जन-गण- मन-मंदिर गुञ्जित,
अपना यह पावन नारा।
अपवर्ग, स्वर्ग से सुन्दर,
है 'भारत वर्ष' हमारा।।
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सागर शुचि चरण पखारे,
लाकर तरंग की धारें।
उर में गंगा की गागर,
छलकाए अमृत का जल।
हिमगिरि विराट रखवाला,
कश्मीर किरीट निराला।
अपवर्ग स्वर्ग से सुन्दर,
है भारत वर्ष हमारा।।
दिनकर की प्रथम किरण से,
है यहाँ सबेरा आया।
गीतों के सुर सौरभ से,
सारे जग को महकाया।
जागरण गान सुनकर ही,
जागा है यह जग सारा।
अपवर्ग, स्वर्ग से सुन्दर,
है 'भारत वर्ष' हमारा।।
वेदों की मृदुल ऋचाएँ,
शुचि गीत प्रकृति के गाएँ।
ऋषियों - मुनियों के चिंतन,
दर्शन के तत्त्व बताएँ।
गुरु-ज्ञान-गिरा सुन सुन कर,
मिलता है सहज किनारा।
अपवर्ग स्वर्ग से सुन्दर,
है 'भारत वर्ष' हमारा।।
सत्कर्म, धर्म, करुणा से,
है अपना निर्मल नाता।
है घृणा द्वेष - दूषण से,
उपकार निभाना आता।
है मिला धूल में .निश्चित,
दुश्मन ने यदि ललकारा।
अपवर्ग, स्वर्ग से सुन्दर,
है 'भारत वर्ष' हमारा।।
परतंत्र्य बहुत है झेला,
सबने हमसे है खेला।
लूटा है स्वर्ण - विहग को,
जब जिसकी आयी बेला।
हमने गांडीव उठाया,
तब कौरव दल है हारा।
अपवर्ग, स्वर्ग से सुन्दर,
है 'भारत वर्ष' हमारा।।
सब सरस सुमन उपवन के,
बस विविध हमारी क्यारी।
मिल जुल कर हँसें,खिले हम,
सुरभित हो यह फुलवारी।
हम सब विहंग हैं इसके,
निज नीड़ हमें है प्यारा।
अपवर्ग, स्वर्ग से सुन्दर,
है 'भारत वर्ष' हमारा।।
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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