*जमाना रिश्र्वत के*
रचना:-पं.खेमेस्वरपुरी गोस्वामी
मुंगेली छत्तीसगढ़ ८१२००३२८३४
पइसा के हे जोर, ज़माना रिश्वत के
चर्चा जम्मों ओर, ज़माना रिश्वत के
कोटवार ल आके खुदे घर भितरी
गारी दे उलटा चोर, ज़माना रिश्वत के
संभाले के लाइक नई हे जेन सरकार
ओखरेच हाथ में डोर, ज़माना रिश्वत के
बोलय घलो तो कइसे वो गुरतुर बोली
हवय दिल के कमज़ोर, ज़माना रिश्वत के
जइस भी हे, अब तव घर मा दौलत के
होवे बरखा घनघोर, ज़माना रिश्वत के
समझदार अधिकारी बोलय सुन बाबू रे-
दूनों हाथ ले येला बटोर, ज़माना रिश्वत के।।
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