ना हास-परिहास ना ही श्रृंगार लिखता हूं,
करके एै जवानी अब वतन के खातिर कुर्बान,
जब भी उठाऊं कलम बस अंगार लिखता हूं।।
जो मुझको प्रेम करते हैं, उन्हें मैं प्रेम करता हूं,
जो मुझे दिल में रखते हैं,सदा सहयोग करता हूं,
सुन ले ओ भी गद्दारी,ईर्ष्या द्वेष करने वाले,
खंजर तूम जो रखते हो,तो मैं तलवार रखता हूं.।।
सदा सरगर्म रहने का हुनर आना जरूरी है,
जिगर का खूं आंखों में उतर आना जरूरी है,
घर दुनिया हमारी शराफत को बुजदिली समझे,
हमें अपनी औकात पर उतर आना जरूरी है।।
सोए पड़े हो और अरिदल,द्वार पर ललकारता,
मां भारती की क्रंदना पर,वह ठहाके मारता,
हे वीर जागो नींद से अब, युद्ध का आया समय,
निज शस्त्र साधो अस्त्र बांधो,और कर दो तूम प्रलय।।
©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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