मैं देश के सिपइहा अंव, सरकारी होगे लठिया हंव
{छत्तीसगढ़ के सैनिकों को समर्पित चार पंक्तियों का प्रयास}
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी(छत्तीसगढ़िया राजा)
संपर्क सूत्र:- ८१२००३२८३४/७८२८६५७०५७
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असमंजस के परिस्थिति ले जूझत रहिथंव,
सबले एके ठिन सवाल पुछत रहिथंव।
गद्दी में बइठे हावय जेन बनके नवाब,
मांगत हंवव आज ओखर ले जवाब।
देहे परही आज मोर हिस्सा के जवाब.....
मैं सिपईहा..
हर खेप लहुटथंव,होथे जब छुट्टी,
मिलथे घर मं बाई मोर बिन पहिरे कान के खुंट्टी।
ददा के खतम होगे रथे ओ तो दवाई के शीशी,
घर मं खाय बर नि राहय हरदी मिरचा पीसी।
दाई के टुटहा चश्मा के कांच,
चुल्हा म परथे थोरकीन आंच।
लइका मन कहिथे स्कुल ले,आये हे फीस के पाती,
मिलथे बहुत कन काम मोला,येति ओती सबो कति!
मैं मेढ़ो (बार्डर) मं परे रहिथंव,
जंगल पहाड़ में भोंभरा जरथंव।
मैं जाथवं जब भी अपन काम मं.....
सिल जाथे होंठ गोसईन के,भर आथे आंखी दाई के
अऊ ददा हमर लहूटही कहिके,
चर्चा रहिथे लइका मन के जुबान मं।
मैं जाथंव जब भी अपन काम मं...
हर बार निकथंव में घर ले ये आखिर मिलन सोच के,
कहिथे मोला बाबुजी,
बने हंव कहिके पाती लिखबे उहां तैं ह पहुंच के।
मैं बेरोजगारी ले तरस्त रेहेंव,
हालत ले तो बड़ पस्त रेहेंव।
पकड़ लेंव सिपईहा के नऊकरी
काबर के......
गरीबी में तड़पे जबरदस्त रेहेंव।
न ओ दिन सिपईहा के शंउख रिहिस,
न तो देशभक्ति ल जानंव।
आगु मं जरुरत मुंह फारे खड़े रिहिस,
सिपईहा में भर्ती होना मजबूरी अपन मैं मानंव।
सब बड़े आदमी मन,सिपईहा के जिनगी ल तो लुटथे,(वीआईपी सुरक्षा)
सिपईहा मरथे.....
काबर के इंखर में देशभक्ति बड़ रहिथे।।
( चार पंक्ति में थोड़ा दर्द के आभाष )
मे हर देखे हंव.....
शहीद होय सिपईहा के परिवार ल,
शहीद के परिवार के,छलत हर किरदार ल।
मैं पलटत देखे हंव इंखर तो दरबार ल....
एक मैडल .........
एक मैडल पति के, हक अदा नई करे सकय,
भुइंया के नानुक टुकड़ा ले, ददा ल कांधा तो नई मिलय।
लइका मन ल,मुश्कुल बखत में,
बाप के सांया नई मिले सकय।।
झीरम के घाटी, सरगुजा के तात माटी।
अबुझमाड़ के जंगल में, उड़िसा बार्डर के दलदल में।
चिल्फी के घाटी मं, अचानकमार के छाती मं।
बिलासपुर के मैदान मं, रायपुर शहर रेगिस्तान मं।
दोरनापाल के माया मं, संगीनों के साया मं।
जीये के कोशिश घलो में करथों,
देश के गोसईया (प्रधानमंत्री).......
देश के गोसईया तोरे ले एक सवाल करथों??
काबर नई हे देश में समानता के मंजूर,
काबर तन जाथे इहां, नक्सलवादी मन के खंजर।
का हावय? कोनो समाधान तुंहर पास,
के छोड़ दिन, जनता ऊपर हमर अब आस।
( चार पंक्ति ऐखर ले करू मैं कुछ नइ लिखे हंव )
काबर सिपईहा नई बनय कोनो अमीर मन के लइका,
का ऊंखर दिल में नई राहय देशभक्ति के कोनो फइरका।
काबर नई रहय कोनो,मंतरी के बेटा हमर साथ,
का ऊंखर में,हावय कोनो अऊ विशेष बात।
अऊं कहूं हावे तो........
मोला महान बताये के,
मैं जानत हंव ये षड्यंत्र हरय....
खुद ल बचाये के, मोला वक्त ले पहिले मारे के।
सवाल बहुत हे मन मं मोर....
फेर का करंव...
देश के सामान्य नागरिक हरंव,
बस मौन साधे बईठे हंव।
मन में तो जानत हंव हकीकत,फेर मुंह में लाड़ू गोंजे बईठे हंव।
मैं देश के सिपईहा अंव,आज अपन ,पीरा गोठियाथंव।
मैं देश के सिपईहा अंव, सरकारी होगे लठिया हंव।।
🌺🌻वंदे मातरम् 🌻🌺
जय हिन्द जय भारत
जय छत्तीसगढ़
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