*क्रोध हो सकारात्मक*
यह जरूरी नहीं कि क्रोध किसी व्यक्ति पर ही आए, कभी-कभी देश और समाज के हालात पर भी मन अधीर होने लगता है, उद्दीग्न मन कुछ भी नकारात्मक प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार हो जाता है *…*..
ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग दो उपायों को अपनाते हैं, या तो वे अपने से कमजोर व्यक्ति पर अपना क्रोध तेज आवाज में बोलकर या हिंसा कर उतारते हैं, या फिर सामान इधर-उधर फेंककर अपने दिल की भड़ास निकालते हैं, दूसरे उपाय के तहत वे अपने क्रोध को दबा देते हैं *…*..
हम अपनी हताशा और बेचैनी को दिल और दिमाग की कई परतों में छुपा देते हैं और इसे *मौनं सर्वार्थ साधनं* की संज्ञा दे देते हैं वास्तव में यह मौन नहीं, कुंठा है *…*..
हर छोटी बात पर क्रोधपूर्ण प्रतिक्रिया देना तो उचित नहीं है, लेकिन यदि किसी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने या प्रतिकार करने से किसी का हित हो रहा हो या फिर समूह को फायदा पहुंच रहा हो, तो हमें ऐसा करने से हिचकना नहीं चाहिए, अंदर दबे क्रोध को बाहर निकालने के बाद ही चित्त शांत हो सकता है, बशर्ते यह ऊर्जा सकारात्मक रूप में सामने आए !!!!!!!!!
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
मुंगेली छत्तीसगढ़
प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७
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