मुस्कान जिसकी देखकर हर दर्द गायब हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता
वो परियों जैसी दिखती है, मैं पंछी एक मतवाला हूं
ऐसे अफ़साने लिखती है, मैं निसदिन पढ़ने वाला हूँ
अल्फ़ाज उसके सोचकर हर कोई शायर हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता
नैना दो जैसे झील हो, महका फूलों सा है बदन
तन कोमल कोमल चांदनीं, कोई कैसे न हो जाये मगन
अरमान जिसके देखकर हर कोई घायल हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता
मैं सोच घर से था निकला, वो रफ़्ता रफ़्ता गुजर गयी
अन्जान ये कैसा था बंधन, वो सहमे सहमे किधर गयी
पैग़ाम जिसके देखकर हर कोई दीवाना हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता
पड़ गया मैं कैसी उलझन में, सुनसान डगर सूनी गलियाँ
कब दीप जले कब शाम हुई, हैं धागों सी उलझी घड़ियाँ
अख़लाख़ उसके देखकर. हर कोई चाकर हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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