Monday, July 2, 2018

पुरुष ले जादा नारी के भार

पुरुष ले जादा नारी के भार
(हास्य-व्यंग्य)
रचना :- पं. खेमेस्वर पुरी गोस्वामी "क्रिश"
8120032834/7828657057.
(छत्तीसगढ़िया राजा)

अकक्ल बांटे लगिस विधाता,

लंबा लगिस कतारी।

सब्बो डउकालोग खड़े रहिन

            कोनो लंग नि रिहिस नारी ।

सब्बो मईलोगिन कहां रहि गिन,

          होइस अचरज अबतो।

पता चलिस ब्यूटी पार्लर में,

          पहुँच गे रिहिन सबतो।

मेकअप के रिहिस बिकटे जिनिस,
                 एक एक झैन ऊपर भारी।

बईठे रिहिन कतको इंतजार में,

        कब आही मोर पारी।

ओती विधाता ह पुरूष मन में,

          अकक्ल बाँट दीच सारी ।

ब्यूटी पार्लर ले फुर्सत होके,

        जब पहुँचीन  जम्मो नारी ।

बोर्ड लगे रिहिस कोठी सिरागे,

        नइहे अक्ल अब बाचिस ।

रोये लागिस सबबो महिला,

         ब्रह्मा हर एती ओती झांकिस ।

पूछिस कइसन हल्ला होवथे,

        ब्रह्मलोक के द्वारे ?

पता चलिस स्टॉक अकल के

        पुरुष ले गिन सारे ।

ब्रह्मा जी हर कहिस देवियों ,

          बहुत देरी तुमन कर देहो।

जेतका रिहिस अकल सबला जे

          पुरूष मन में तो मैं भर देहों।

लगीन सुसके सब महिला मन ,

        ये कइसन नियाव तुहांर?

कसनो कर तें चाहिच हमला,

          आधा भाग हमार ।

पुरुष मन लंग जऊंहर बल हे ,

          हमन लड़ेच नई पावन ।

अकल हमार बर बड़ हे जरुरी ,

         तें कसनो कर हम नि जानन ।

सोचके मेंछा ल अटिंया के ,

        तब बोलिच हे ब्रह्मा जी ।

एक वरदान तुमन ल देहूं ,

        अब हो जावव राजी ।

थोड़कीन बस हंस देहू तूमन ,

        रहिहि पुरुष पर भारी ।

कतको भी डेढ़ हुंसियार हो,

        अकक्ल जाही ओखर मारी ।

एक मइलोगिन तर्क दे डरिस,

      मुश्कुल हमला बड़ होथे।

हंसे ले तो जादा परानी मन,

        जीनगी भर बड़ रोथे।

ब्रह्मा बोलिस येहू बने हे येला,

        रोना घलो कर देही ।

औरत के रोवई तको ह,

        अकक्ल ऊंखर हर लेही ।

एक झिन डोकरी बोलिस बबा,

      हांसे रोये ल हमला नई आये ।

झगड़ा में हन सिद्धहस्त हमन,

      खूब झगड़ा हर तो भाथे।

ब्रह्मा बोलिस चलवं मान लेंव,

      अब मैं बात तुंहर ।

झगड़ा के आगू घलो  में

      अकक्ल काम नि करें ऊंखर ।

ब्रह्मा बोलिच सुनव धियान ले,

      आखिरी वचन हमार ।

तीन शस्त्र अब दे देंव तूंहला,

      पूरा न्याय हमार ।

ये तीन अचूक शस्त्र में भी,

      जेन मानव नई फंसेही ।
निश्चित समझव,

      ओखर घर कभू नई  बसही ।

कहिथे कवि खेमेस्वर; ध्यान से,

      सुन लव जी बात हमार ।

बिना अकक्ल के घलव होथे,

      पुरुष ले जादा नारी के भार।
पुरुष ले जादा नारी के भार......!!!

🤔😇💃👣👓😜😃😂

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