*मूर्ति पूजा:*
*स्वामी विवेकानंद जी को एक मुस्लिम नवाब ने अपने महल में बुलाया और बोला, "तुम हिन्दू लोग मूर्ति की पूजा करते हो। मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ति का पर मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।"*
उस नवाब के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी।
विवेकानंद जी की नजर उस तस्वीर पर पड़ी।
विवेकानंद जी ने नवाब से पूछा, "ये तस्वीर किसकी है?"
नवाब बोला, "मेरे अब्बा (पिताजी) की।"
स्वामी जी बोले, "उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये।"
नवाब तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।
स्वामी जी नवाब से, "अब आप उस तस्वीर पर थूकिए।"
नवाब : "ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी?"
स्वामी जी : "मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..।"
नवाब (क्रोध से) : "स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।"
स्वामी जी बोले, "क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, जिस पर कुछ रंग लगा है।
इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है और ना ही कुछ बोल सकता है।"
*स्वामी जी बोलते गए, "इसमें ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूक नहीं सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हैं और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हैं।"*
थोड़े मौन के बाद स्वामी जी ने आगे कहा,
"वैसे ही हम हिन्दू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मानकर करते हैं।
भगवान तो कण-कण में हैं, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं।"
*स्वामी जी की बात सुनकर नवाब ने स्वामी जी से क्षमा माँगी।*
*जय हो सनातन धर्म!!*
आपका अपना
"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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