#भोरमदेव_मंदिर जिसे छत्तीसगढ़ का #खजुराहो भी कहा जाता है, वैसे इनके बारे में आप सभी परिचित हैं लेकिन मैं आप लोगों को कुछ और जानकारी उपलब्ध करा रहा हूं, यहां तीन मंदिर है
१.- #छेरकी_मंदिर/महल
२.- #मण्डवा_महल/मंदिर
३.- #भोरमदेव_मंदिर
यहां तीनों मंदिर लगभग #५००० वर्ष पहले की #वास्तुकला व #शिल्पकला का एक अनूठा उदाहरण है अद्भुत नक्काशीदार मंदिर है.!
१:- छेरकी महल:- एक किदवंती के अनुसार यह मंदिर एक सामान्य प्राचीन काल की मंदिर है जिसका बाहरी द्वार व बरामदा टुट चुका है यह भी शिव मंदिर हुआ करता था यहां अत्याचारी मुस्लिम शासक (नाम लेना भी उचित नहीं है) जब मण्डला में शासन करता था तब तुड़वा दिया था फिर उसमें बकरी को बांध दिया था, तब से इसे छेरकी महल/मंदिर के नाम से जाना जाता है।
२:- मण्डवा महल:- चुंकि यह तीनों व आसपास सैकड़ों मंदिरों का निर्माण फणिनागवंशी सामंत राजा भोरमदेव ने अलग अलग उद्देश्यों से शिव मंदिर बनवाया था ऐसा मानना है परंतु अगर तीनों मंदिर का मुआयना किया जाए तो तीनों एक ही उद्देश्य व संदेश देने के लिए बनाया गया था, इस मंदिर को लोग विश्व का एकमात्र मानव यौन क्रीड़ा के अलग-अलग हिस्सों के बारे में दूसरे राजाओं को लुभाकर भ्रमित करने के लिए बनाया गया था इस तरह से प्रचारित किया गया है, जबकि यह वही झुठला दिया जाता है, ऐसा कुछ नहीं है..
३:- भोरमदेव महादेव मंदिर:- महाराज भोरमदेव जी द्वारा निर्मित होने के कारण उनके नाम से जाना जाने वाला शिव मंदिर, मण्डवा महल अकेला ऐसा मंदिर है कहना इस भोरमदेव मंदिर में ही झूठा साबित हो जाता है, मण्डवा महल में केवल मानव यौन क्रीड़ा के बारे में प्रर्दशित किया गया है, परंतु इस बड़े मंदिर में भी मानव यौन क्रीड़ा का चित्र बनाया गया है सिर्फ इतना ही नहीं घोड़ा,शेर,हाथी और कई जीव-जंतु जो राजघराने से संबंधित हुआ करते थे, सभी की यौन क्रीड़ा पुरे बाहरी दिवारों पर बनी हुई है ,उस समय की जीवनशैली के विभिन्न हिस्सों जन्म से मृत्यु तक के सभी कर्त्तव्यों से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं, लेकिन इससे आप पहले इसलिए परिचित नहीं थे क्योंकि इस संबंध में सिर्फ मण्डवा महल को आगे ला दिया गया था, जबकि यहां तो बहुत से चित्र हैं आप जाते हैं तो केवल दूर से गौर करते हैं और सीधे अंदर के भीतरी भाग की नक्काशी का मजा लेते हैं और वापस आकर घर ...सिर्फ मंदिर के द्वार व शिवलिंग तक पहुंचने के लिए सात सीढ़ी (नीचे की ओर- ऐसा भी कहीं और नहीं है) उतरते हैं थोड़ा आजू-बाजू , ऊपर-नीचे बनावट की भव्यता को वाव क्या बनाया था यार उस जमाने के लोगों ने कहकर आ जाते हैं, जबकि ,दो हजार से भी अधिक बाहरी दिवारो पर उकेरे गए चित्र को गौर करते ही नहीं है, अगले बार जाना तो नीचे तीनों तरफ के दरवाजों व चारों तरफ के दिवारों पर अलग अलग जानवरों के भी यौन क्रीड़ा का दर्शन जरूर करें..यह एक बहुत बड़ा संदेश है मुझे याद नहीं आ रहा परंतु लिंग पुराण में वह श्लोक वर्णित है जिस पर इसके बारे में उल्लेख है व महत्व का वर्णन किया गया है, जिसका अर्थ है, कोई भी योनि में सिर्फ यौन क्रीड़ा एक ऐसी माया है जिसमें फसने के बाद उबरना बमुश्किल है, आप जब सभी प्रकार योन क्रीड़ाओं से संतुष्ट हो जाएं तब ईश्वर के शरण में जाएं, (पहले भी ईश्वर के शरण में जाने के लिए गृहस्थ त्याग कर सन्यास धारण किया जाता था) और जब आपका मन पुनः इस ओर न आएं तो आप मंदिर में प्रवेश करें व सात विशेष मार्ग को इन सात नीचे की ओर सीढ़ियों को उतरें जिसे सातो लोकों को पार कर शिव लोक धाम पहुंचना बताया गया है तब आपको भोलेनाथ की शिवलिंग रूप का दर्शन होगा...और आपको इस मोह-माया से मुक्ति मिल जाएगी..!
परंतु आज के पाश्च्यत सभ्यता में डुबे लोग इनका असली महत्ता नहीं जान पाते हैं, सच भी यही है कि जो माया है वह हमारी जीवन है, और जो माया से परे है वही ईश्वर है,और ईश्वर के शरण में सभी योनियों को भुगतने वाले हर जीव के लिए स्थान होता है,और जो भी जीव इस यौन माया को भुगत कर ईश्वर के शरण में आते हैं उनके लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है..!
कुछ लोग यहां तरीकों का अवलोकन करने आते हैं तो कुछ सिर्फ समय गंवाने परंतु यदि कोई सभी तरीके के सुख भोग चुके होते हैं या इसका अपने जीवन से त्याग कर देते हैं और बचे हुए जीवन में सिर्फ परोपकार की भावना लिए व्यतित करते हैं तो उन्हें ईश्वर की शरणागति प्राप्त होती है, परंतु हम तुच्छ बुद्धि के मानव अपने आविष्कारों पर अहम कर इस संदेश को समझने के बजाय हम इसका उपहास करते फिरते हैं... जबकि इस माया ने कई ईंद्रों से उनका सिंहासन छीन लिया था यह हम सब जानते हैं, जिस तरह हमें कुछ रूपयों के लिए दिन भर मेहनत करनी पड़ती है उसी तरह ईश्वर की कृपा जो कि अनमोल है उसे पाने के लिए बहुत से त्याग व मेहनत करनी पड़ती है,जब हम अपने सभी इच्छाएं पूरी तरह अपने वश में कर यौन माया से मुक्त हो जाते हैं तो ईश्वर हमें स्वयं ही अपने शरण में ले लेते हैं....
और लिखूं तो महीनों बीत जाए सिर्फ इस पुरातन काल के इस मंदिर का यह संदेश समझ लेना व अपने जीवन में उतार लेना ही इस मंदिर बनवाने वाले के उद्देश्य को पूरा करने में हमारी सहभागिता है समझा जा सकता है।
हर हर महादेव
आपका अपना
*पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी*
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
अं.यु.हिं.वा. गौ रक्षा दल-छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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