🕉️📕 *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा -०३*
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*मैया सती जी के भ्रम की शुरुआत* 02
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कल हम सभी *सावन विशेष श्रीरामकथा अमृत सुधा* के *दैनिक कथा पाठ* में *दूसरेें दिन* प्रसङ्ग *मैया सती जी के मोह की शुरुआत* पर आधारित कथा रस के *पहले भाग का* आनंद लिए जिसमे यह देखे कि *भगवान शंकर जी अगस्त्य जी के पास मैया सती के साथ कथा सुनने के लिए चल पड़े है ।*
अब *तीसरे दिन* इस कथा प्रसंग को आगे बढ़ाने से पहले जरा घ्यान दीजिये ।
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*कथा का पूरा आनन्द और लाभ उठाने के लिए वक्ता और श्रोता के बीच सामंजस्य होना चाहिये ।*
*यदि वक्ता सोचे कि ये श्रोता मुझसे नीचे बैठे होने के कारण मुझसे छोटे हैं ,तो उसमे अभिमान आये बिना नही रहेगा । इसीप्रकार यदि श्रोता सोचे कि वक्ता ऊपर बैठा है तो क्या हुआ ,मैं तो उससे अधिक बुद्धिमान हूँ तो वह भी कभी सामनेवाले की बात को आदर पूर्वक नही सुन सकेगा । श्रोता के मन में यह आना चाहिए कि जो वक्ता के रूप में हमारे सामने विराजमान हैं, वह पूजनीय है, वंदनीय है, उनका ज्ञान हमारी अपेक्षा अधिक है और मैं उनसे ज्ञान ग्रहण करने के लिए आया हूं। वैसे ही वक्ता के मन में भी यह वृति आनी चाहिए कि यह तो भगवान की कृपा है जो उन्होंने मुझे निमित्त बनाकर श्रेष्ठ से श्रेष्ठ लोगों के समक्ष कथा कहने का अवसर दिया है । जो सुनने के लिए आए हैं ,ओ छोटे नहीं हैं अपितु उन्होंने हमें यह अवसर दिया है जिससे हम अपनी वाणी को पवित्र कर सकें।*
श्रीमानस में वक्ता और श्रोता का ऐसा सामंजस्य काग भुसुंडि जी और गरुड़ जी में मिलता है।
*जब वक्ता और श्रोता में विनम्रता और कृतज्ञता का सामंजस्य होता है तो कथा रस का प्रवाह ठीक चलता है । शंकर जी और अगस्त्य जी के साथ तो यह प्रवाह ठीक चलता रहा पर सती जी के साथ यह ठीक नहीं चल पाया।*
अब कथा प्रसङ्ग को आगे बढ़ाते हैं ----😊
*भोले बाबा सती जी के साथ मुनि के आश्रम पहुँच गए। यहाँ मुनि उन दोनों को देखते ही क्या किये,*
तो बाबा जी लिखते हैं -
*संग सती जगजननि भवानी । पूजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।।*
पर इस पूजन का प्रभाव *शंकर जी और सती जी के अंतः कारणों पर अलग अलग प्रकार से पड़ता है।* शंकर जी ने जब देखा कि अगस्त्य जी मेरी पूजा कर रहे हैं तो उन्होंने तो हांथ जोड़ लिया और कहने लगे - *महाराज अन्य वक्ता तो वाणी द्वारा उपदेश देते होंगे पर आपका तो पूरा जीवन ही उपदेश है।वक्ता यही तो कहता है कि अभिमान छोड़ देना चाहिए, पर आपने तो यह स्वयं अपनी क्रिया से दिखा दिया ।* मैं तो सुनने आया हूँ,अतः कहाँ मुझे आपका पूजन करना चाहिए था ,उल्टे आपने मेरा पूजन किया । इसी से लगता है कि आप कितने विनम्र हैं, कितने निराभिमानी हैं। *आपका जीवन ही कथा का रूप है।* पर सती जी ने ऋषि के पूजन का ऐसा अर्थ नही लिया ।
ध्यान दीजिए *जीवन मे घटने वाली घटनाओं का सही अर्थ लेना भी एक कला है जो लोग सही अर्थ लेना जानते हैं वे सुखी होते हैं और जो नही जानते वे सती जी के समान कष्ट का भोग करते हैं।*
सती जी ने सोचा कि *जब ऋषि मेरा पूजन कर रहे हैं तो इससे यही सिद्ध हुआ कि वे मुझसे कम बुद्धिमान हैं और जब मुझसे कम बुद्धिमान हैं तब मैं इनसे क्या सुनु ? पूजन का ऐसा उल्टा प्रभाव सती जी पर पड़ गया कि उनके अन्तःकरण में अवांछनीय संस्कार जाग्रत हो गए ।*
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⏯ *जारी रहेगा यह प्रसंग* ⏯
आपका अपना
"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
8120032834/7828657057
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