Wednesday, May 6, 2020

डाक घर (मत्तगयंद सवैया)


डाक लिए वह आवत देखत
नाच उठी मन मोद छुपाती,
श्याम लिखे इक आखर सुंदर
बाँच रही मन ही मन पाती।
प्रीति भरी हिय माहि निहारत
आँचल ओट रही मदमाती,
पीय हमें लिख भेजत पावन
प्रेम पियूष सुहावन थाती।।

डाक लिए वह डाकत-कूदत
धावत-आवत गेह किनारे,
बोलत बोल सुनावत सुंदर
द्वार रहा वह सोह सुआ रे।
पीय लिखे खत पाठ करो अब
नेह दिखावत प्राण पिया रे,
आकुल खोल रही खत आपन
प्राण पिया लखु तोहि पुकारे।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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