🕉️📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा* ०२
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*संभु गए कुंभज रिषि पाहीं।।* से आगे का प्रसङ्ग
*मैया सती जी के भ्रम की शुरुआत* 01
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भगवान शंकर कथा सुनने के लिए चले । *यह विश्वास का स्वरूप है।बुद्धिमता का लक्षण है देखना और विश्वास का सुनना ।ईश्वर ने हमारे जीवन मे इन दोनों का सामंजस्य किया है।*
ध्यान दीजिए *दण्डकारण्य में श्री भगवान भी विजमान हैं और अगस्त्य जी भी । पर जैसा कि मानस से यह विदित है कि पहले अगस्त्यमुनि के पास शिव जी जाते हैं ,बाद में भगवान का प्रसंग आया है । बड़ा ही सुंदर सीख है इस प्रसंग से वह यह कि पहले भक्त के पास जाना चाहिये । पहले सुनना चाहिय बाद में भगवान को देखना ।*
इसका अभिप्राय यह कि *संसार की वस्तुओ में तो दृष्टि की प्रमुखता है,पर जो ईश्वर का विषय है वह मुखयतः श्रुति का विषय है। संसार की वस्तुओं को तो आंखे देखकर प्रमाणित करेंगी ,लेकिन जो प्रत्यक्ष रूप से नही दिखाई देता उसके विषय मे यदि केवल दृष्टि पर ही आग्रह करते रहें तो भ्रमित हो जाएंगे ।इसलिए हमारे यहाँ ईश्वर के संदर्भ में परम प्रमाण श्रुति का मानते हैं। श्रुति का अर्थ वेद भी है और कान भी ।*
*शिव जी कथा सुनने चलने लगे तो उनके साथ सती जी भी साथ हो गयी। इस बात पर गोस्वामी जी खुश बहुत हुए ,उन्होंने शंकर जी को तो कुछ ही विशेषण इस प्रसंग पर दिए पर सतीजी के लिए विशेषणो की भरमार कर दिए।* शंकर जी के लिए तो केवल इतना ही कहा -
*एक बार त्रेता जुग माहीं।संभु गए कुंभज रिषि पाहीं।।*
ये शम्भू हैं ।पर जब सती जी की बारी आई तो
*संग सती जगजननि भवानी।*
ये सती हैं,जगजननि हैं,भवानी हैं।
ध्यान दीजिए *ये विशेषण किसी भी नारी जीवन की परिपूर्णता की ओर इंगित करते हैं। नारी जीवन की परिपूर्णता उसके तीनो रूपों के सामंजस्य में समाहित है -एक ओर तो वह पुत्री है,दूसरी ओर पत्नी और तीसरी ओर मां। पुत्री के रूप में वह समर्पण की प्रेरणा देती है,तो पत्नी के रूप में स्नेह की और माता रूप में वात्सल्यमयी सेवा की। स्नेह,सेवा और समर्पण की मंजुल त्रिवेणी में नारी जीवन की परिपूर्णता और सार्थकता है। इस लिए ही बाबा ने कहा कि दक्ष पुत्री के रूप में सती हैं,शंकर जी की पत्नी रूप में भवानी और सृष्टि के माता के नाते वात्सल्यमयी जगजननि ।उनके तीनो रूपों में सुंदर सामंजस्य है।*
ऐसी सती शंकर जी के पीछे पीछे भगवत कथा सुनने के लिए दण्डकारण्य आती हैं।
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जारी रहेगा यह प्रसङ्ग
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आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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