Wednesday, May 6, 2020

जागरूक (कुण्डलिनी)


जागो जागो राष्ट्र के,मेरे वीर जवान,
जागरूक रहना सदा,समय करे आह्वान।
समय करे आह्वान,नींद की इच्छा त्यागो,
हर सीमा पर आज, सदा चौकन्ने जागो।

नेता गण सोये बहुत,इस क्षण लें अब जाग,
नींद निगोड़ी चाहती, छोड़ें वह अनुराग।
छोडें वह अनुराग,कहें सारे अध्येता,
सिर पर चढ़ता सूर्य,भला क्यों सोये नेता।

सोया सो खोया कहें,अपने जन जो ज्येष्ठ,
जिसे कहावत यह लगे,सचमुच में ही श्रेष्ठ।
सचमुच में ही श्रेष्ठ,वही तन-मन का धोया,
और सभी मृत देह,जानिए जो है सोया।

पानी अपने देश का,उससे रक्षित जान,
जागरूक रहना सदा,जिसमें उपजा ज्ञान।
जिसमें उपजा ज्ञान,उसी से धरती धानी,
बहे उसी में रक्त,और गंगा का पानी।

माथा उनको अब झुका,सोये हैं जो मस्त,
जिनके जीवन का अहो,सूर्य हो गया अस्त।
सूर्य हो गया अस्त,शून्य है उनकी गाथा,
उपजे हाय कपूत,झुका यह जिनसे माथा।

होता क्यों ब्यभिचार है,प्रश्न बड़ा गम्भीर,
इसका क्या उपचार है,कहो दाँव आखीर।
कहो दाँव आखीर,बहन का धीरज खोता,
जागरूक यजमान,बोल दें कितने होता।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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