वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था से पूरी तरह अलग है। जाति कभी बदली नहीं जा सकती वर्ण बदला जा सकता है। महर्षि मनु मनुस्मृति में लिखते हैं - ब्राह्मण शूद्र बन सकता है और शूद्र ब्राह्मण इसी तरह क्षत्रिय वैश्य बन सकता है और वैश्य क्षत्रिय।
यजुर्वेद कहता है - ब्राह्मण इस मानव समाज का सिर है, क्षत्रिय बाहु (हाथ ) है, वैश्य पेट है तथा शूद्र पैर है। यजुर्वेद में ही लिखा है - हे परमात्मा - हमारे ब्राह्मणों में तेज व ओज दो, हमारे शासक वर्ग में (क्षत्रिय), तेज व ओज दो, वैश्य तथा शूद्र में तेज ओज दो। मुझ में भी तेज ओज पराक्रम दो |
अथर्ववेद में लिखा है - हे परमात्मा - मुझे देवों मे (श्रेष्ठ व्यक्तियों मे / ब्राह्मणो मे), प्रिय करो, मुझे क्षत्रियों मे प्रिय करो मुझे वैश्य व शूद्र में प्रिय करो।
ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है, जन्म के आधार पर नहीं | यह बात सिर्फ़ कहने के लिए ही नहीं है, प्राचीन समय में इस का व्यवहार में चलन था | जब से इस गुणों पर आधारित वैज्ञानिक व्यवस्था को हमारे दिग्भ्रमित पुरखों ने मूर्खतापूर्ण जन्मना व्यवस्था में बदला है, तब से ही हम पर आफत आ पड़ी है जिस का सामना आज भी कर रहें हैं|
वर्ण परिवर्तन के कुछ उदाहरण -
(१) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है |
(२) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये |ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(३) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |
(४) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४)
अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?
(५ ) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(६ ) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(७) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(८) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए
( ९ ) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने |
(१०) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
(११) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं |
(१२) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(१३) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना |
(१४) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ |
(१५ ) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |
(१६ ) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(१७) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |
(१८) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९) |
(१९) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों से भी पता चलता है कि कुछ क्षत्रिय जातियां, शूद्र बन गईं | वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल में मिलाए गए हैं | इन परिवर्तित जातियों के नाम हैं – पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद, खश |
(२०) महाभारत अनुसन्धान पर्व (३५.१७-१८) इसी सूची में कई अन्य नामों को भी शामिल करता है – मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर|
(२१) आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं |इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं | लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गये|
मनुस्मृति वेदानुकूल मानव जाति का बहुमूल्य संविधान है,इसमें वर्ण व्यवस्था कर्मानुसार है,दण्ड व्यवस्था व राज्य व्यवस्था का सुन्दर वर्णन है | अम्बेडकरवादियों ने नाहक ही इसको बदनाम कर रखा है | इसका दहन करने वाले वा इसका विरोध करने वाले नितान्त अनाडी व सत्य से अनभिज्ञ हैं कुछ लोगों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये इसमें मिलावट कर रखी है | प्रक्षिप्त श्लोकों को हटा कर विशुद्ध मनुस्मृति आर्य विद्वानों ने उपलब्ध करा दी है |
प्रस्तुति
*पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
राजर्षि राजवंश-आर्यावर्त्य
धार्मिक प्रवक्ता - साहित्यकार
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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