मैं तो निचट किसान हंव!
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया"
८१२००३२८३४-७८२८६५७०५७
परता परे भुंइया लेे सोना उगाए के औकात रखथंव
फेर अपनेच हक़ की लड़ाई लड़ई लड़े ले डरथंव
ये सूखा, ये मटासी, सुखे फसल ल जब देखथंव
न दीखय कोनो रद्दा
तभे आत्महत्या करथंव .
उड़ावथे मजाक मोर ये सरकारी कामकाज ,
बन के रहि गेंव मैं राजनीती के मोहरा आज .
क्या छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश क्या महाराष्ट्र , तमिलनाडु से लेके पुरा राष्ट्र ,
मरत परे अन्नदाता के कहानी बनगे हंव,
मै किसान हंव!
साल भर करथंव मै मेहनत, ऊगाथंव दाना ,
जेन बिंकय बाहर हजार अऊ मोला मिलय चार आना.
नई माफ़ करे सकंव, वो संगठन वो दल,
राजनीती चमकथें उंखर,बर्बाद होथे फसल.
डूबे हंव कर्जा में , का ब्याज क्या असल,
इंही मन ल खवाय बर उगाएंव दाना, फेर होगेंव मही जमीन ले बेदखल.
बहुत गीत बने बहुत लेख छपे हे के मै महान हंव!
पर दुर्दशा नई देखिन मोर कोनो, अइसन मैं किसान हंव!
लहलहात फसल वाले खेत अब सिरिफ सनीमा में होथे
असलियत तो ये हे के हमरे घर में एक-एक दाना बर रोथें।
अब कहाँ रास आथे उनला चिरपोटी के टमाटर,
वो धनिया, वो रमकेलिया अऊ वो ताजा ताजा बटर.
आधुनिक युग हे भुलागेव मोला बस एक छुटे रथे ते सुर, तान हंव!
बचा सकथच त बचा ले मोला,
ए रमन सरकार, मैं तो निचट किसान हंव! !
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