पंडित-मुल्ला-पादरी,नेता के पाखंड,
क्यों समाज को भोगना,पड़ता इसका दंड।
पड़ता इसका दंड,विवेकी उत्तर दीजे,
समाधान की माँग,करे जो आदर कीजे।
खेमेश्वर हठ त्याग,ढोंग को करिए खंडित,
फिर-फिर यह आह्वान,सुनें ज्ञानी जन पंडित।
ज्ञानी अब भी जगत में,जिनमें जगे विवेक,
जिनसे शास्वत है जगत,मूल धर्म का नेक।
मूल धर्म का नेक,बहुत गहरे है साधो,
दया दृष्टि रघुनाथ,सगुन केवल आराधो।
करें वही शत खंड,मरे पाखंडी नानी,
सदा यही संदेश,वेद देते हैं ज्ञानी।
जगती जागे रात-दिन,सदा रहे पर मौन,
संतति भू के जन सभी,उत्तम-मध्यम कौन।
उत्तम-मध्यम कौन,और निकृष्ट बताओ,
हो प्रमाण जो श्रेष्ठ,वही पन्ने अब लाओ।
ढोंगी या उत्कृष्ट,लोग को कैसी लगती,
प्राण प्रिया यह विष्णु,प्यार करती नित जगती।
अच्छा तुमको जो लगे,नेक वही ब्योहार,
इस धरती पर नित्य हो,बस वैसा त्योहार।
बस वैसा त्योहार,पर्व हो खुल्लम खुल्ला,
दो दिन का संसार,फुटे पानी का बुल्ला।
खेमेश्वर भू-गाय,और हम इसके बच्छा,
करती है यह प्यार,भला इससे क्या अच्छा।
कोई पाखंडी नहीं,सीधा-सरल विचार,
जीवन में जो रिक्तता,हो पूरित उद्गार।
हो पूरित उद्गार,यही सब की अभिलाषा,
पाखंडी जो लोग,बूझिए उनकी भाषा।
दूध दुहें जब गाय,लगाते सब जन नोई,
खंड-खंड पाखंड,करे ज्ञानी ही कोई।
मारे-मारे शब्द हैं,पाखंडी के जोर,
शब्दों की इज्जत गयी,हुआ चतुर्दिक शोर।
हुआ चतुर्दिक शोर,सत्य पर डंडे बरसे,
खुला अर्थ का द्वार,निकल भागे ये घर से।
न्याय-दया अनिकेत,हुए हैं हरि के प्यारे,
खेमेश्वर ये घूम, रहे नित मारे-मारे।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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