Sunday, September 2, 2018

जन्माष्टमी विशेष

अब तो आजा ओ कान्हा,दरस बर नैना तरसत हे।
काला अऊ कईसे कान्हा, बतावंव  मन तड़पत हे।
तोर हांसी ठिठोली कान्हा,देखेबर त जी मचलत हे।
मोरो अंगना कभू रे कान्हा,लगे के लल्ला चहलत हे।
देख तोर बहिनी ल कान्हा,रोज चीर अब सरकत हे।
ऐ दुस्सासन मन के कान्हा,रोज बूता बल बड़हत हे।।

गर अब भी तें नि आबे प्रभु, द्रोपदी नि जनमे कोनो मैया।
तोर खाए बर बने गुरतुर कभु, नि रहि दही कोनो जमैया।
तोला गोपीयन ले फुरसत नि हे,भेज दे न ओ दाऊ भैया।
तिंहीं बता तोर बिन अब तो, कईसे मनाईन आठे कन्हैया।।
इँहा रोज जनमत हे दुर्योधन, मैं हंव तोर बर जन्म देवैया।
पाण्डुक, शिशुपाल के सत्ता हे, के हें कोनो  ईंखर  नथैया।
अब तो द्रोपदी के लाज बचाव,बन  हमर कदम के छंईया।
जेन चाहे फेर आये माधव,ऊंहला बधाई हो आठे कन्हैया।।

                ✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍
                      भागवत कथा वाचक
                       मुंगेली - छत्तीसगढ़
                        ७८२८६५७०५७

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