Sunday, July 8, 2018

रही रही के होत बरसात ले कवि के विनती

रही रही के होत बरसात ले ,कवि के विनती..

रचना :- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली छत्तीसगढ़-7828657057

तैं धन्य हस बरखा रानी, मरतपियासेल देथस पानी
जग में तें खुशहाली लाथस, खेतन में हरियाली लाथस…………
संग में तोर ठंडकता लाथस, ताय भुइंया शीतल कर जाथस
नवानवा तैं फूलखिलाथस, जंगल मं तो मंगल कर जाथस

तैं दुनिया के रक्षाकरइया,तोर बिन हमला कोन देहि पानी
अन्नदात्री तैं महारानी, तैं धन्य हस बरखा रानी…………
जब तें किरपाकरथस रानी, जग में भर जाथे तो पानी
"तोर उपर अरमान हमर हे, तोर उपर अब परान हमर हे"
एखरे सेती तोर करतथन आगवानी, चाहे राजा रहे के रानी
सब मरजाहींबिनपानी,पशु,पक्षी,मानव सबके जीनगानी
तुमन जब जाथो हो रानी, तब रो पड़थे इहां सबो परानी (प्राणी)
यह सच हे करुण कहानी, तैं अब इहें रइह मनमानी…………
तब हमन भी सुख करबोे, नवा जीवन जीए तो सकबो
तैं धन्य हस बरखा रानी, मरतपियासेल देथस पानी..!!

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