव का भी हम करें स्वागत भले,
किन्तु ऐसी शान्ति का क्या धर्म जिसमें जा जले,
रह न पाया धर्म रक्षित शेष बचती क्रन्दना,
लेखनी के भाग्य में बस आसनों की वन्दना,

चल पड़ा जो सत्य पथ पर वह सतत चलता रहे ।।(3)
दिव्य दीपक चेतना का,हो सजग जलता रहे ।।

सींचकर निज रक्त से की कोंपलों की सर्जना,
धन्य उनकी साधना है धन्य उनकी अर्चना,
अग्रजों ने है लगाया वह विटप कुछ सोच कर,
कर रहे संहार क्यों हो पत्तियों को नोंच कर,

"खेमेश्वर" विश्वास का यह वृक्ष नित फलता रहे ।।(4)
दिव्य दीपक चेतना का, हो सजग  जलता  रहे ।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश

माता पिता के चरण स्पर्श से होता है संतान के संपूर्ण अमंगलों नाश : पं.खेमेश्व माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता हर...