हरिजन शब्द रहा ब्राह्मण का,
गांधी ने जिसको छीन लिया।
इसी शब्द में फिर दलितों को,
बड़े हर्ष से लीन किया।।
लेकिन अब हरिजन शब्द से भीे ,
लगता है उन्हें घिन आता है,
इसीलिए घर-आंगन में बस ,
भीम का चित्र सुहाता है ।।
आज उसी गलती को फिर से,
दामोदर मोदी दोहराएंगे।
फिर तो सम्भव नही,लौटकर,
फिर सत्ता में आएंगे।।
हिन्दू-हिन्दू करते -करते ,
कब तक हिन्दू गाएंगे।
हरिजन-एक्ट गले मे लेकर,
कैसे कमल खिलाएंगे ।।
तुमने कहा-सब्सिडी छोड़ो,
हमने सुविधा त्याग दिया।
लेकिन आरक्षण तजने का,
तुमने न उनको सलाह दिया।।
बड़ी-बड़ी गाड़ियां रखकर,
बड़े बंगलो में रहते है।
फिर भी बड़े प्यार से खुद को,
'दलित' रियासी कहते है।।
'दलित' देखना अगर तुम्हें हो,
चलकर मैं दिखलाता हूँ।
आज सवर्णो के आंगन में,
सबसे 'दलित'मैं पाता हूँ।।
भूखा ब्राह्मण पड़ा हुआ है,
पेट-पीठ को एक किये।
'ठाकुर साहब ' भिखमंगे है,
अब कैसे उनके प्राण जियें।।
लेकिन सरकारी 'सिस्टम के,
ये सवर्ण अपराधी हैं।
घर मे नही है दाना इनके,
खाने को रोटी 'आधी' है।।
नही 'योजना'इनकी खातिर,
नही वजीफा है बच्चों का।
तुम भी तो हो यही सोंचते,
देश तो केवल है 'चच्चों 'का।।
तुमसे तो अच्छी 'माया' थी,
कहे- करे में भेद नही था।
खाया-पिया-निभाया उसकी,
थाली में तो छेद नही था।।
नही सम्भलता देश अगर तो ,
अन्य कार्य मे जुट जाओ।
'कुर्सी' है,अर्थी तो नही है,
इस कुर्सी से उठ जाओ।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
मुंगेली - छत्तीसगढ़
७८२८६५७०५७