Thursday, August 16, 2018

झगरा नि सिराय संगवारी

असमंजस के थपरा,हर कोनो तो इहाँ खाथे संगवारी,
बड़े खड़ा होके महल में,देख देख बिजराथे संगवारी।
जुग बदलगे,हाल नि बदलिस,राजा मन के राज रहे हे,
जनता मन के,दु:ख पीरा ले,ओही जुना नाता संगवारी।
पहिली तो नेता जखम देथे, फेर नून घलो उन डारत हें,
सबला आपस मा लड़वाये,फेर गलत कहिथे संगवारी।
जिहाँ शांत रहे थोकिन,अब, उहों बवाल तो करवावत हे,
सपना मा घलो नि दिखे,जिनगी हाँसत-गावत संगवारी।
पाँव पाँव मा जनवर कस दर्शन, मानवता मरत जावत हे,
जेन तोर आँव कहि आगू आथे,दरद  देके जाथे संगवारी।
सबके मन बनगे कुरूक्षेत्र, इहां लहू के धार बोहावत हे,
लोकतंत्र में मतलब के,अब,झगरा नई सिराय संगवारी।
कोनो सुनके गुसियावत हे,कोनो सुन हँस गोठियावत हे,
सत के "खेमेस्वर" गठरी छोरे,सही बात सुनाय संगवारी।

                 ✍पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी✍
                        "छत्तीसगढ़िया राजा"
                          मुंगेली - छत्तीसगढ़
                           7828657057
   khemeshwarpurigoswami@gmail.com

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