Sunday, December 29, 2019

आज का संदेश

*हमारी आत्मा और परमात्मा एक ही है । इस बात को मानते तो सभी है ,लेकिन इसे आत्मसात कर लेने वाले बिरले ही महा पुरुष होते है । वे किसी भी सुख -दुख से अप्रभावित रहते हुए पाप - पुण्यो को छोड़ कर आत्मा में ही रमण करने लगते है । उन मनुष्यों के के सभी कर्म दिव्यता को प्राप्त होते है ॥* 

*जब हम दूसरों पर भरोसा करते है और दूसरों पर ही निर्भर करते है तो उस स्थिति में हम अपनी आत्मिक शक्ति खो देते है ॥* 
 *अत: जगत पर निर्भर होने के बजाय अपनी आत्मा पर ही भरोसा करे । जब हम दूसरों का भरोसा छोड़ कर केवल अपनी आत्मा का ही भरोसा करेंगे तो जगत की सभी सम्पदायें स्वत: ही आप के पास आने लगेगी । हमारी दृष्टि जगत और केवल एक आत्म तत्व पर ही स्थिर होनी चाहिए । लोगों की धमकी और प्रशंसा को काट कर केवल आत्म तत्व पर ही दृष्टि रखें ॥*

 *शुभ प्रभात आपका दिन मंगलमय हो*🙏🙏

Saturday, December 28, 2019

आज का संदेश

🚩🚩
*प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।*
*सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः।।*

भावार्थ: *जिस सागर को हम इतना गम्भीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर जल-थल एक कर देता है; परन्तु साधु अथवा सज्जन पुरुष संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता। अतः साधु (सज्जन) पुरुष सागर से भी महान होता है।*
*आपका आज का दिन मंगलमय रहे।*
*🙏🌹🚩सुप्रभातम् 🚩🌹🙏*
*वन्दे मातरम्*🚩🚩
                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Friday, December 27, 2019

आज का संदेश

*आज का विचार*

*नकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति अपनी जिन्दगी को सही ढंग से नही जी सकता, क्योंकि वह हर पल घुटन भरी बेचैनी व भय के साथ सांसे लेता है। ऐसा जीना जीवन नहीं बल्कि मृत्यु समान होता है। नकारात्मकता त्यागें सकारात्मकता से नाता जोड़े।*
*हमारी सभी अंगुलियाँ लंबाई में बराबर नहीं होती है, किन्तु जब वे मुड़ती हैं तो बराबर दिखती हैं।*
*इसी प्रकार यदि हम किन्ही परिस्थितियों में थोड़ा सा झुक जातें है या तालमेल बिठा लेते हैं तो ज़िन्दगी बहुत आसान व आनंदित हो जाती है।*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🚩🚩 *शुभ प्रभात वन्दे मातरम्*🚩🚩
                   आपका अपना
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आज का संदेश

*आज का विचार*

*नकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति अपनी जिन्दगी को सही ढंग से नही जी सकता, क्योंकि वह हर पल घुटन भरी बेचैनी व भय के साथ सांसे लेता है। ऐसा जीना जीवन नहीं बल्कि मृत्यु समान होता है। नकारात्मकता त्यागें सकारात्मकता से नाता जोड़े।*
*हमारी सभी अंगुलियाँ लंबाई में बराबर नहीं होती है, किन्तु जब वे मुड़ती हैं तो बराबर दिखती हैं।*
*इसी प्रकार यदि हम किन्ही परिस्थितियों में थोड़ा सा झुक जातें है या तालमेल बिठा लेते हैं तो ज़िन्दगी बहुत आसान व आनंदित हो जाती है।*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🚩🚩 *शुभ प्रभात वन्दे मातरम्*🚩🚩
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Wednesday, December 25, 2019

आज का संदेश


जिस प्रकार वृक्ष हर रोज़ फूल-फल देता रहता है; कोई तोड़ भी लें, कुचल भी दें, तो नया सृजन करता रहता है *.*. जो चला गया उसकी परवाह नहीं करता, ठीक उसी प्रकार हमें अपने जीने के तरीके में बदलाव लाकर अनवरत नए निर्माण में अपनी ऊर्जा लगानी होगी और खुशनुमां माहौल में रहने का प्रयास करना होगा *…*..

*खोना-पाना* अपने जीवन का अमिट हिस्सा है, हमें इसे स्वीकार कर अपनी ज़िन्दगी में सहजता के रंग भरते रहना चाहिए तभी *अपनी साँसे महकती रहेंगी …*!!

🙏🏻🙏🏻🙏🏻  *सुप्रभात*  🙏🏻🙏🏻🙏🏻

वन्देमातरम् *…*.. *भारत माता की जय*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
                   आपका अपना
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Tuesday, December 24, 2019

आज का संदेश


*संसार में बहुत से लोग पुरुषार्थ करते हैं, कुछ लोगों को यहीं इसी जीवन में अनेक पुरस्कार तथा धन सम्मान आदि मिल जाता है, परंतु बहुत लोगों को इस जीवन में कोई पुरस्कार सम्मान आदि नहीं मिलता, लोग उनके गुणों का मूल्य उनके जीवित रहते हुए नहीं समझ पाते .*. *ऐसे लोग भी निराश न होवें* !!

*ईश्वर न्यायकारी है, वह तो सदा न्याय करता है और आगे भी करेगा* !!

*यदि किसी को इस जीवन में उसकी योग्यता के अनुसार उचित धन सम्मान आदि नहीं मिला, तो …*..

*मृत्यु के पश्चात ईश्वर अगले जन्म में उसको न्याय पूर्वक उसके सब शुभ कर्मों का उत्तम फल अवश्य देगा और संसार के लोग भी उसकी मृत्यु के बाद उसके बहुत गीत गाएंगे …*..

*संसार में ऐसी ही परंपरा देखी जाती है, कि जीते जी लोग किसी के गुणों का मूल्य ठीक से नहीं समझ पाते, उसकी मृत्यु के बाद जब उसकी कमी समाज को खटकती है, तब उसका सही मूल्य समझ में आता है, तब समाज के लोग उसे बहुत सम्मान आदि देते हैं, और उसके बहुत गीत गाते हैं …*..

*परंतु तब यह इतना उपयोगी नहीं होता, अधिक अच्छा तो यही है कि '''जीते जी व्यक्ति का उत्साह बढ़ाने के लिए समाज के लोग उसे सम्मानित करें''' जिससे वह उत्साहित होकर देश धर्म की और अधिक सेवा कर सके …*!!

*जय श्रीकृष्ण* भारत माता की जय
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

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Monday, December 23, 2019

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) *बलिदान दिवस*




*स्वामी श्रद्धानन्द जी* शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) *बलिदान दिवस*

22 फरवरी 1856 : *23 दिसम्बर 1926*

भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे, जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया, वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त सन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था।

उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय आदि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज व भारत को संगठित करने तथा 1920 के दशक में शुद्धि आन्दोलन चलाने में महती भूमिका अदा की।

*जीवन परिचय*

स्वामी श्रद्धानन्द (मुंशीराम विज) का जन्म 2 फरवरी सन् 1856 (फाल्गुन कृष्ण त्र्योदशी, विक्रम संवत् 1913) को पंजाब प्रान्त के जालन्धर जिले के तलवान ग्राम में  एक खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता, श्री नानकचन्द विज, ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा शासित यूनाइटेड प्रोविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी थे, उनके बचपन का नाम वृहस्पति विज और मुंशीराम विज था, किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ।

*पिता का स्थानान्तरण*

अलग-अलग स्थानों पर होने के कारण उनकी आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार नहीं हो सकी। लाहौर और जालंधर उनके मुख्य कार्यस्थल रहे, एक बार आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती वैदिक-धर्म के प्रचारार्थ बरेली पहुंचे; पुलिस अधिकारी नानकचन्द विज अपने पुत्र मुंशीराम विज को साथ लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का प्रवचन सुनने पहुँचे, युवावस्था तक मुंशीराम विज ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते थे; लेकिन स्वामी दयानन्द जी के तर्कों और आशीर्वाद ने मुंशीराम विज को दृढ़ ईश्वर विश्वासी तथा वैदिक धर्म का अनन्य भक्त बना दिया।

वे एक सफल वकील बने तथा काफी नाम और प्रसिद्धि प्राप्त की, आर्य समाज में वे बहुत ही सक्रिय रहते थे।

उनका विवाह श्रीमती शिवा देवी के साथ हुआ था, जब आप 35 वर्ष के थे तभी शिवा देवी स्वर्ग सिधारीं; उस समय उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। सन् 1917 में उन्होने सन्यास धारण कर लिया और स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से विख्यात हुए।

गुरुकुल की स्थापना संपादित करें

अपने आरम्भिक जीवनकाल में स्वामी श्रद्धानन्द

सन् 1901 में मुंशीराम विज ने अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान *गुरुकुल* की स्थापना की, हरिद्वार के कांगड़ी गांव में गुरुकुल विद्यालय खोला गया, इस समय यह मानद विश्वविद्यालय है जिसका नाम गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय है। गांधी जी उन दिनों अफ्रीका में संघर्षरत थे। महात्मा मुंशीराम विज जी ने गुरुकुल के छात्रों से 1500 रुपए एकत्रित कर गांधी जी को भेजे। गांधी जी जब अफ्रीका से भारत लौटे तो वे गुरुकुल पहुंचे तथा महात्मा मुंशीराम विज तथा राष्ट्रभक्त छात्रों के समक्ष नतमस्तक हो उठे, रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने ही सबसे पहले उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया और बहुत पहले यह भविष्यवाणी कर दी थी कि वे आगे चलकर बहुत महान बनेंगे।

*पत्रकारिता एवं हिन्दी-सेवा*

उन्होने पत्रकारिता में भी कदम रखा, वे उर्दू और हिन्दी भाषाओं में धार्मिक व सामाजिक विषयों पर लिखते थे। बाद में स्वामी दयानन्द सरस्वती का अनुसरण करते हुए उनने देवनागरी लिपि में लिखे हिन्दी को प्राथमिकता दी। उनका पत्र सद्धर्म पहले उर्दू में प्रकाशित होता था और बहुत लोकप्रिय हो गया था। किन्तु बाद में उनने इसको उर्दू के बजाय देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी में निकालना आरम्भ किया। इससे इनको आर्थिक नुकसान भी हुआ। उन्होने दो पत्र भी प्रकाशित किये, हिन्दी में अर्जुन तथा उर्दू में तेज। जलियांवाला काण्ड के बाद अमृतसर में कांग्रेस का 34वां अधिवेशन ( दिसम्बर 1919 ) हुआ। स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना भाषण हिन्दी में दिया और हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किए जाने का मार्ग प्रशस्त किया।

*स्वतन्त्रता आन्दोलन*

उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ-चढ़कर भाग लिया, गरीबों और दीन-दुखियों के उद्धार के लिये काम किया। स्त्री-शिक्षा का प्रचार किया, सन् 1919 में स्वामी जी ने दिल्ली में जामा मस्जिद क्षेत्र में आयोजित एक विशाल सभा में भारत की स्वाधीनता के लिए प्रत्येक नागरिक को पांथिक मतभेद भुलाकर एकजुट होने का आह्वान किया था।

*शुद्धि आंदोलन*

शुद्धि आंदोलन स्वामी श्रद्धानन्द ने जब कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं को *मुस्लिम तुष्टीकरण की घातक नीति* अपनाते देखा तो उन्हें लगा कि यह नीति आगे चलकर राष्ट्र के लिए विघटनकारी सिद्ध होगी, इसके बाद कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया, दूसरी ओर कट्टरपंथी मुस्लिम तथा ईसाई हिन्दुओं का मतान्तरण कराने में लगे हुए थे; स्वामी जी ने असंख्य व्यक्तियों को आर्य समाज के माध्यम से पुनः वैदिक धर्म में दीक्षित कराया, उनने गैर-हिन्दुओं को पुनः अपने मूल धर्म में लाने के लिये शुद्धि नामक आन्दोलन चलाया और बहुत से लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में दीक्षित किया, स्वामी श्रद्धानन्द पक्के आर्यसमाज के सदस्य थे, किन्तु सनातन धर्म के प्रति दृढ़ आस्थावान पंडित मदनमोहन मालवीय तथा पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ को गुरुकुल में आमंत्रित कर छात्रों के बीच उनका प्रवचन कराया था।

*हत्या*

*23 दिसम्बर 1926 को नया बाजार स्थित उनके निवास स्थान पर अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी धर्म-चर्चा के बहाने उनके कक्ष में प्रवेश करके गोली मारकर इस महान विभूति की हत्या कर दी* उसे बाद में फांसी की सजा हुई।

श्रद्धानंद का जन्म 2 फरवरी सन् 1856 (फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, विक्रम संवत् 1913) को पंजाब प्रान्त के जालंधर जिले के पास बहने वाली सतलुज नदी के किनारे बसे प्राकृतिक सम्पदा से सुसज्ज्ति तलवन नगरी में हुआ था। उनके पिता नानकचन्द विज ईस्ट ईण्डिया कम्पनी द्वारा शासित यूनाइटेड प्रोविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी थे। उनके बचपन का नाम वृहस्पति विज और मुंशीराम विज था, किन्तु मुन्शीराम विज सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ। मुंशीराम विज से स्वामी श्रद्धानंद बनाने तक का उनका सफ़र पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायी है। स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई एक भेंट और पत्नी शिवादेवी के पतिव्रत धर्म तथा निश्छल निष्कपट प्रेम व सेवा भाव ने उनके जीवन को क्या से क्या बना दिया।

वकालत के साथ आर्य समाज के जालंधर जिला अध्यक्ष के पद से उनका सार्बजनिक जीवन प्रारम्भ हुया| महर्षि दयानंद के महाप्रयाण के बाद उन्होने स्वयं को स्व-देश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार, वेदोत्थान, पाखंड खडंन, अंधविश्‍वास उन्मूलन और धर्मोत्थान के कार्यों को आगे बढ़ाने में पूर्णतः समर्पित कर दिया। गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म प्रचार, पत्रिका द्वारा धर्म प्रचार, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढ़ने व पढ़ाने की व्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवीकोपार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आर्य जाति के उन्नति के लिए हर प्रकार से प्रयास करना आदि ऐसे कार्य हैं जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद अनंत काल के लिए अमर हो गए।

23 दिसंबर, 1926 को अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी युवक ने धोखे से गोली चलाकर स्वामी जी की हत्या कर दी। यह युवक स्वामी जी से मिलकर इस्लाम पर चर्चा करने के लिए एक आगंतुक के रूप में नया बाज़ार, दिल्ली स्थित उनके निवास गया था। उनकी हत्या के दो दिन बाद अर्थात 25 दिसम्बर, 1926 को गुवाहाटी में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में जारी शोक प्रस्ताव में जो कुछ कहा वह स्तब्ध करने वाला था। महात्मा गांधी के शोक प्रस्ताव के उद्बोधन का एक उद्धरण इस प्रकार है *मैंने अब्दुल रशीद को भाई कहा और मैं इसे दोहराता हूँ, मैं यहाँ तक कि उसे स्वामी जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूँ;* वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध घृणा की भावना को पैदा किया, इसलिए यह अवसर दुख प्रकट करने या आँसू बहाने का नहीं है।

महात्मा गांधी ने अपने भाषण में यह भी कहा, *… मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता, हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए; मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ।* उन्होंने आगे कहा कि *समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पढ़ती है। स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है।* अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधी ने कहा कि ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया, स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली विभाजन को मजबूत कर सकेगा। (यंग इण्डिया, 1926)

यहाँ यह बताना आवश्यक है कि स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वेच्छा एवं सहमति के पश्चात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मलखान राजपूतों को शुद्धि कार्यक्रम के माध्यम से हिन्दू धर्म में वापसी कराई। शासन की तरफ से कोई रोक नहीं लगाई गई थी जबकि ब्रिटिश काल था, हत्या का कारण कुछ भी हो, हत्या हत्या होती है, अच्छी या बुरी नहीं। *अब्दुल रशीद को भाई मानना, और उसे निर्दोष कहना, गांधी को महात्मा के पद से नीचे गिराता है।*

*हम सभी को स्वामी श्रद्धानंद के बलिदान को याद करना चाहिए तथा उनके विचारों को अपने जीवन में प्रयुक्त करना चाहिए।*

वंदेमातरम् *भारत माता की जय*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...