Monday, July 2, 2018

अरे देख किसान पंखा ले झूल गे हे

अरे देख किसान पंखा ले झूल गे हे....
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया"
मुंगेली-छत्तीसगढ़

बदल गेहे फ़ैशन जम्मो
बदल गे दुनिया के हाल,
बदलिच नहीं किसान देश के;
अब अबले हे “बिचारा बदहाल”

बेवस्था के का जुल्मों-सितम;
क़ुदरत का क़हर पियत हे,
देख  रमन मोर अन्नदाता;
ख़ुदे ज़हर ल पियत हे…

रोवत हे लइका मन
बिलखत हे सियान,
पालनकर्ता आज मांगत हे
दू रोटी के पिसान…

झेलत हे इमन
हरदम सरकार के फटकार,
एक तो बादर नि बरसे;
ऊपर ले गरज-थे साहूकार…

देखव कर्जा म बुड़े हे;
सोचके आत्मा मरत हे
भरे पंचइत म इंखर;
पागा घलो ऊतरत  हे…

कलजूग के जऊंहर थपरा;
सुनके सब कोनो हांसत हे,
बीस रुपये के चैक देखके;
ऊंखर आंखी बड़ रोवत हे…

घर बइठे कुंवारी बेटी;
मया ददा के  भूल गे हे, आज ओखर चुनरीे ले;
अरे देख किसान पंखा ले झूल गे हे.....

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