डोंगरी कस खड़े रहिस परशानी,
मैं समुंदर लहरा कस तो टकरात रहेंव।
पथरा छाती ढकेलय वापिस मोला,
हिम्मत बटोर घेरी बेरी वापस आत रहेंव।
धुर्रा धोवा गे जब सच के ऐैना ले,
मोर कोशिश के असर रंग देखत रहेंव।
टुटे लागिस पथरा घलो अब धीरे-धीरे,
निशाना साध हर बार वार बरसात रहेंव।
बिखरे लगिस जब ओ जर्रा जर्रा,
देख साहिल मैं ओ पार रद्दा बनात रहेंव।
बिसर गे पथरा मोर रुकावट के,
मैं अब धुन, उमंग के तो गीत गात रहेंव।
डोंगरी कस खड़े रहिस परशानी,
मैं समुंदर लहरा कस तो टकरात रहेंव।।
✒पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी✒
मुंगेली-छत्तीसगढ़ 8120032834
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