Tuesday, January 22, 2019

कुछ तुच्छ मुक्तक

तय करना था एक लंबा सफर पर कोई हमसफ़र नहीं था…
मुजपे आते जाते मौसमों का कोई असर नहीं था…
क्या खूब मिलिथी उनसे मेरी नज़र किसी रोज,
अब न मिले वो एक पल भी, तो हमको सबर नहीं था…

क्यों हम किसी के खयालो में खो जाते है,
एक पल की दुरी में रो जाते है,
कोई हमें इतना बता दे की, है ही ऐसे है,
या प्यार करने के बाद सब ऐसे हो जाते है…

सुर्ख गुलाब सी तुम हो, 
जिन्दगी के बहाव सी तुम हो, 
हर कोई पढ़ने को बेकरार, 
पढ़ने वाली किताब सी तुम हो।

अपनी तो ज़िन्दगी ही अजीब कहानी है,
जिस चीज़ की चाह है वो ही बेगानी है,
हँसते भी हैं तो दुनिया को हँसाने के लिए,
वरना दुनिया डूब जाये इन आंखों में इतना पानी है..

पावन प्रेम अगर महकेगा,
               तो मन चंदन हो जाएगा !
नारी "राधा " हो जाएगी
            नर "मनमोहन" हो जाएगा !     
"तन " को चाहे जितना रंग लो
                 कोई फर्क नही होगा....
"मन " को जिस दिन रंग लोगे
                मन वृंदावन हो जाएगा !!

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