जब भी आऊं पास तुम्हारे
तब तुम बस इतना कर देना
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।
कोई शिकवा नहीं शिकायत
सब निर्णय स्वीकार तुम्हारे
बहुत मुबारक मंडप तुमको
और बधाई वंदन वारे
धरो हथेली पर जब मेहंदी
बीच कहीं मुझको धर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।
हंसी खुशी के हर मौके पर
ख़त भेजूंगा नाम तुम्हारे
राह भूलकर दहरी खोजूं
किसी दिवस की शाम तुम्हारे
द्वार खड़ा आवाज लगाऊं
आई आई उत्तर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।
तुम्ही कहो कब तुमसे मांगी
कंचन देह तुम्हारी मैंने
उजियारे में या अंधियारे
कब-कब लाज उतारी मैंने
जब भी मांगू तुमसे केवल
मुझको ढाई आखर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।
यद्यपि बहुत कठिन है कहना
तय कर पाऊं पथ की दूरी
यह संभव है बिना तुम्हारे
जीवन मंजिल रहे अधूरी
मेरी नीरस धरती को तुम
आशाओं का अंबर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।
जब भी आऊं पास तुम्हारे
तब तुम बस इतना कर देना
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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