दिल होकर दूर आपसे बेहद मजबूर है!
किस कदर रहें वक़्त को भी यही मंजूर है।
चाहें अगर और चाहत का काफिलाएँ बढ़ाते!
बंद रास्ते हुई जुनू ए इश्क़ मगरूर है।
हुए अलग ऐसे वफ़ाएं भी चिलमिलाये जैसे!
बढ़े फासले क्यूं लगता फजाओं का कसूर है।
फिर दिलसे यूँ दिल मिलेंगे वफ़ा सब खिलेंगे!
हुआ आलम ये रह ए उल्फत का दस्तूर है।
बस आईना है आंखें निहारे तेरी तस्वीर यूँ!
मिलें मिलके भी चाह का चढ़ता जब शुरुर है।
दिल होकर दूर आपसे बेहद मजबूर है!
किस कदर रहें वक़्त को भी यही मंजूर है।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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