चेहरा मोर हे फेर नजर ओखर
सुन्ना मन में भी गोठ हे ओखर
मोर चेहरा म कविता लिखथे
गीत गावत आंखी हर ओखर
सच्चा दोस्ती के पता देहे लगिस
अउंहा झऊंहा सांस लेत ओखर
अइसन बेरा घलो मैं गुंजारेंव आज
बिहना जब मोर रिहे संझा ओखर
नींद इही सोच के टूटथे अक्सर
कइसे कटत होही रातिहा ओखर
दूरिहा रहिके घलो हरदम रहिथे
मोला थाम्हे जइसे बांह ह ओखर........
मोर जीनगी के अनमोल रतन
सुघर संगवारी जी हरे तो ओहर........
✒ ✍ *पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी* ✍ ✒
मुंगेली-छत्तीसगढ़ - 7828657057
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