Wednesday, July 18, 2018

जननी हरव मैं एक देह के

जननी हरंव मै एक देह के ;
काबर नारी केअपमान करथव तुम…!
जेस देह ला हमन जन्मदेयेन; काबर नारी ल ही "छलथव"तुम…!
जेन अंग ले तैं हर जन्म लेहेस; काबर ओला दूषित करथव तुम…!
जेन वक्षके दूध रग रग में हे; कइसे ओमा आघात करथव तुम…!
का नारी केवल  एक देह"हे; काबर ऐखर "मान-मर्दन"करथव तुम…!
जेन मां ह तुंहला जनम दिहिस; काबर कोख के अपमान करथव तुम…!
अनुपम अतुल्य अद्भुत नारी ला; काबर दनुज-तमस रूप देखाथव तुम…!
चिर-वसन" मा लिपटे नारी; कइसे तुंहला जननी देवी नई लागय…!
मत करव मान-मर्दन नारी के! वो तुंहर जननी हे…लाज तुंहला नई लागय…!
✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍
मुंगेली छत्तीसगढ़-8120032834

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