करू भात के करू साग
का का ओ तो खात हे।
पानी भराई बर्तन मंजाई
मोला तो नहीं भात हे।।
गणेश चौथ के झंझट ऊपर ले
मंडप सजाय बर दाऊ बलाये हे।
मोर जीव बता बता लेत हे
मईके म ओखर रंग रंग बनाये हे।।
भईया ले हे झकमकहा लूगरा
तैं नि लस ,मोरे बर बड़ गुस्साए हे।
संविलियन के पईसा कति डहाथस
गौकिन मईके जाए ले भरमाए हे।।
का दु:ख बतावं समारू,
चार दिन ले नि परे हे बहिरी।
मईके जाके का का खाथे
तहान हो जाथे डऊकी बैरी।
तहान हो जाथे डऊकी बैरी...!
लीपे पोते तो नि आवय मोला
आते साठ बड़ खिसियाही।
चुल्हा ल राख करे डरे कईह
चिमटा धरे के ओ कुदाही।।
तीन साल जुन्ना के सुरता करथों
नवा नवा जब आए रिहिस।
पहिली तीजा ले जब लहूट संगी
खूरमी - ठेठरी लाए रिहिस।।
पऊर के का गोठियाबे संगी,
हकन के खा के आए रिहिस।
आए के खुशी दु पऊवा मारेंव,
धर बहिरी मा ठठाए रिहिस।।
चार दिन बर का जाथे मईके,
जऊँहर हो जाथे मूड़ पीरा।
सबो के हाल अईसनेच संगी,
का गोठियांव तीजा के पीरा।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
मुंगेली - छत्तीसगढ़
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