Saturday, July 18, 2020

सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा-14


🕉️📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा-14*📕🐚
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💢 *मानस की बहुयामी विशेषता* 💢
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       भारतीय मनीषियों का मानना है कि *श्रीराम अनुकरणीय हैं, श्रीकृष्ण चिंतनीय हैं और भगवान् शिव पूजनीय हैं ।यह बहुत ही व्यावहारिक और सात्विक चिंतन है ।एक ऐसी चिंतन धारा जहाँ सारे सांप्रदायिक विवाद शमित हो जाते हैं और आर्ष परंपरा की पवित्र गंगा धारा निरंतर प्रवहमान होती दिखती है ।*
यह दृष्टि हमारे ऋषियों की अंतश्चेतना में युगों पूर्व आयी थी।आज भी यह अत्यंत प्रासंगिक है । *भारत में राम, कृष्ण और शिव के इस त्रिवेणी संगम में जो स्नान कर लेता है, मेरी दृष्टि में वह सभी संशयों से मुक्त होकर आनंद को प्राप्त करता है ।*
मानस में शिव पूजनीय हैं, इसका सुंदर विनियोग हुआ है। *गोस्वामीजी की सनातन समझ सचमुच में असाधारण है,जहाँ जगदंबा सीता जगजननी पार्वती की पूजा और प्रार्थना श्रीराम को प्राप्त करने के लिए करती हैं –*
जय जय गिरिवरराज किसोरी।•••••• मंदिर चली।
*भगवान् श्रीराम भी रावण द्वारा अपहृत सीताजी को प्राप्त करने के लिए जब समुद्र पर सेतु तैयार करते हैं तो रामेश्वरम् में शिवलिंग की विधिवत स्थापना करते हैं और अत्यंत विश्वासपूर्वक उनकी पूजा और प्रार्थना करते हैं और यह उद्घोषित करते हैं –*
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।
*मानस में भगवान श्रीराम और जगदंबा सीता द्वारा भगवान् शिव और भवानी पार्वती की विधिवत पूजा का प्रसंग उपर्युक्त कथन की सत्यता के लिए यथेष्ट है ।*
उपर्युक्त प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि भगवान् शिव और भवानी पार्वती की चरण पूजा कितनी महत्त्वपूर्ण है ।
*सतीजी सीताजी के उस अलौकिक स्वरूप को राम के साथ देखकर वन में आँख मूँदकर बैठ गईं।यह एक चरित सती और सीताजी का है।*
एक चरित सीताजी का और पार्वती जी का है। कुछ लोग भ्रांतिवश यह समझ लेते हैं कि ये दोनों कथाएँ एक ही अवतार में घट रही हैं ।परंतु हमें यह जानना चाहिए कि जिस कल्प में भगवान् शिव और सतीजी अगस्त्य ऋषि के पास कथा सुनने जाते हैं वह कथा किसी और कल्प की है ।गोस्वामी जी कहते हैं - *कलप भेद हरि चरित सुहाए।*
सीता जी जब गिरिजा मंदिर में गईं तो वहाँ पार्वती जी की प्रार्थना में सीता जी ने जिस विनय और प्रेम भाव से उनकी प्रार्थना की,वह अद्भुत है ।इस बार जब दुहराकर गयीं तो उनके पास कोई पूजन सामग्री भी नहीं है।
*भवानी पार्वती जी उनके विनय और प्रेम से प्रसन्न ही गईं*
-विनय प्रेम बस भई भवानी । *क्योंकि उन्होंने अपनी प्रार्थना में पार्वती जी के चरणों में अपना संपूर्ण अनुराग उड़ेल दिया –*
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे ।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
मोर मनोरथ जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारण तेहीं।
अस कहि चरन गहे बेदैहीं।।
*यहाँ पार्वती जी के प्रति जिस उपासक भावना का प्रदर्शन  सीता जी के द्वारा किया गया है, वह अद्भुत है ।*
गोस्वामी जी यहाँ भवानी पार्वती जी के महत्त्व को दर्शाते हैं ।
*भगवान् राम भी इसी प्रकार अनन्य निष्ठा से रामेश्वरम् में शिवलिंग की विधिवत स्थापना करते हैं ।*’
*सीता और राम का भगवती पार्वती और भगवान् शिव के प्रति श्रद्धा और  विश्वास का यह भाव असाधारण है ।*
*शिव और पार्वती का यह प्रसंग मानस जैसे वैष्णव महाकाव्य में अपनी अद्वितीय इयत्ता के साथ प्रस्तुत होता है और यह युगीन परिप्रेक्ष्य में अपना अलग महत्त्व रखता है।*
*गोस्वामी तुलसीदास जी मानस की संरचना में जिस कौशल का परिचय देते हैं वह भारतीय आर्ष परंपरा की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । उन्होंने अपने सम्मुख जिस शास्त्रीय विराट फलक को देखा था उससे खास-खास मणियों को चुनकर सजाना यह गोस्वामी जी जैसे विचक्षण युगपुरुष से ही संभव था ।सबसे बड़ी बात है कि उन्होंने अकारण किसी प्रसंग को मानस में स्थान नहीं दिया ।मेरी दृष्टि में मानस में  ग्रहण से  ज्यादा निषेध पक्ष ध्यातव्य है ।*
यह अलग बात है कि विश्वविद्यालयी भाष्य के क्रम में विद्वान् कहते हैं कि *गोस्वामी जी बालकांड में “बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू” की बात करते हैं परंतु जब काशी के पंडितों का त्रास उनके प्रति कम नहीं हुआ तो उत्तर कांड में उन्होंने शिव की प्रार्थना के लिए अपना स्थान बदल लिया और वे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में पहुँच गये और वहाँ जिस “नमामिशमीशान निर्वाणरूपं••स्तोत्र का पाठ किया,वह संपूर्ण शैव जगत में छा गया और उस पूरे पाठ में कहीं भी “विश्वनाथ” पद नहीं आया ।*
मानो गोस्वामी जी कहते हैं कि तुम मुझे काशी से बहिष्कृत कर दो, परंतु मुझे कोई काल और दिक् बाधित नहीं कर सकता और वे महाकाल के मंदिर में जो ईशान दिशा के ईश हैं उनकी प्रार्थना करते हैं और उन्हें प्रसन्न करते हैं ।मानो काल और दिक् उनके हस्तामलक हैं।
*यह एक अपना साहित्यिक-सामाजिक विश्लेषण है,जो युगीन भित्ति पर आधृत है और यही मानस की बहुआयामी विशेषता भी है ।*
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*सियावर श्रीरामचन्द्र जी की जय*
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*_ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु_*

*भगवान सूर्यदेव की जय⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत 
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

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